किसी शायर की लोकप्रियता का आलम क्या होना चाहिए, उसकी शायरी, उसका अंदाज या उस शायर की शख्सियत. कैफी आजमी हिन्दुस्तान के एक ऐसे अजीम शायर रहे जो अपनी शायरी, अपने गजल अपने फ़िल्मी गीतों, देशभक्ति गीतों, सामाजिक और राजनीतिक गतिविधियों के चलते अपने समय के बेहद चर्चित उर्दू शायर रहे. आज भी जब कैफी आजमी का जिक्र होता है तो ना सिर्फ एक शायर बल्कि एक ऐसे नायक की छवि सामने आती है जिसनें मानवीय एहसासों के साथ-साथ सामाजिक और राजनीतिक दर्शनों को भी अपने शब्दों में पिरोया.
उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले में जन्में अख्तर हुसैन रिजवी उर्फ कैफी आजमी ने मात्र ग्यारह साल की उम्र में शायरी लिखनी शुरू कर दी थी. और किशोर होते-होते मुशायरे में शामिल होने लगे.
कैफी आजमी मुंबई गए तो राजनीतिक कारणों से, लेकिन वे वहां ताउम्र शायर और गीतकार बन गए. दरअसल, 1943 में साम्यवादी दल ने मुंबई कार्यालय शुरू किया और वहां की जिम्मेदारी देकर कैफी आजमी को ही भेजा गया. इस दौरान उन्होंने उर्दू जर्नल ‘मजदूर मोहल्ला’ का संपादन भी किया.
इसके बाद कैफी आजमी शायरी और गजल लिखते रहे लेकिन फिल्मों में पहली बार लिखने का मौका 1951 में आई फिल्म बुजदिल में मिला. कैफी आजमी की रोमांटिक और प्रभावी लेखन ने ना सिर्फ गीतकार बने बल्कि पटकथाकार के रूप में भी स्थापित हो गए. 1973 में एक गंभीर बीमारी से उबरने के बाद कैफी आजमी ने अपना जीवन दूसरों को समर्पित कर दिया. उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले में स्थित अपने गांव में उन्होंने कई सामाजिक कार्य करवाए.
कैफी आजमी के लिए कई सुपरहिट गीत हैं जो आज भी दर्शकों के दिल में छाए रहते हैं. पेश हैं उनमें से पांच गीत जिन्हें कैफी आजमी ने फिल्मों के लिए लिखा था.
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो
फिल्म- हकीकत (1964)
https://www.youtube.com/watch?v=m8haj0-M_2g
ये दुनिया ये महफिल मेरे काम की नहीं
फिल्म- हीर रांझा (1970)
https://www.youtube.com/watch?v=kHFyfcaBZqU
झुकी झुकी सी नज़र
फिल्म- अर्थ(1982)
https://www.youtube.com/watch?v=veLSFpMS6B0
मिलो ना तुम तो हम घबराए, मिलो तो आँख चुराए
फिल्म: हीर रांझा (1970)
तुम जो मिल गए हो, तो ये लगता है
फिल्म – हंसते जख्म (1973)
https://www.youtube.com/watch?v=lYA4MviyJL0