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ख़ुदकुशी…भवेश दिलशाद (शाद) की नज़्म
इसी इक मोड़ पर अक्सर गिरा जाता है ऊंचाई से अपनी ज़ात और ख़ाका मिटाया जाता है सब कुछ हो जिसमें ये सिफ़अत, क़ूवत कि जो अपना सके, जो घोल पाये सब कुछ अपने में
ग़मे-दिल और ग़मे जानां कहे बिन सह सके जो सब किसी इतनी बड़ी हस्ती के पहलू में किया जाता है सब कुछ गुम.
यह तस्वीर हमारी असंवेदनशीलता का जीता-जागता स्मारक है!
सोशल मीडिया पर एक तस्वीर वायरल हो रही है। जिसमें एक लगभग बूढ़ा हो चूका व्यक्ति एक महिला को साइकिल पर ले जा रहा है तस्वीर देखकर कुछ लोग समझ रहे हैं कि महिला जिंदा है, व्यक्ति उसे इलाज के लिए ले जा रहा है लेकिन सच्चाई यह है कि व्यक्ति साइकिल पर उस महिला की लाश लेकर जा रहा है।
नौशाद अली: कभी फुटपाथ पर सोने वाला बन गया संगीत का जादूगर
भारतीय सिनेमा का एक दौर ऐसा भी था, जब फिल्में संगीत प्रधान हुआ करती थीं, यानि फिल्में अपने गीत और…