माहौल देखते हुए राम मंदिर पर फैसले के मूड में सुप्रीम कोर्ट

राम मंदिर

लोकतंत्र एक अच्छी व्यवस्था है। बहुत तगड़े बहुमत वाला लोकतंत्र एक बुरी व्यवस्था है। क्योंकि फिर वह लोकतंत्र नहीं कुछ चुने हुए लोगों का तंत्र हो जाता है। वर्तमान में बीजेपी का शासन कुछ ऐसा ही है। आप सहमत हों या ना हों, बीजेपी अब जो चाहती है तो वह कर सकती है। अनुच्छेद 370, तीन तलाक बिल और और ऐसे कई बिल उदाहरण हैं।

ऐसा ही एक मुद्दा रहा है राम मंदिर। जनसंघ बनने के समय से अजेंडे में रहा राम मंदिर। अजेंडे में ही अनुच्छेद 370 भी था। और तीन तलाक भी। ऐसे में बीजेपी के लिए राम मंदिर मुद्दा ‘सफलता’ की एक और सीढ़ी होगा। बीजेपी समर्थक हिंदू वर्ग जोश में है। व्यवस्था पूरी तरह कंट्रोल में और ज्यादातर संस्थान सत्ता के दबाव में। ऐसे में अयोध्या विवाद में राम मंदिर के पक्ष में फैसला आना अब स्वाभाविक सा लगने लगा है।

राम मंदिर को खारिज नहीं कर रहे मुस्लिम पक्षकार

कई लोगों का कहना है कि 2010 में हाई कोर्ट के फैसले ने ही तय कर दिया था कि मंदिर पक्ष ही है। बीते कुछ दिनों में दबाव, कूटनीति या फिर यूं कहें कि हवा देखते हुए बाबरी मस्जिद के कई पक्षकार भी मंदिर के लिए जमीन छोड़ने को तैयार दिखाई देने लगे हैं। सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाए गए मध्यस्थता पैनल में भी अंदरखाने खबर है कि समय कम मिला नहीं तो पक्षकार मंदिर के लिए राजी हो गए होते। हालांकि, इसमें कुछ शर्तें बाधा बन रही थीं।

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अब सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की दैनिक सुनवाई शुरू कर दी है। पांच जजों की इस बेंच के अगुवा चीफ जस्टिस रंजन गोगोई हैं। रंजन गोगोई नवंबर में रिटायर हो रहे हैं। नवंबर से पहले ही इस मुद्दे पर फैसला आने की पूरी की पूरी संभावना है। क्योंकि फैसले के बाद की स्थिति को लेकर अब कोर्ट भी ‘आश्वस्त’ है। कोर्ट भी देख सकती है कि वर्तमान सरकार ‘कंट्रोल’ करने में काफी माहिर है।

चुनाव से पहले आशंकित था कोर्ट

पुलवामा हमले से पहले बीजेपी की स्थिति थोड़ी बहुत खराब थी। तब तक संभवत: रंजन गोगोई को भी लग रहा था कि बीजेपी दोबारा सत्ता में नहीं लौटने वाली है। इसी के चलते उन्होंने कहा था कि और भी जरूरी मुद्दें हैं, जिनपर सुनवाई होनी है। फिर मध्यस्थता पैनल बनाकर भी समय काटा गया। लेकिन अब संभवत: रंजन गोगोई ने भी फैसला देने का मन बना लिया है। चुनाव से पहले शायद रंजन गोगोई को आशंका भी रही होगी कि फैसले पर देशभर में हंगामा हो सकता है। लेकिन अब सरकार की ‘कंट्रोलिंग’ पावर को देखते हुए उन्हें भी यह अनुकूल समय लग रहा हो।

‘बीजेपी एक देश-एक चुनाव नहीं, एक राष्ट्र-एक पार्टी चाहती है’

उधर मंदिर के पक्ष में माहौल बनता देखकर विश्व हिंदू परिषद ने अयोध्या की राम मंदिर कार्यशाला में काम शुरू करवा दिया है। पत्थरों को साफ किया जा रहा है और तमाम पक्षकार मिमियाते दिख रहे हैं। ऐसे में साफतौर पर बहुसंख्यक हावी होते दिखाई दे रहे हैं और ‘जनसंघ’ की विचारधारा एकबार फिर से कामयाबी की ओर है।

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