सरकारों से सवाल पूछने पर छात्रों को हतोत्साहित किए जाने की परंपरा कितनी पुरानी है यह अलग विषय है पर अगर इसे शोध का विषय बनाया जाए तो यह शोधार्थियों के लिए दिलचस्प अवश्य हो सकता है।
हतोत्साहन की यह प्रकिया की शुरुआत स्कूल से ही शुरू होती है जिसे अलग-अलग तरीकों से अंजाम तक पहुंचाया जाता है। छात्रों को संस्थानों के खिलाफ़ बागी तेवर दिखाये जाने पर उसकी किस्मत अधर में लटकाने का भय बनाया जाता है, महाविद्यालय स्तर तक का सफर तय करने तक छात्र सामाजिक स्तर पर दब्बू बन जाता है। वह इस लायक नहीं बन पाता कि अपने साथ हो रहे अत्याचार पर प्रतिक्रिया तक दे सके।
दरअसल, सामाजिक तौर से इन संस्थाओं ने ही हमें ऐसा बना डाला है। जहाँ अरमानों के पंख लगने शुरू भी नहीं होते वही बड़ी ही कुशलता से पंखों को कुतर नींव को कमजोर करने का खेल खेला जाता है।
यह भी एक वजह है कि भारत जैसे देश में जन्म लेते ही राजनीति तो सीख लेते हैं पर सिस्टम से लड़ने की हिम्मत सीख नहीं पाते। यहीं वजह है कि युवाओं के इस देश में युवा राजनेताओं का अकाल पड़ा हुआ है। चपरासी तक बनने को बहुतेरे मिल जायेंगे। चपरासी के सवा सौ पद के लिए लाखों की संख्या में आवेदन आ जाएंगे पर नेता बनने की बात हो तो यही युवा लकवाग्रस्त हो जाते हैं। अपने आसपास युवा नेताओं पर जरा नजर घुमायें सड़क छाप लफंगों का स्टैंडर्ड इनसे बेहतर नजर आता है।
युवाओं को अपंग बनाने का जतन अपना काम पूरा कर चुका होता है और इन्हें लगभग अपंग बना दिया जाता है। अब इन जैसे लोगों के सहारे सिस्टम से लड़ने की फिर बात शुरू ही कहाँ होती है।
इन दुश्वारियों के बावजूद समाज में सोशल मीडिया के कारण बदलाव देखने को मिल रहे हैं। फेसबुक पर बने तमाम ग्रुप्स आज छात्रों को एकदूसरे से जोड़े रखने में कामयाब हो रहे हैं। छात्रों का जो गुस्सा एसएससी परीक्षाओं में हो रही धांधली को लेकर दिल्ली के लोधी रोड पर देखने को मिल रहा है उसमें इन सोशल साइट्स का काफी योगदान है। कई सालों बाद ही सही मगर छात्र भ्रष्टाचारियों के खिलाफ अपनी मांगों को लेकर संघर्ष कर रहे हैं इसकी सराहना तो की जानी चाहिए।
दरअसल, परीक्षाओं में धांधली कोई नई बात नहीं रह गयी है। यह अनवरत रूप से कई वर्षों से चलती आ रही है। अलग अलग तरीकों से माफियाओं द्वारा कर्मचारियों की मिली भगत से इस खेल को अंजाम दिया जाता रहा है।
बस समय के साथ धांधली के तरीके का स्वरूप बदलता रहा है। छात्रों को कुछ घंटे पूर्व प्रश्नपत्र उपलब्ध कराना हो या बदले हुए अभियर्थियों का परीक्षा देना ऑनलाइन परीक्षा आयोजित किये जाने के बाद अब यह पुराना हो चुका है।
अब सीधे सॉफ्टवेयर द्वारा धांधली को अंजाम दिया जा रहा है जिससे कहीं दूर से बैठकर आपके कंप्यूटर को कंट्रोल किया जा सकता है। कई छात्रों का कहना है कि जिन सेंटर्स पर एग्जाम हो रहे हैं, वहां के कुछ लोग ही इसमें गड़बड़ी करवा रहे हैं। एसएससी के कुछ जिम्मेदार लोगों की भी संलिप्तता से भी इंकार नहीं किया जा सकता।
छात्रों का आरोप है कि एसएससी में परीक्षा की आड़ में बड़ा घोटाला हो रहा है। लाखों-करोड़ों वसूल कर नौकरियां बेची जा रही है। छात्रों की अब मांग है कि एसएससी की सीजीएल परीक्षा में हुई गड़बड़ी की जांच सीबीआई जैसी एजेंसी से कराई जाए।
एसएससी परीक्षा में हो रही धांधली के खिलाफ छात्रों का संघर्ष किस अंजाम तक पहुंचता है यह तो आने वाला वक़्त ही बतायेगा मगर अब यह दिख रहा है कि किस प्रकार सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ़ लगाए जाने वाले तमाम दावे अब धीरे धीरे झुठलाते नजर आ रहे हैं।