कविताईः नए बरस की आमद और रद्दी होते कैलेंडर का दर्द
बरस के बीतते इन आखिरी दिनों में/ कैलेंडर की अहमियत घट रही है।
जहां बातें होंगी हिंदी इस्टाइल में
बरस के बीतते इन आखिरी दिनों में/ कैलेंडर की अहमियत घट रही है।
थाती से कविता मिली और प्रतिभा से सिंहासन। अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय राजनीति के इतिहास के कभी न मिट सकने…
हैं और भी दुनिया में सुखनवर बहुत अच्छे कहते हैं कि ग़ालिब का है अंदाजे बयां और जिन लोगों ने…
यह रिवर्स टैलेंट का दौर है,जब संघर्षों की आवश्यक प्रक्रियाएं रोचक कहानियों के आवरण में सहानुभूतिक शब्दों के टैगलाइन के…
बता दे ये जमीं कैसे तुझे आजाद लगती है जहाँ हक माँगना मजलूम की फरियाद लगती है। कि जिनको है…