हर सरहद को तोड़ ही देगी आज़ादी…

हर सरहद को तोड़ ही देगी आज़ादी
दुनिया भर को घर कर देगी आज़ादी.

दिल में रह-रह मौज उठेगी आज़ादी
जान तो इक दिन लेके रहेगी आज़ादी.

जिस्म ये आख़िर गल जाये या जल जाये
रूह तो लेकर साथ चलेगी आज़ादी.

तिनका तिनका ज़र्रा ज़र्रा जागेगा
नींद ढलेगी शब से खुलेगी आज़ादी.

चांद तकेगा तारे भी और सूरज भी
धरती डोल के जब बोलेगी आज़ादी.

हक़ लाज़िम हो नस्ल कोई हो क़ौम कोई
हर सरहद को तोड़ ही देगी आज़ादी.

क़ैद-ए-हवस में दुनिया है मैदाने-जंग
दुनिया भर को घर कर देगी आज़ादी.

मय भी निकली ज़ह्र भी निकला अमृत भी
मन मंथन से कब निकलेगी आज़ादी.

आज़ादी से क्या होगा सोच के देखो
ख़्वाब दिये ताबीर भी देगी आज़ादी.

❤️शाद (भवेश दिलशाद)

 

(ग़ज़ल के समृद्ध हस्ताक्षर भवेश दिलशाद, पेशे से पत्रकार हैं. देश में अदब की दुनिया के बेहद चर्चित शायरों में से एक.)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *