जैसे बिन बोए उग आती है घास
जमीन के हर हिस्से पर
ठीक वैसे ही
कुछ लड़कियां उगती हैं शहर की हर गली –
हर नुक्कड़ से घास की तरह
इनका हरापन तुम्हें ललचाता तो है
मगर तुम इन्हें घर से दूर ही रखते हो
क्योंकि
हर हरी चीज गमले में नहीं लगाई जाती।
ये कभी बुरा नहीं मानतीं
खुद को पैरों तले कुचले जाने से।
तुम्हारे पांव की हर ठोकर से
थोड़ा जख्म जरूर उभरता है
हां मगर! अगले ही पल तैयार खड़ी मिलती हैं
एक और ठोकर के लिए
जैसे खेतों के सिरहाने
सहमी हुई घास रौंदी जाती है।
तुम्हारे निर्मम पैरों तले ठीक उसी तरह
ये लड़कियां भी हर रोज कुचली जाती हैं
तुम्हारी गंदी देह से।
घास इन कोठेवालियों की दूर की रिश्तेदार है।-इफ़्तिख़ार आयशा ख़ान