क्रांतिधरा मेरठ ऐंवई नाम के साथ बदनामी लेकर नहीं चल रही है। एक से एक तीस मार खां बसते हैं यहाँ। ताज़ा उदाहरण सरधना के सोम साहब हैं। अब पता नहीं किस झोंक में जनाब ने 5 करोड़ का इनाम भंसाली के सिर पर रख दिया। ऐसे ही कुछ साल पहले मेरठ में, एक कुरैशी साहब ने 51 करोड़ का इनाम मोहम्मद साहब पर की गई गुस्ताखी के लिये, किसी कार्टूनिस्ट के सिर पर रखा था। वैसे वो वाले कुरैशी पैसे वाले थे। मतलब गर्दन कलम करने की ‘घणी’ रकम देते हैं मेरठ वाले। आशा है, मेरठ के इन बयानवीरों की ओर से आगे और भी अच्छे ऑफ़र आएंगे।
पिछले कई साल से मेरठ में कथित राष्ट्रवादियों का एक धड़ा, महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे के मन्दिर निर्माण के लिये हाथ पैर मारता रहा है। बताओ जी, गोडसे के भक्तों को मन्दिर भी मेरठ में ही बनाना है, महाराष्ट्र से इत्ती दूर।
ऐसे ही एक जमाने में, नेहरू जी के दौर में मेरठ के एक सांसद हुआ करते थे, त्यागी जी। जब चीन ने भारत की जमीन हथिया ली और नेहरू जी ने कहा कि (जमीन) बंजर ही तो है, क्या हुआ? तो तपाक से गुस्से में त्यागी जी ने कहा कि मेरा और आपका सिर बंजर (गंजा) है, इसे भी चीन हथिया ले तो चलेगा? सही बात ये है कि यहाँ हल्की सी डोर काटने पर लट्ठ चल जाते हैं।
बात ऐसी है कि मेरठ में इस तरह के बडे़-बडे़ पहुंचे हुए लोग हैं, जो पता नहीं क्या घोषणा कर दें, किसके सिर पर तगड़ा इनाम रख दें और किसके मन्दिर निर्माण की घोषणा कर दें।
कुछ महीने पहले मेरठ के सरधना के ही एक सज्जन ने, करोड़ों की लागत से दो एकड़ में मोदी जी के मन्दिर निर्माण की घोषणा की थी। गोडसे का मन्दिर, मोदी जी का मन्दिर और दो चार अन्य मन्दिर बन गये तो यकीन मानिये मेरठ की फिर से धूम मचेगी देश दुनिया में। वैसे भी इनके भक्तों के लिये तीर्थ हो जायेगी क्रांतिधरा। खैर, किस्से ओर भी हैं। एक बार कांग्रेस की किसी रैली में मेरठ में एक मेरठिये ने दिलीप कुमार पर जूता फेंका, जिसे साथ में खड़े जॉनी वाकर ने उठाकर प्यार से अपने कॉमिक अंदाज में कहा कि, जनाब! अहसान होगा आपका, इसका जोड़ीदार जूता भी फेंक दें तो जोड़ी बन जायेगी।
अभी तो सुर शुरू हुए हैं। कल को कोई ये कहेगा कि भई मेरठ से रावण की पत्नी मंदोदरी थी और उनके पिता मय असुर के नाम पर मयासुर मन्दिर बनाओ, तो क्या कीजिएगा? हाँ, श्रवण कुमार की मिथकीय घटना भी जुड़ी है कि, यहीं पर श्रवण कुमार का मन डोला था और वह अपने माता पिता को छोड़ना चाहते थे। खैर तब तो मेरठ बसा ही नहीं था इसलिए इस बात के पुख्ता प्रमाण नहीं हैं।
वैसे मेरठ की क्रांति तो जगप्रसिद्ध है। यहाँ कई साल पहले का एक किस्सा भी मशहूर है। एक बार कुछ अंग्रेज अफसर आदत के मुताबिक, घोड़ों पर चढ़कर आस-पास के गांवो में रोब व ठसक के साथ घूम रहे थे। सुनते हैं एकाध गोरी मेम भी थी, जिनकी मेरठ के पास के गांव पांचली के तीन किसानों से कहासुनी हो गयी। ये सब अपने खेतों में काम कर रहे थे। कहासुनी तो खैर क्या हुई होगी, क्योंकि किसान अंग्रेजी नहीं समझते होंगे और अंग्रेज खड़ी बोली। कुल मिलाकर हाथापाई हो गयी। बस बहादुर किसानों ने जबरदस्ती उन अंग्रेज व अंग्रेजनियों से हल जुतवाया, कुँए से पानी भरवाया। बाद में अंग्रेजों ने अपने जुल्मी परंपरा को बरकरार रखते हुए दो लोगों को फांसी पर लटका दिया। कहने का लब्बोलुआब ये है कि मेरठ के किसान भी ऐसे रहे हैं जिन्होंने अंग्रेजों तक को नहीं बख्शा।
भले मानुषों, अगर मन्दिर जैसा कुछ बनाना ही है तो क्रांतिमन्दिर बनाओ, क्रांतिघाट बनाओ, क्रांतिस्थल बनाओ क्योंकि मेरठ की बड़ी पहचान 1857 की जनक्रांति के लिये है। मेरठ की जनक्रांति के क्रांतिनायक व तत्कालीन कोतवाल धन सिंह कोतवाल की मूर्ति लगाओ। पहचान दिलानी है तो क्रांतिगाँव पांचली, घाट, गगोल, सरधना के भमौरी गांव आदि को दिलाओ। मवाना के एक महान क्रांतिवीर हुए राव कदम सिंह, जिन्होंने 10 हजार किसान क्रांतिकारियों के साथ टक्कर ली। राव कदम सिंह व उनकी क्रांतिकारी फौज के बारे में दिलचस्प तथ्य यह है कि ये सब सफेद मुंडासा कफन के तौर पर पहनते थे। ये गोरों की बैंड बजाकर रहेंगे, चाहे जियें या मरें। ऐसे ही और भी किसान नेता चौधरी चरण सिंह जी, कैलाश प्रकाश जी, पीएल शर्मा जी भी हैं।
वैसे एक काम और करवा सकते हैं। दोआब की धरती की देवी गंगा मैया का मन्दिर बनाकर। अब देखिये कि हस्तिनापुर कस्बा मेरठ में है और देवी गंगा मिथकीय रूप में हस्तिनापुर में ही दुल्हन बनकर आईं, तो ‘चट बन जावैगी थारी इस बात पर’। भले ही मैं मिथको व गल्पों को इतिहास में ना रखता होऊँ पर हमारे खेतों व जीवन के लिये गंगा एक देवी से कम दर्जा नहीं रखती। मैं इतना भी अहसान फरामोश नहीं कि बचपन से लेकर अब तक कई साल नहान के मेले में डुबकी लगाकर गंगा का अनादर करूँ। दोआब में जन्मे को गंगा नदी का भौगोलिक पुत्र तो कहा ही जा सकता है।
खैर, दिल्ली के राजघाट की तर्ज पर मेरठ में भी क्रांतिघाट बने। क्रांतिघाट में मेरठ की क्रांति से जुड़ी घटनाओं को यथावत् दिखाया जाये जिसमें कोतवाल, मेरठ की कोतवाली में क्रांति की हुंकार भरता दिखे।
यह टिप्पणी मनीष पोसवाल ने लिखी है।