मोदी सरकार के चार साल पूरे हो गए हैं। आखिरी साल की शुरुआत के साथ ही बीजेपी का प्रचार अभियान भी शुरू हो गया है। पत्रकारिता की नई विधा के अनुसार, सरकार के चार साल पूरा होने पर सवाल पूछने की बजाय सरकार का महिमामंडन शुरू कर दिया गया है और डीएवीपी बगलें झांक रहा है।
मोदी सरकार के चार साल पूरा होने पर टाइम्स ग्रुप (ऑनलाइन) ने और एबीपी न्यूज ने सर्वे किए। मोदी की इच्छा के मुताबिक इन सर्वे में दिखा भी दिया गया कि मोदी ही लोगों की पहली पसंद हैं। महज कुछ हजार के सैंपल सर्वे से एबीपी न्यूज ने दावा किया कि 2019 में एनडीए एक बार फिर से बहुमत हासिल कर लेगा। हिंदी भाषी क्षेत्रों में भी सबसे ज्यादा टीआरपी ना बटोरने वाले चैनल ने कहां के लोगों से सर्वे में राय ली और क्या यही लोग 2019 निर्धारित करेंगे?
टाइम्स ग्रुप के पोल में 8 लाख ऑनलाइन यूजर्स ने हिस्सा लिया और उसमें से 70 फीसदी से ज्यादा ने माना कि मोदी ही 2019 में पीएम बनेंगे। भारत में कितने गांवों में टाइम्स ग्रुप की वेबसाइट्स को पढ़ा जाता है? ऐसे में क्या सिर्फ शहरी वोटर्स ही 2019 में मोदी की सरकार बनाने जा रहे हैं? इस तरह के सर्वे अगर सच होते तो 2014 में तो मोदी को 400 से ज्यादा सीटें जीतना चाहिए था।
दरअसल, भारत का वोटर आज भी मासूम है। वह पेपर की हेडिंग में लगे कोट-अनकोट को नहीं समझता है। वह यह नहीं समझता है कि 70 फीसदी से ज्यादा लोग मोदी को चाहते हैं, यह सच नहीं बल्कि एक खास वर्ग की कही गई बात है। वह यह भी नहीं समझ पाता है कि मोदी सरकार के चार साल पूरा होने पर मीडिया हाउसेज ने रिपोर्ट कार्ड के नाम पर जो शो किए उनसे सरकार पर पीछे छूट रही योजनाओं को पूरा करने का दबाव बन पाया कि नहीं।
भले ही मोदी और बीजेपी इन सर्वे को देखकर बाहरी तौर पर खुश हो लें लेकिन जमीनी हकीकत तो उनको भी पता ही होगी। मोदी को एक ही चीज आश्वस्त कर सकती है, वह है कमजोर विपक्ष। विपक्ष में मजबूत नेतृत्व का ना होना मोदी के लिए किस्मत की बात है। राहुल गांधी फुंके कारतूसों को भी बटोरने में सक्षम नहीं हैं। लेफ्ट पार्टियां खुद कांग्रेस में मिल जाने को आतुर दिखाई पड़ती हैं। कर्नाटक में कांग्रेस-जेडीएस की सरकार बन जाने से कोई बड़ा फेरबदल हो सकता है कि नहीं, यह भी भविष्य के गर्त में ही छुपा हुआ है।