ना सुबह से एक आलू बिका है, ना बिका एक कांदा

”ना सुबह से एक आलू बिका है और ना बिका एक कांदा” ये एक फिल्मी डायलॉग है लेकिन यही आज के किसानों की हकीकत भी है। किसान का न आलू सही दाम पर बिक रहा गया और न टमाटर, जिसकी वजह से किसान जगह-जगह विरोध कर रहे हैं। अभी कुछ दिनों से छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले के किसान सड़कों पर टमाटर फेंक रहे हैं। दुर्ग के एक गांव परसुली में ही लगभग 100 क्विंटल टमाटर या तो जानवरों को खिला दिए गए या सड़ने के लिए खेतों में ही छोड़ दिए गए और यूपी तो याद ही होगी आपको जहां किसानों ने राजभवन के सामने ही आलू डालकर विरोध जताया था। इन सबसे आपको लग रहा होगा कि किसान पागल हो गया है, अपना ही नुकसान कर रहा है लेकिन आप सोच कर देखो कि आप पूरे महीने मेहनत करो और सैलरी जितनी होनी चाहिए उसका मात्र एक हिस्सा ही आपको मिलेगा तो आप क्या करेंगे? अब अपनी जगह किसान को रखकर देखिए उसके साथ क्या हो रहा, किसका साथ और किसका विकास हो रहा है देश में?

अगर आपको लगता है कि यह हाल बस यूपी-बिहार के किसानों का है और बाकी किसान बहुत खुश हैं तो आप थोड़ा रुकिए, आप जल्दबाजी कर रहे हैं। फैसला लेने से पहले आप साउथ की तरफ चलिये वहाँ भी यही हाल है। तमिलनाडु के इरोड जिले के किसान बहुत परेशान हैं। वहाँ पत्तागोभी उगाने वाले किसान घटती कीमत से परेशान है, जहाँ इन किसानों को पिछले साल एक किलो पत्तागोभी की कीमत 12 रुपये मिलती थी, अब वही घटकर औसतन एक रुपया प्रति किलो ही रह गई है। जो कीमत किसान लगा रहा है, वो भी उसे नहीं मिल पा रही है फायदा तो बहुत दूर की बात है।

देश में महंगाई भी कम होने का नाम नहीं ले रही, हम 100 रुपये किलो टमाटर ले रहे हैं और किसान को उसका एक चौथाई दाम ही मिल पा रहा है। क्या इतनी कम कीमत के बाद भी किसान किसानी कर पाएगा? सरकार न जाने कितने वादे कर चुकी है, फसलों की MSP को लेकर लेकिन वो मुद्दे भी जुमले ही बन कर रह गए। ऐसे ही सरकार चलती रही तो किसानो की आय दुगनी तो छोड़ दीजिए आधी भी नहीं रह जाएगी। अब आपका वो नारा कहाँ गया ‘जय जवान जय किसान’ देश मे किसान को अपनी फसल की सही कीमत नहीं मिल रही और एक जवान ‘श्री’ नहीं बोलता है तो उसके एक दिन की तनख्वाह काटने को कहा जा रहा है।

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