आईसीसी के सालाना अवार्ड की लिस्ट में जिस खिलाड़ी की ख़्वाजा ने झोली भर दी हो, जिंदगी की हमसफ़र भी जिसे इसी बरस मिली हो, रिकॉर्ड जिसकी नेमत हो। ऐसे खिलाड़ी पर जब क्रिकेट के दिग्गज विश्लेषक से लेकर आम दर्शक तक ये आरोप लगाए कि ये खिलाड़ी अपने गुमान में भारतीय क्रिकेट को बर्बाद करें दे रहा है तो वाक़ई हालत भयावह प्रतीत होने लगते है।
क्रिकेट विश्लेषक और सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित क्रिकेट की प्रशासनिक समिति के भूतपूर्व सदस्य रामचंद्र गुहा अपने एक आर्टिकल में कहते हैं कि मोदी के कैबिनेट के मंत्री जितना मोदी की बात को तवज्जो नही देते, उससे अधिक तवज्जो क्रिकेट बोर्ड अपने कप्तान कोहली को देता है। गुहा आगे लिखते है कि कोहली के आगे बोर्ड नतमस्तक हो चुका है।
उनके मुताबिक़ कुंबले जैसे गुणी और नेक कोच को कोहली ने सिर्फ़ इसलिए हटाया क्योंकि वो उनकी बादशाहत नहीं स्वीकारते थे। दरअसल कुंबले कद और खेल में कोहली से इंच भर भी कम नही हैं, वो बहुत बार मैच विनर रहे हैं, इसलिए वो अपनी मर्ज़ी के अनुसार टीम हित और परिस्थिति के मुताबिक निर्णय लेते थे।
गुहा कहते हैं कि कोहली का दखल उन मामलों में भी है जिनमें कप्तान की भूमिका नगण्य होती है यानि वो अपने अधिकारों का अतिक्रमण कर रहे हैं। भविष्य के दौरे से लेकर राष्ट्रीय क्रिकेट अकादमी तक मे कोहली अपनी राय देते हैं। बोर्ड के सीईओ कहते हैं कि इन-इन मामलों पे विराट की राय ही अंतिम फैसला होगा।
गुहा के अतिरिक्त सुनील गावस्कर सरीखे दिग्गज क्रिकेटरों ने भी कोहली की भूमिका पे सवाल उठाए हैं, वो कहते हैं कि ये(कप्तान) जो(प्रयोग) कर रहे, बस दुआ करिये कि सफ़ल हो जाएं। दरअसल कोहली ने दूसरे मैच के बाद हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में क्रिकेट एक्सपर्ट्स पे ही यह कर सवाल उठा दिए थे कि जो लोग पहले रहाणे को अंतिम एकादश में देखना ही नही पसंद करते थे, आज वो भी रहाणे को खिलाने की हिमायत कर रहे हैं।
दरअसल धोनी के खेलते वक़्त कोहली सदर होते हुए भी कभी नायब की भूमिका में नही आ पाते है क्योंकि धोनी की निर्णयशीलता और समझ उन्हें स्वाभाविक सदर बना देती है भले ही दस्तावेजी तौर पर वो सदर न हों। अब जबकि धोनी टीम में ही नही है तो कोहली को एकछत्र राज्य मिल गया है, वो जमकर मनमानी कर रहे है मगर इस मनमानी में क्रिकेट की हानि हो रही है.