आज पत्रकार दुनिया बदल रहे हैं, अपने आप को छोड़ कर..

आज पत्रकार दुनिया बदल रहे हैं, सब बदलने जा रहे हैं आज के पत्रकार। एक दम विचारों की चरस बो कर ही मानेंगे, उतर गए हैं विचारो की लड़ाई लड़ने। आज सबसे ज्यादा अगर कोई ज्ञान दे रहा है तो वो यही जमात है। इसके पास इतने विचार हैं कि आप विचारों से चट जाएंगे पर विचार खत्म नहीं होंगे, लेकिन क्या आपने कभी किसी एंकर या प्राइम टाइम वाले ज्ञानी बाबा को मास मीडिया के प्राइवेट संस्थान पर कुछ बोलते हुए सुना है? ज्ञानी बाबा जो प्राइम टाइम लाते हैं, उनका बड़ा सा पोस्टर बच्चो से लाखो रुपया ठगने में काम आता है, न यकीन हो तो बाबा की साइट चेक कीजिए।
हाथ रगड़ते हुए जो ज्ञान देते हैं, उनकी शक्ल दिखाकर भी कुछ ऐसा ही किया जा रहा है, इस पर बाबा की कोई प्रतिक्रिया नहीं सुने हम, बस यही बोलते हैं जो मैं हूं वो मत बनना लेकिन अपना पोस्टर तक नहीं उतार पाए महराज। ये खाली इनका हाल नहीं है, जो सबसे आगे हैं वो भी इसमें कोई पीछे नहीं, वो भी दबा कर पैसे ले रहे हैं। टीवी ही नहीं कई बड़े पेपर भी अपना एक संस्थान चला रहे हैं, अपने हिसाब के लोग वह तैयार कर रहे हैं। जो इनके यहाँ कोर्स करेगा, इंटर्न उनको ही मिलेगी।

बाबा के लिए ये मुद्दा बहुत ही छोटा है या ये कहें मीडिया के लिए मुद्दा इतना छोटा है कि बगदादी मारा कितनी बार, अमेरिका के पास कितने बम हैं, मोदी सरकार में क्या अच्छाई और क्या बुराई है, ये सब पर लम्बे-लम्बे प्राइम टाइम देखने को मिल जाएंगे लेकिन मीडिया अपनी हकीकत को कितना दिखाता है? बस सब लगे हैं गरियाने में, हर साल पेल के इंटर्न निकल रहे हैं इन संस्थानों से, 6 महीने की इंटर्न करा कर बच्चों को बाहर किया जा रहा है।

क्या ये ज्ञानी बाबा या ज्ञानी मीडिया नही जानता इस हकीकत को? ये सरकार से पंगा ले सकते है लेकिन धंदे से नही, क्योंकि ‘पैसा बोलता है’। बात यहीं खत्म नहीं होती, एक बार बाबा लोगों की सैलरी चेक करो तो होश उड़ जाते हैं, लाखों में मिलती है तभी सोचे इतना पेल के विचार आ कहां से रहें है। अब सोचो मीडिया में नार्मल सैलरी कितनी है? 10000! मान लो ये भी मैंने ज्यादा बोल दी, ये बाबा लोगो की सैलरी का 10% भी नहीं।

‘मालिक इतना दीजिए जामे कुटुम्ब समाय, मैं भी भूखा न रहू इंटर्न भी अनपेड न जाए’ ये लाइन अगर मीडिया में सुनने को मिल जाए तो दिल खुश हो जाए लेकिन बोलते इसका जस्ट उल्टा हैं, ‘मालिक इतना दीजिए जामे ऑडी आ जाए, इंटर्न तो भूखा रहे ही नया पत्रकार भी भूखा मर जाए।’ मीडिया इन मुद्दों पर कभी बोलता है क्या? बस विचार पेलने को बोल दो सब मुद्दा अपनी बातों से सुलझा देते हैं, चाहे वो कश्मीर हो या गरीबी। अंत में इस ज्ञानी मीडिया और इनके ज्ञानी पंडितों के लिए ‘बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय, जो मन खोजा आपना तो खुद से बुरा न कोय।’

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