उत्तर प्रदेश की सुल्तानपुर लोकसभा सीट से बीजेपी सांसद वरुण गांधी के बारे में अक्सर इस बात को लेकर सुर्खियां उड़ती रही हैं कि वह कांग्रेस खेमे में जा सकते हैं। हालांकि, इस बार महज पार्टी बदलने की सुर्खियां नहीं बल्कि कांग्रेस खेमे में जाने की तारीख भी सियासी गलियारों से आई है। अंदरखाने से बताया जा रहा है कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से वरुण गांधी की मीटिंग हुई, जिसमें खेमा बदलने को लेकर चर्चा हुई और तारीख निकली 10 फरवरी। हां, कहा यह भी गया है कि तारीख में हो सकता है कि हेरफेर हो जाए लेकिन महीना फरवरी (2019) ही रहेगा। बाकी साहब यह दावा कित्ता सटीक बैठता है, यह तो 10 फरवरी या महीने की आखिरी तारीख को ही तय होगा।
बाकी अब आइए वरुण गांधी के बारे में जानते हैं। दरअसल, वरुण इंदिरा के भौकाली बेटे (नसबंदी ऐलान को लेकर) संजय गांधी के सुपुत्र हैं। मां मेनका गांधी भी बीजेपी में पावरफुल लेडी के तौर पर जानी जाती हैं। यूपी के पीलीभीत से 9 मार्च 2009 को 29 साल के वरुण गांधी एक बयान से हाइलाइट हो गए थे। तब वरुण ने कहा था कि किसी ने हिंदुओं पर हाथ उठाया तो उसका हाथ वह खुद काटेंगे। इस बयान को लेकर वरुण गांधी पर रासुका तक लगा लेकिन इसी एक बयान ने वरुण गांधी को ‘नाम’ दे दिया। हालांकि, इन दिनों वरुण बीजेपी में ही हाशिए पर हैं। वह पार्टी के महासचिव के साथ-साथ पश्चिम बंगाल के प्रभारी भी रहे हैं लेकिन फिलवक्त इन दोनों ही पदों से वरुण को दूर किया जा चुका है।
राजनाथ का समर्थन करना वरुण पर पड़ा था भारी
2014 के लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी में इस बात को लेकर मंथन चल रहा था कि बतौर प्रधानमंत्री कैंडिडेट प्रॉजेक्ट किसे करना है। इसी बीच वरुण ने आकर हल्ला मचाना शुरू कर दिया। वह मई 2013 में बरेली में आयोजित एक जनसभा में बोल पड़े, ‘वाजपेयीजी (अटल बिहारी वाजपेयी) की सोच बहुत अच्छी थी। उनका शासनकाल देश के हर बच्चे को याद है। मैं पूरे भरोसे के साथ कह सकता हूं कि आज की तारीख में देश में कोई व्यक्ति जाति और मजहब की दीवार तोड़कर लोगों को साथ ला सकता है तो वह हैं आदरणीय राजनाथ सिंह।’ बस यही बयान वरुण की मुसीबत की वजह बनता चला गया।
इसके बाद तो जैसे बीजेपी में अमित शाह-नरेंद्र मोदी बनाम वरुण गांधी के रूप में द्वंद्व ही छिड़ गया। कोलकाता में फरवरी 2014 में नरेंद्र मोदी की एक रैली आयोजित हुई। रैली के बाद चर्चा भीड़ को लेकर हो रही थी। वरुण ने ऐंटी अवतार दिखाया, बोले, ‘मीडिया के पास गलत आंकड़ा है। रैली में दो लाख लोगों के आने की बात पूरी तरह गलत है। महज 40 से 50 हजार से ज्यादा नहीं थे।’ पार्टी में शायद उन दिनों चल रहे मंथन में नरेंद्र मोदी के नाम को लेकर अंदर ही अंदर एक बड़े वर्ग ने सहमति बना ली थी। राजनाथ सिंह ने अध्यक्ष पद छोड़ा और अमित शाह की एंट्री हुई। दूसरी तरफ अगस्त 2014 में जब अमित शाह ने अपनी नई टीम का ऐलान किया तो वरुण को महासचिव पद से हटा दिया गया था। यही नहीं, बंगाल की जिम्मेदारी भी उनसे छीन ली गई।
2017 में खुद को सीएम कैंडिडेट प्रोजेक्ट करते रह गए वरुण
इसके बाद बारी आई 2017 में हुए यूपी विधानसभा चुनाव की। इलाहाबाद में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक आयोजित (जून 2016) की गई थी। आज का प्रयागराज उस दौरान वरुण गांधी के पोस्टर्स से पट चुका था। कार्यकारिणी के मेन पोस्टर में जहां मुरली मनोहर जोशी और लालकृष्ण आडवाणी गायब थे वहीं, वरुण के पोस्टर से अमित शाह गायब थे। एक तरफ नरेंद्र मोदी और दूसरी तरफ वरुण गांधी….इसके साथ ही साफ संदेश देने की कोशिश की गई कि यूपी में वरुण के प्रशंसक चाहते हैं कि उनके नेता को ही मुख्यमंत्री पद की कमान मिले। हालांकि, केशव प्रसाद मौर्य ने बयान दिया- ‘यह आधिकारिक पोस्टर नहीं है। जिन पोस्टर्स में नरेंद्र मोदीजी के साथ बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष या अमित शाह नजर आते हैं, वही आधिकारिक पोस्टर होगा।’ वरुण के प्रशंसकों समेत खुद सांसद को एक बार फिर बड़ा झटका लगा। वरुण पर हिंदू युवा वाहिनी के मुखिया योगी आदित्यनाथ भारी पड़ गए।
बहरहाल, अब वरुण धीरे-धीरे बीजेपी के कार्यक्रमों से भी खुद को दूर करते जा रहे हैं। 2019 लोकसभा चुनाव को लेकर मेरठ में दो दिनों तक राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक चली। बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह समेत सभी दिग्गज शामिल हुए लेकिन बैठक में न तो केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्री मेनका गांधी नजर आईं और न ही उनके बेटे वरुण गांधी। इस बैठक में बहराइच से सांसद सावित्री बाई फुले भी नहीं पहुंची थीं और उन्होंने बाद में बीजेपी से इस्तीफा दे दिया।