जिस उम्र में लोगों को यह न पता हो कि उनके साथ क्या हो रहा है उसी उम्र में उन्हें अगर सात फेरे लेने पड़ें तो उन पर क्या बीतेगी. लड़कपन में खुद को न संभाल पाने वाले लोग जब परिवार संभालते हैं तो लगता है कि उनके साथ समाज ने परंपरा के नाम पर एक सामाजिक अपराध किया है जिसकी भरपाई ताउम्र नहीं की जा सकती है. खुशी की बात यह है कि बाल विवाह से लोगों अब कतरा रहे हैं. वजह चाहे शिक्षा का प्रभाव हो या अवेयरनेस. युनाईटेड चिल्ड्रन्स फंड (यूनिसेफ) के मुताबिक कई देशों में बाल विवाह का चलन कम हुआ है.
बदल रहे हैं आंकड़े
यूनिसेफ ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि बीते एक दशक में बाल विवाह की घटनाएं कम हुई हैं. पिछले 10 साल में बाल विवाह के कुल 2.5 करोड़ केस ऐसे सामने आए हैं जिन्हें होने से रोका गया है. दक्षिण एशिया में पिछले एक दशक में बाल विवाह का प्रतिशत 49 से घटकर 30 फीसदी हो गया है.
रिपोर्ट्स में यह भी कहा गया है कि अफ्रीका में बाल विवाह पर सबसे ज्यादा लगाम लगाई गई है. यहां 38 फीसदी महिलाओं का विवाह कम उम्र में किया जाता था, जो अब घटकर 18 फीसदी रह गया है. यूनिसेफ ने कहा कि वर्तमान में 21 फीसदी लड़कियों और चार फीसदी लड़कों की शादी, उनके वयस्क होने से पहले हो जाती है. हर साल कुछ 1.2 करोड़ लड़कियों की शादी, 18 साल की उम्र से पहले हो जाती है. अगर यह ऐसे ही जारी रहा तो 2030 तक 15 करोड़ लड़कियों की शादी 18 साल की उम्र से पहले हो जाएगी.
यह आंकड़ें जाहिर तौर पर चौंकाने वाले हैं. इसे संतोषजनक नहीं कहा जाएगा. भारत के ग्रामीण इलाकों में आज भी बाल विवाह की घटनाएं सबसे ज्यादा सामने आती हैं. बाल विवाह भी एक खास वर्ग के लोगों में ही देखने को मिलता है. यह वर्ग सामाजिक रूप से पिछड़ा वर्ग है.
बाल विवाह होने का तर्क
समाज में बाल विवाह की स्वीकृति पिछड़े तबकों में ज्यादा है. धनाढ्य वर्ग इससे अछूते हैं. लोगों का तर्क है कि अगर बेटी की उम्र ज्यादा हो गई तो लड़का नहीं मिलेगा. लड़के वालों की दिक्कत है कि अगर वे समय से शादी नहीं करते हैं तो उन्हें उनके उम्र की लड़की मिलती.
बच्चे कहीं बहक न जाए
एक मान्यता यह भी है कि अगर ज्यादा उम्र तक बच्चों की शादी न हो तो वह बहक जाते हैं और अमर्यादित काम करने लगते हैं जिससे समाज में बदनामी होती है.
कारण जो भी हो, अगर समाज इस कुप्रथा पर लगाम लगाए तो यह कब की बंद हो जाए लेकिन पढ़े-लिखे लोगों की चुप्पी बाल विवाह जैसी घटनाओं के लिए असली जिम्मेदारी होती है. कुप्रथाओं के खिलाफ बोलों क्योंकि मामला किसी की जिंदगी के बेहतरी का है.