भारत में किसी लड़की का शारीरिक उत्पीड़न हुआ हो या ना हुआ हो. मानसिक उत्पीड़न तो जरुर होता है| भले ही वाहियात गाना सुना कर ही क्यों न किया जाए. आप माने या न माने जैसे लोग कहते हैं न कि “क्या आँखों से ही रेप कर दोगे” वैसे ही लोग गाना बजा-बजा कर भी औरतों का मानसिक शोषण करते हैं. याद करिए बस और ऑटो में चलते हुए गाने जैसे उ ला उ ला मैं हूँ तेरी फैंटेसी, तू चीज बड़ी है मस्त मस्त और शीला की जवानी इत्यादि. सड़क पर शिखर-पान मसाले की दुकान पर बजते हुए गाने जैसे गंदी बात गंदी गंदी गंदी बात, अब करेंगे तेरे साथ गंदी बात और कुंडी मत खड़काओ राजा.
ये तो बात सिर्फ हिंदी गानों की हो रही है, यूपी बिहार में तो भोजपुरिया गाने अपने आप में सेक्सुअल एब्यूज है. ये गाना बजाने और सुनने वाले औरतों की बेज्जती कर ही रहे हैं और इन्हें लिखने वाले उनका उत्पीड़न.
यूट्यूब पर ZICO MAITRA नाम के एक पेज ने अपना एक विडियो अपलोड किया है,जिसमें कुछ औरतें इन तमाम हिंदी गानों को नए और दमदार शब्दों में रिराइट करके पेश कर रहीं हैं. जैसे
उ ला ला उ ला ला, कंट्रोल कर अपनी फेंटसी. छूना न छूना न, आई यम नॉट तेरी प्रोपर्टी…
ए बी सी डी पढ़ो न पढों, अच्छी बात करो न करो. ख़बरदार जो करी कोई गंदी बात,गंदी गंदी गंदी बात……
और यह पूछती हैं “ऐसा क्यों नहीं लिखते???’’ बताइए जब तमाम नामचीन कलाकारा हाथों में रेजर लेकर लोगों से कहती है “शेव योर ओपिनियन” तो वो इन गानों पर नाचते वक़्त क्यों नहीं सोचती. अपने म्यूजिक राइटर से क्यों नहीं कहती कि वो हमें ‘तंदूरी मुर्गी’ बनाने की जगह पहले अपने शब्दों की शेविंग कर के आयें. लड़कियों की लड़ाई बहुत लम्बी है. माँ बहन की गालियों से लेकर गलियों में बजने वाले गानों तक को हमें शायद रिराइट करना पड़े, तब जाके कहीं हम मानसिक शांति पा सकेंगे. शारीरिक शांति तो अभी दूर की कौड़ी है क्योंकि जब किताबों में हमें ’36-24-36’ परफेक्ट फिगर का पढ़ाया जा रहा है तो सोचिये हम किस दशा और दिशा में हैं.