किसी चौराहे या पार्क में नीले रंग की एक मूर्ति, जिसके हाथ में किताब दबी हुई है, इस किताब के ऊपर मोटे-मोटे अक्षरों में संविधान खुदा हुआ है और दूसरे हाथ की एक उंगली आसमान की तरफ इशारा करती है। इस उंगली का इशारा क्या है? बाबा साहब की इस उंगली का मतलब कुछ भी हो लेकिन ऊपर की ओर उठी आसमान की तरफ इशारा करती उंगली आज खतरे में है, कहीं उंगली तोड़ी जा रही है, कहीं उंगली समेत पूरी मूर्ति। आखिर क्यों? जवाब बहुत आसान है कि कुछ लोग उन्हें पसंद नहीं करते। पसंद न करने का कारण क्या है? क्योंकि वे उनकी विचारधारा के नहीं हैं। अम्बेडकर की भी कोई विचारधारा है या थी? सिवाय इसके कि वे सबको एकसमान मानते थे, महिला-पुरुष, जाति, धर्म जैसी कोई चीजें उनके लिए कोई मायने नहीं रखती थीं, यही उनकी विचारधारा है।
अम्बेडकर उस विचारधारा का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो मानवता में विश्वास करती है, जिसका मूलमंत्र ही सबकी समानता है। भारत के सदियों के इतिहास में ये समानता सबको हासिल नहीं थी, हर कोई एक दूसरे से दूर था। इस दूरी में कहीं जाति बाधक थी तो कहीं धर्म, महिलाएं पुरुषों से पीछे थीं। उनको घर की चहारदीवारी में कैद कर दिया गया था।
अम्बेडकर ने अर्थशास्त्र की दृष्टि से समझा कि सबकी भागीदारी और सबकी समानता बहुत जरूरी है। भारत जैसे बनते राष्ट्र के लिए हर व्यक्ति की सहभागिता आवश्यक है बिना किसी बंधन के। भारतीय का संविधान, भारतीय परिदृश्य में लिखी गई अब तक की सबसे बेहतरीन किताब है। संविधान एक किताब में लिखे महज कुछ शब्द नहीं हैं। संविधान की किताब में सदियों का इतिहास, चल रहा वर्तमान और आने वाला भविष्य संकलित है। इस किताब को खोलने पर पहले पन्ने पर लिखी भूमिका के शुरुआती शब्द “हम भारत के लोग” एक आदर्श वाक्य है, जिसको हमेशा याद रखा जाना आवश्यक है।
जब संविधान में ‘हम भारत के लोग’ एक शब्द के रूप में जोड़ा जा रहा था, तब उम्मीद की गई थी कि धर्म, जाति, लिंग से ऊपर उठकर हम पहले भारतीय होंगे। इससे पहले हम सबकुछ थे लेकिन नागरिक नहीं थे। केवल वोट और टैक्स देकर नागरिक बन जाना नहीं होता। नागरिकों के कुछ कर्तव्य होते हैं, कुछ अधिकार होते हैं, जो समान रूप से सभी के पास एक समान हैं, न किसी को कम और न किसी को ज्यादा। ये अधिकार कहने को तो सभी को दिए गए हैं लेकिन क्या वास्तविकता में ऐसा है?
संविधान सभा में एक सवाल पूछा गया कि सबकुछ संविधान में लिखने का क्या मतलब है और दूसरा सवाल था कि क्या संविधान देश की जरूरतों और उसकी आकांक्षाओं को पूरा कर सकेगा? जवाब देते हुए डॉक्टर अम्बेडकर ने कहा था कि देश में अभी भी महिलाएं, दलित, मुसलमान तमाम ऐसे वर्ग हैं जिनके अधिकारों की रक्षा करने के लिए जरूरी है कि उनके लिए एक स्थाई व्यस्था जरूरी है।
व्यक्ति को अधिकारों से परिचित कराने वाले भीमराव अम्बेडकर आज खुद अपने अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं। वे प्रतीकों की राजनीति का शिकार हैं, हर दल उन्हें अपना बनाने की कोशिश कर रहा है लेकिन संवैधानिक मूल्यों को ताक पर रखकर।
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यह लेख अमन कुमार के ब्लॉग से लिया गया है।