क्या 2019 में ममता बनर्जी को प्रधानमंत्री बनाएगी कांग्रेस?

जी हां! 2019 में एकबार फिर से भारत के प्रधानमंत्री का चुनाव होना संभावित है। चुनावी मेंढक फिर से जनता रूपी कीड़ों को अपनी लपेटू जीभ में खींचकर खुद को पोषित करने को तैयार हैं। बिसातें दिल्ली में बिछ रही हैं और कुछ महीनों में जनता भी मोहरा बनने लगेगी। कहने को जनता के रहनुमा का चुनाव होगा, रहनुमा क्या करेगा या क्या करता रहा है, हमने और हमारी पीढ़ियों ने दशकों खूब देखा है।

खैर, चुनाव होना है और वह होगा ही। हमें वोट देना है और हम देंगे ही। सवाल यह उठता है कि क्या ‘रहनुमा’ फिर से नरेंद्र मोदी ही होंगे या इस बार कोई और उनकी ‘बादशाहत’ को चुनौती दे पाएगा? 2014 में मोदी की लहर थी, ऐसा खूब बताया, गाया और साबित किया गया। बीजेपी और मोदी ने 2014 के बाद हुए विधानसभा चुनावों में कई बार साबित भी किया। इससे कांग्रेस कमजोर हुई और प्रधानमंत्री बनने की लालसा रखने वाले क्षत्रप और मजबूत हुए।

प्रधानमंत्री पद पर समझौते को तैयार है कांग्रेस!

कांग्रेस की हालत अब यह हो गई है कि उसने खुलेआम कहना शुरू कर दिया है कि वह प्रधानमंत्री पद के लिए दूसरी पार्टी के नेताओं को स्वीकार कर सकती है। भले ही कांग्रेस ने इस बारे में अब चर्चा की हो लेकिन मायावती, ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल और विपक्ष के तमाम नेता लंबे वक्त से ऐसे मंसूबे पाले बैठे हैं। हाल में इसको लेकर सबसे ज्यादा ऐक्टिव दिख रही हैं ममता बनर्जी। ममता ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और उनकी मां सोनिया गांधी से मुलाकात की। ममता की महत्वाकांक्षा किसी से छिपी नहीं रही है। गाहे-बगाहे वह तीसरे मोर्चे की भी बात करती नजर आती रही हैं लेकिन अब शायद वह मन बना चुकी हैं कि कांग्रेस के कंधे पर ही बंदूक चलाई जाए और उसे ही ऐसी स्थिति में लाया जाए कि वह किसी और नेता को प्रधानमंत्री मान ले और उसमें सबसे पहला नाम ममता का हो।

 

2019 के लिए बड़ा संदेश देती है यह तस्वीर
2019 के लिए बड़ा संदेश देती है यह तस्वीर

अपने नाम पर क्षेत्रीय पार्टियों को राजी करने में जुटीं ममता?

ममता का यह सपना कितना फलीभूत होता है यह तो वक्त बता ही देगा लेकिन ममता अपनी ओर से कोई भी प्रयास ढीला नहीं छोड़ रही हैं। 2 जुलाई को पश्चिम बंगाल में कांग्रेस के अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी ने जो बयान दिया, वह भले ही राजनीति से प्रेरित हो लेकिन एक हद तक वह ममता के असली मंसूबों और प्लानिंग को दर्शाता है। बकौल अधीर रंजन चौधरी, ममता चाहती हैं कि लोकसभा के चुनाव में टीएमसी और बीजेपी का सीधा मुकाबला हो और कांग्रेस बीच से हट जाए। बीजेपी भी बंगाल में पैर जमाने और 2019 में ज्यादा सीटें जीतने की जी तोड़ कोशिश में लगी हुई है। ऐसे में अगर मुकाबला त्रिकोणीय होता है तो फायदा बीजेपी को हो सकता है। ममता बनर्जी इस बात को बखूबी समझती हैं इसीलिए वह राहुल और सोनिया के पास पहुंचीं।

बंगाल में सीटें बांटकर बीजेपी को रोकने की कोशिश?

अधीर रंजन चौधरी कहते हैं कि ममता बंगाल में कांग्रेस से गठबंधन करके सीटों का बंटवारा करना चाहती हैं, जिससे वोट बंटने का फायदा बीजेपी को न मिले। ममता को यह भी लगता है कि अगर वह बंगाल में ज्यादा सीटें लाने में कामयाब हुईं और 2019 में बीजेपी सरकार बनाने की स्थिति में न हुईं तो उनके नाम पर बाकी क्षेत्रीय पार्टियां इकट्ठा हो सकती हैं। इसलिए वह यूपी में अखिलेश यादव, बिहार में तेजस्वी, दिल्ली में अरविंद केजरीवाल से मिल चुकी हैं। कर्नाटक में कांग्रेस-जेडीएस के गठबंधन से मुख्यमंत्री बनने एच डी कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह में वह इसी एकता को भांपने पहुंची भी थीं। ममता को लगता है कि कांग्रेस से दूरी बनाने वाले तेलंगाना के केसीआर राव और उड़ीसा के नवीन पटनायक भी उनके नाम पर राजी हो जाएंगे और वह देश की प्रधानमंत्री बन जाएंगी।

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