तनु वेड्स मनु फिल्म के बिल्कुल शुरुआत में ही एक रेडियो में फरमाइशी कार्यक्रम चल रहा होता है जिसमें यह आवाज आती है,
“बहनों और भाइयों नमस्ते, मैं आपका दोस्त अमीन सायानी बोल रहा हूं. स्वागत है आपके अपने ही फरमाइशी प्रोग्राम में. दोस्तों आज तो बहुत ही अच्छे-अच्छे और प्यारे गीतों की फरमाइशें आई हुईं है. पहला गीत जिसे सुनने के लिए हमें चिट्ठी लिखी है कानपुर से राजा अवस्थी और फलाने, फलाने, फलाने ने….”
ये छोटा सा, बिलकुल छोटा सा परिचय इसलिए क्योंकि आज की पीढ़ी ने अमीन सायानी को शायद उसी फिल्म के दौरान सुना होगा. लेकिन पचास, साठ, सत्तर और अस्सी के दशक में रेडियो सुनने वालों और हिंदी सिने प्रेमियों, जिन्होंने बॉलीवुड के पुराने इंटरव्यू सुने हों उनको अमीन सायानी का परिचय देने की जरूरत नहीं है
एक जमाने में रेडियो का दूसरा नाम कहे जाने वाले अमीन सायानी आज भी उसी रुमानियत और जोश से जब ‘बहनों और भाइयों’ बोलते हैं तो लगता है कि किसी ने कानों में मिश्री घोल दी है.
अपनी आवाज के जरिए भारत ही नहीं दुनिया भर में धूम मचाने वाले अमीन सायानी का रेडियो सफर 1952 में बिनाका गीतमाला से शुरू हुआ था. रेडियो सीलोन पर प्रसारित होने वाला इस कार्यक्रम में अमीन सायानी के बोलने के अंदाज ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया था.
1956 आते-आते बिनाका गीतमाला ने फिल्म और संगीत की दुनिया में तहलका मचाना शुरू कर दिया था. सभी बड़े समाचार पत्रों में अमीन सायानी और बिनाका गीतमाला की चर्चा होने लगी थी.
दरअसल, उन दिनों कोई ऐसा रेडियो प्रोग्राम नहीं था जो हिंदी फिल्मों के गानों को संगीत प्रेमियों तक पहुंचा सके.
चाय और पान की दुकानों में रेडियो पर जब बिनाका गीतमाला चलता था तो उसे सुनने के लिए वहां भीड़ लग जाती थी. दुकान वाले अमीन सायानी को धन्यवाद-पत्र भेजते कि जिस दिन गीतमाला आता है, उस दिन हमारी बिक्री दोगुनी हो जाती है.
अमीन सायानी अपने खास अंदाज में ‘बहनों और भाईयों’ कहने की वजह से घर- घर में पहचाने जा चुके थे. इस प्रोग्राम के लिए श्रोताओं द्वारा जितनी चिट्ठी अमीन सायानी को लिखी गई शायद ही किसी और प्रोग्राम या किसी कलाकार को इतनी चिट्ठियां लिखी गईं हों.
चाय और पान की दुकानों में रेडियो पर जब बिनाका गीतमाला चलता था तो उसे सुनने के लिए वहां भीड़ लग जाती थी. दुकान वाले अमीन सायानी को धन्यवाद-पत्र भेजते कि जिस दिन गीतमाला आता है उस दिन हमारी बिक्री दोगुनी हो जाती है
दरअसल, गीतमाला की खासियत यह थी कि उस कार्यक्रम में उस समय के हिट गाने तो बजते ही थे, साथ ही साथ कार्यक्रम में उस दौर के स्टार अभिनेताओं-अभिनेत्रियों, गायक-गायिकाओं और संगीत कलाकारों के साक्षात्कार भी अमीन सायानी लेकर आते थे. फिर साल के अंत में अपने प्रोग्राम में उस साल के सबसे हिट गाने का भी ऐलान किया जाता था.
गीतमाला कार्यक्रम में खुशी और उत्साह से भरपूर आवाज में अमीन सायानी प्रोग्राम सुनने वालों के साथ मजाक करते, उन्हें दिलचस्प किस्सों के साथ कलाकारों के इंटरव्यू सुनाते.
बिनाका गीतमाला के बारे में एक और बहुत ही महत्वपूर्ण बात यह थी कि जब फिल्मफेयर पुरस्कारों की स्थापना हुई तो कई वर्षों तक इसमें सर्वश्रेष्ठ गायक एवं गायिका की श्रेणी ही नहीं थी. सिर्फ संगीतकार को ही इस पुरस्कार से सम्मानित किया जाता था. ऐसी स्थिति में गायक-गायिकाओं को नाम व शोहरत दिलाने में बिनाका गीतमाला की भूमिका जबरदस्त रही. हालाकि बाद में लता मंगेशकर के प्रयासों से फिल्मफेयर पुरस्कार की श्रेणी में गायकों को भी शामिल किया गया.
