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ख़ुदकुशी…भवेश दिलशाद (शाद) की नज़्म
इसी इक मोड़ पर अक्सर गिरा जाता है ऊंचाई से अपनी ज़ात और ख़ाका मिटाया जाता है सब कुछ हो जिसमें ये सिफ़अत, क़ूवत कि जो अपना सके, जो घोल पाये सब कुछ अपने में
ग़मे-दिल और ग़मे जानां कहे बिन सह सके जो सब किसी इतनी बड़ी हस्ती के पहलू में किया जाता है सब कुछ गुम.
अफगानिस्तान पर तालिबानी कब्जा, निवेश बचाने के लिए दुनिया मौन!
तालिबान. एक आतंकी संगठन. दो दशक बाद तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्ज़ा कर लिया है. अभी तक अमेरिका के दम…
वाह रे अपनी सुब्ह-ए-बनारस, घाट के पत्थर जैसे पारस
काशी न सिर्फ शिव की नगरी अपितु गंगा की और संगीत की नगरी है। संगीत जो वहाँ गंगा के कल-कल,…
