श्रद्धांजलिः नहीं रहे उर्दू ‘गीताकार’ और शायर अनवर जलालपुरी

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दरो दीवार पे सब्जे की हुकूमत है यहाँ,
होगा ग़ालिब का कभी अब तो यह घर मेरा है।
मैंने हर अहेद की लफ्जों से बनायीं तस्वीर।
कभी खुसरो, कभी खय्याम, कभी मीर हूँ मैं।

अनवर जलालपुरी अपने इस अशआर में जिस अधिकार से खुसरो, मीर, खय्याम और गालिब की विरासत पर अपना दावा करते हैं उतने ही अधिकार से उन्हें वेदव्यास की विरासत पर भी करना चाहिए था। 1983 के आसपास उर्दू, अंग्रेजी और अरबी साहित्य का एक विद्यार्थी संस्कृत में लिखे हिंदू धर्म ग्रंथ गीता पर पीएचडी करने की सोचता है, और ऐसा करते हुए उसके दिमाग में सिर्फ यही बात है कि वह गीता का उर्दू में अनुवाद करेगा। सामाजिक समरसता, धार्मिक सद्भाव और इंसानी एकता का यह सूत्रधार कोई और नहीं अनवर जलालपुरी ही थे जिन्होंने आज लखनऊ स्थित ट्रॉमा सेंटर में 70 साल की उम्र में ही अपनी आंखें हमेशा के लिए मूंद लीं। उनके परिवार में उनकी पत्नी और तीन बेटे हैं। परिवार के मुताबिक जलालपुरी को गत 28 दिसंबर को उनके घर में मस्तिष्क आघात के बाद किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के ट्रॉमा सेंटर में भर्ती कराया गया था। जहां आज सुबह करीब सवा नौ बजे उन्होंने अंतिम सांस ली।

अनवर जलालपुरी उत्तर प्रदेश के अंबेडकर नगर के जलालपुर कस्बे में पैदा हुए। दुनिया भर में उन्हें मुशायरों के बेहतरीन संचालन के लिए जाना जाता है। इसके अलावा उन्होंने मशहूर उर्दू शायर उमर खय्याम के तकरीबन 72 रुबाइयों का आसान भाषा में अनुवाद किया है। रवींद्रनाथ की गीतांजलि को भी अनवर ने अपने शब्द दिए हैं। अपने शायरी से समाज को हमेशा बड़ा संदेश देने की कोशिश करने वाले अनवर जलालपुरी ने भगवदगीता का भी सरल उर्दू में अनुवाद किया है। गीता के यूं तो उर्दू सहित कई भाषाओं में पहले भी अनुवाद हो चुका है लेकिन अनवर का यह अनुवाद जनसामान्य की भाषा में लोगों तक गीता के संदेशों को पहुंचाने की कोशिश है।

अनवर ने गीता का अनुवाद ओशो रजनीश, महात्मा गांधी, बिनोवा भावे और लोकमान्य तिलक के गीता पर लिखे टीकाओं के सहयोग से पूरा किया। इस बारे में बात करते हुए अनवर ने एक बार कहा था कि छात्र जीवन से ही उनके दिमाग में यह बात थी कि कुरआन तो उन्होंने पढ़ी ही है तो क्यों न हिंदू धर्म की किताबें भी पढ़ी जाएं। वह बताते हैं कि जब उन्होंने इस क्रम में गीता पढ़ी तो महसूस किया कि यह कुरआन के संदेशों से बिल्कुल अलग नहीं है। गीता के अनुवाद को लेकर उनके मन में बीज वपन यहीं से हुआ था।

आइए देखते हैं कि अनवर के शब्दों में गीता हमें किस तरह से जीवन के मर्म समझाती है

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
माकर्मफलहेतुर्भूः मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि। (और अन्य)

हीं तेरा जग में कोई कारोबार, अमल के ही ऊपर तेरा अख्तियार।
अमल जिसमें फल की भी ख़्वाहिश न हो, अमल जिसकी कोई नुमाइश न हो।

अमल छोड़ देने की ज़िद भी न कर, तू इस रास्ते से कभी मत गुज़र।
धनंजय तू रिश्तों से मुंह मोड़ ले, है जो भी ताल्लुक उसे तोड़ ले।

फ़रायज़ और आमाल में रब्त रख, सदा सब्र कर और सदा ज़ब्त रख,
तवाज़ुन का ही नाम तो योग है, यही तो ख़ुद अपना भी सहयोग है।

इसी तरह से

वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि ।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही ॥

नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक: ।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत: ॥

बदन रूह की सिर्फ पोशाक है।
वगरना यह तन तो फकत खाक है।
लिबासे कुहन तो बदलना ही है।
नया पैरहन फिर पहनना ही है।
बदन त्याग कर जाने जाती कहां।
नया ढूंढ लेती है कोई मकां।
न हथियार करते हैं जख्मी इसे।
न तो आग ही है जलाती इसे।
भिगोने की ताकत न पानी में है।
अजब बात इस की कहानी में है।
हवा भी इसे खुश्क करती नहीं।
अजल से अबद तक यह मरती नहीं।

अनवर जलालपुरी को विनम्र श्रद्धांजलि

 

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