1952 से शुरू हुआ फिल्मी गीतों का साप्ताहिक कार्यक्रम रेडियो सीलोन पर लगातार 1983 तक चला. फिर 1983 से 1989 तक यह कार्यक्रम विविध भारती पर ‘सिबाका गीतमाला’ के नाम से प्रसारित हुआ. कुछ समय के लिए यह बंद भी था. फिर 2003 तक ‘कोलगेट सिबाका गीतमाला’ के नाम से प्रसारित हुआ. 30 मिनट चलने वाला यह प्रोग्राम हर किसी का पसंदीदा बन गया था और कई दशक तक छाया रहा.
21 दिसंबर 1932 को जन्में अमीन सायानी के परिवार के लोग स्वतंत्रता आंदोलन में जुड़े हुए थे. उनके बड़े भाई भी एक ब्रॉडकास्टर थे, जो कई सालों तक ऑल इंडिया रेडियो मुंबई से जुड़े हुए थे. उन्होंने अंग्रेजी में कई कार्यक्रम बनाए थे.
गीतमाला के अलावा अमीन सयानी ने और भी कई कार्यक्रम बनाए. उन्होंने कई अंतर्राष्ट्रीय रेडियो शोज भी प्रस्तुत किए जिनमें म्यूजिक फॉर द मिलियन, मिनी इंसर्शन्स ऑफ फिल्मस्टार इंटरव्यूज और गीतमाला की यादें प्रमुख हैं.
रेडियो सिलोन के अलावा उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो के विविध भारती में 40 सालों से अधिक काम किया. शो प्रेजेंट करने का उनका तरीका और कलाकारों के इंटरव्यू लेने का तरीका, नाटक और एकांकी, संगीत के कार्यक्रम, फिल्मों के प्रमोशन और ट्रेलर पेश करने का अंदाज बिलकुल अलग और रोमांचक था.
बिनाका गीतमाला के जरिए फिल्मी जगत में उन्हें खूब सम्मान और नाम कमाया. उन्हें बहुत सारे अवार्ड्स भी मिले. साल 2009 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया. उनकी प्रसिद्धि और उनकी आवाज के जादू का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 1960 के दशक के में वे एक हफ्ते में 20 से भी ज्यादा कार्यक्रम किया करते थे.
एक इंटरव्यू में अमीन सायानी ने कहा था कि, रेडियो आपको खुद से जोड़ने का दुनिया का सबसे अच्छा माध्यम है क्योंकि टीवी की तरह आपको हर समय इससे चिपके नहीं रहना पड़ता. आप इसे सुनते समय कुछ भी कर सकते हैं और साथ ही इसके मजे भी ले सकते हैं. चाहे गाने हो या बातचीत, श्रोता अपने दिमाग में इसे सुनकर एक इमेज बना लेते हैं. इसके अलावा वह यह भी बताते हैं कि अच्छी हिंदी बोलने के लिए थोड़ा-सा उर्दू का ज्ञान जरूरी हैं
अमिताभ बच्चन से जुड़ा एक बहुत ही दिलचस्प किस्सा अमीन सायानी से जुड़ा है. दरअसल, बॉलीवुड में किस्मत आजमाने से पहले मेगास्टार अमिताभ बच्चन रेडियो एनाउंसर बनना चाहते थे और इसके लिए वह ऑल इंडिया रेडियो के मुंबई स्टूडियो में ऑडिशन देने भी गए थे. लेकिन वो बिना अपॉइंटमेंट के अमीन सयानी से मिलने चले आये थे, जिसकी वजह से वे अमीन सायानी से नहीं मिल पाए थे.
हालाकि बाद में अमिताभ बच्चन के साथ अपने एक इंटरव्यू के बारे में बताते हुए अमीन सायानी बड़ी ही साफगोई से कहते हैं कि जो हुआ अच्छे के लिए हुआ, वरना भारतीय सिनेमा अपने सबसे बड़े सितारे से वंचित रह जाता.
अमीन सायानी ने पिछले वर्षों में रेडियो सिटी पर ‘सितारों की जवानियां’ नाम से एक कार्यक्रम शुरू किया था जिसमें उन्होंने अभिनेताओं, अभिनेत्रियों, खलनायकों, हास्य कलाकारों और चरित्र अभिनेताओं से जुड़े पुराने और बेहद दिलचस्प किस्से पेश किए थे.
आज भी अमीन सायानी की आवाज किसी फिल्म के प्रमोशन के दौरान या किसी विशेष कार्यक्रम में सुनने को मिलती है तो कानों में रोमांच पैदा कर देती है.