क्या आप सोच सकते हैं कि लाखों टन वजन वाले पानी के जहाजों को सिर्फ पानी के दम पर लगभग 25 मीटर ऊपर उठा दिया जाए. पनामा कैनाल यानी पनामा नहर. लमसम 80 किलोमीटर लंबी इस नहर को बनाने का आइडिया 15वीं शताब्दी में आया. लेकिन बीमारी, गरीबी, टेक्नॉलजी की परेशानी और तमाम दुविधाओं के बाद इसका काम पूरा हुआ 1914 में. उसके बाद से ही यह दुनिया की पहली ऐसी नहर बन गई है, जो अपनी टेक्नॉलजी के लिए जानी जाती है.
गाटुन झील में बना है ये गेट
दरअसल, प्रशांत महासागर और उत्तरी अटलांटिक महासागर (कैरेबियन सी) को जोड़ने वाली ये नहर गाटुन (Gatun) झील से होकर गुजरती है. यही झील ही इस नहर के रास्ते को बेहद खास बनाती है. प्राचीन काल में जब ये नहर नहीं बनी थी तो पूर्वी अमेरिका से पश्चिमी अमेरिका, या यूरोप से पश्चिमी अमेरिका जाने के लिए लगभग 12679 किलोमीटर का एक्स्ट्रा रास्ता तय करना पड़ता था.
तो उस समय के तिकड़म बाजों ने दिमाग लगाया कि यार दोनों तरफ समुद्र है, बीच में झील. हर तरफ पानी है ही तो क्यों ने इसी में से निकल जाया जाए. अब ये कोई मोटरबोट तो है नहीं कि लेकर भुर्रर से निकल जाओगे. इसके लिए लगता है पूरा इंजीनियरिंग.
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26 मीटर का है ऊंचाई में अंतर
दिक्कत ये थी कि गाटुन झील प्रशांत महासागर और अटलांटिक महासागर से 26 मीटर ऊंची है. मतलब लगभग आठ मंजिला बिल्डिंग जितनी ऊंचाई पर. हो गया न काम. अब सोचो कि जाना कैसे है. रास्ता ऐसा है कि एक तरफ प्रशातं महासागर, बीच में गाटुन झील जो कि 26 मीटर ऊंचाई पर है और दूसरी तरफ अटलांटिक. अब पानी का जहाज सीढ़ी लगाकर तो चढ़ नहीं सकता. लेकिन बी. टेक वालों के अंदर होता है बहुत ज्यादा कीड़ा. इन्होंने कहा, ऐसे कैसे नहीं जा सकते है. तो प्लान बना सीढ़ी ही बना लेने का. ये जो सीढ़ी बनाई गई है. यही अपने आप में इंजीनियर्स की बहुत बड़ी कामयाबी है.
पहले तो नहर खोदी गई. इस पार से उस पार मामला क्लियर. फिर जहां से गेट बनाए गए. वहां तो पानी का स्तर 26 मीटर ऊंचा बनाया गया. यहीं बना दी गई लिफ्ट. लिफ्ट ऐसी जो लाखों टन वजनी जहाज को उठाती है, आगे सरकाती है और 26 मीटर की ऊंचाई वाले पानी में पहुंचा देती है.
ऐसी लिफ्ट जो पानी के जहाज उठा देती है
दूसरी तरफ भी ऐसी ही लिफ्ट बनाई गई है. ये धीरे-धीरे करके जहाज को ऊंचाई वाले पानी से नीचे वाले पानी में उतार देती है. नहर के दोनों तरफ गेट बनाए गए हैं. जिनको लॉक बोला जाता है. यही लॉक ही जहाज को चढ़ाने या उतारने का काम करते हैं.
समझिए कैसे- मान लीजिए आप जहाज लेकर आए, आपको सामने गाटुन झील में जाना है. पहले आप लाइन में लगेंगे. आगे तीन चेंबर बने हैं. 26 मीटर को तीन बार में पार किया जाता है. 8-9 मीटर एक बार में. होता ऐसा है कि इन चेंबर के गेट इतने मजबूत हैं कि ये पानी और जहाज सबका वजन थाम लेते हैं. पहले आपका जहाज पहले चेंबर में जाएगा और गेट बंद कर दिया जाएगा. जब आप इस चेंबर में जहाज घुसाते हैं तो पानी का स्तर बराबर होता है, लेकिन गेट बंद होने के बाद इसमें लगभग चार करोड़ लीटर पानी भर दिया जाता है. इतने पानी से जहाज लगभग 8-9 मीटर ऊपर उठ जाता है और दूसरे वाले चेंबर के बराबर पहुंच जाता है.
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अब दूसरे चेंबर का गेट खुलता है और जहाज दूसरे चेंबर में जाता है. गेट फिर बंद होता है और अब आप दूसरे चेंबर में हैं. अब दूसरे चेंबर में पानी भरा जाता है और जहाज फिर से 8-9 मीटर ऊपर उठ जाता है. अब जहाज तीसरे चेंबर के बराबर पहुंच जाता है. एक बार फिर से पानी भरकर जहाज उठाया जाता है और अब ये जहाज गाटुन झील की सतह के बराबर पहुंच जाता है. अब आखिरी गेट खोल दिया जाता है और जहाज आराम से गाटुन झील में प्रवेश कर जाता है.
एक मजेदार बात और है कि एक चेंबर से दूसरे चेंबर में जाने के लिए जहाजों को रेल के इंजनों से खींचा जाता है. चेंबर के दोनों ओर रेल की पटरियां बिछी हैं. इन्हीं इंजनों से टोचन करके जहाजों को खींचा जाता है और दूसरे चेंबर में पहुंचाया जाता है.
दूसरी तरफ उतारे जाते हैं जहाज
अब गाटुन झील पार करने के बाद एक और गेट मिलता है. इसमें उतारने की प्रक्रिया होती है. ठीक वैसे ही यहां भी तीन चेंबर हैं लेकिन यहां वो प्रक्रिया उल्टी होती है. मतलब जहां एक चेंबर में जहाज 8 मीटर ऊपर जा रहा था, इस बार नीचे आता है. ऐसे करके जहाज समुद्र के लेवल पर आ जाते हैं.
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ये पूरी प्रक्रिया काफी खर्चीली और दिमाग वाली है लेकिन इसका विकल्प इससे भी ज्यादा खर्चीला है, क्योंकि अगर ये नहर न हो तो जहाजों को लगभग 12 हजार किलोमीटर का रास्ता नापना पड़ेगा. अब ये प्रक्रिया होती इतनी जटिल है कि लगभग 80 किलोमीटर का रास्ता तय करने में जहाजों को 10 घंटे का समय लगता है. फिर भी ये समय 12 हजार किलोमीटर चलने में लगने वाले समय की तुलना में बहुत कम है.
ये नहर पनामा नाम के एक छोटे से देश में है. इस देश की कमाई का सबसे बड़ा इसी सिर्फ इसी नहर से ही आता है. क्योंकि साल भर में यहां से लाखों जहाज गुजरते हैं.