ग्रामीण भारत

‘हर घर पानी, सबको मकान’ बड़े धोखे हैं इस राह में…

जब से समाज समझने की समझ पैदा हुई, यही सुनते आए हम कि भारत की आत्मा गांव में बसती है. सबको पता है लेकिन उस आत्मा का ख्याल क्यों कोई नहीं रखता. रखना चाहिए न? नहीं रखेंगे, तो भारत का तो मरना तय है. शर्तिया.

अपने पहले बजटीय भाषण में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने एक बार फिर यही स्लोगन दोहराया. उन्होंने कहा कि भारत की आत्मा की गांव में बसती है. उन्होंने अपने भाषण में गांव, गरीब और किसान का जिक्र किया है.

प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, सोलर उर्जा, मत्स्य संपदा योजना, कौशल्य योजना ग्रामीण भारत, पीएम किसान सम्मान निधि योजना, प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना, प्रधान मंत्री जन औषधि योजना, सांसद आदर्श ग्राम योजना और प्रधानमंत्री आवास योजना जैसी कितनी योजनाएं हैं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लेकर आए हैं.

सच बताएं, उन्हें कितनी योजनाएं हैं, जिनका लाभ मिल रहा है. गांव जाइए, देखिए. नज़ारे बेहद अलग हैं.

लोकल डिब्बा को फेसबुक पर लाइक करें।

पानी नहीं है, पानी पहुंचेगा कैसे?
अपने भाषण में निर्मला सीतारमण ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस वादे को भी दोहराया जिसमें उन्होंने जिक्र किया था कि 2024 तक हर घर में में वॉटर सप्लाई के जरिए पानी पहुंचाया जाएगा. ध्यान देने वाली बात यह है कि देश में 1,592 ब्लॉक ऐसे हैं, जहां पानी का इतना ज्यादा दोहन हो गया कि वहां भूमिगत जल का भी संकट हैं. यानी, धरती से आर-पार सूखा.

नीति आयोग की मानें तो जैसे हालात हैं उसके मुताबिक 2020 तक 21 शहरों में तो भूजल पूरी तरह से खत्म हो जाएगा. जब पानी रहेगा नहीं, पानी पहुंचाएंगे कहां से.

हरित क्रांति के नाम पर यूं कंपनियों के गुलाम बन गए किसान

Drought Early Warning System (DEWS) की रिपोर्ट के मुताबिक धरती का लगभग 42 फीसदी हिस्सा ‘असामान्य रूप से सूखाग्रस्त’ है, जो बीते साल की तुलना में छह फीसदी अधिक है. सूखा के लिए वॉचडॉग संस्था DEWS ने मई में अपनी लिस्ट अपडेट की है. चेतावनी दी गई कि असामान्य रूप से सूखाग्रस्त इलाके का हिस्सा बढ़कर 42.61 फीसदी हो गया है, जो एक हफ्ते पहले (21 मई) 42.18 फीसदी था. यह वृद्धि 28 अप्रैल के अपडेट से 0.45 फीसदी है.

28 अप्रैल को यह 42.16 फीसदी था. यह स्थिति 27 फरवरी को थोड़ी बेहतर थी, जब 41.30 फीसदी इलाका असामान्य रूप से सूखाग्रस्त था. देश के हालात बीते साल के मुकाबले बदतर हो गए हैं. देश का 36.74 फीसदी इलाका असामान्य रूप से 28 मई, 2018 को सूखे की चपेट में था. ‘गंभीर रूप से सूखे’ की श्रेणी के इलाके में वृद्धि हुई है.

पानी बचाना जरूरी है. पानी के लिए लड़ना जरूरी है. सरकार के भरोसे रहेंगे तो बूंद-बूंद को मरेंगे. जल संरक्षण पर सरकार को स्कीम चलानी चाहिए, जिससे वे भूमिगत जल का संचय कर सकें. इसके लिए घर-घर पानी पहुंचाने से अच्छा है, घर-घर जागरूकता फैलाएं. पानी पहुंचाना गलत नहीं है लेकिन इस लायक उस क्षेत्र के लोगों बना देना सही है कि वे अपने पीने भर का पानी इकट्ठा कर ले जाएं. ग्रामीण भारत की तस्वीर भी बदलेगी.

योजनाएं ठीक, काम में धोखा

केंद्र सरकार की ये सभी योजनाएं प्रशंसनीय हैं, लेकिन अगर इन्हें जमीनी स्तर पर उतारा जा सके तो. नियत समय के भीतर इनका परिणाम हासिल करना अपने-आप में एक चुनौती है. गरीबी हटाओ का नारा 1971 में ही लगा था. अब तक टस से मस नहीं हुई गरीबी. ऐसे में ग्रामीण भारत के उदय का सपना कब तक साकार होगा, कहा नहीं जा सकता.

ये दावे कुछ फरेबी हैं..
2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य रखा गया है लेकिन सतही स्तर पर काम नहीं हुआ है. जहां सरकारी क्रय केंद्र हैं, वहां अगर किसान अपनी फसलें बेच दें तो भुखमरी से मर जाएं. साहूकारों को लुटेरा ही समझना चाहिए, डॉक्टरों की तरह. वे ऐसा इलाज करते हैं कि मौत न हो लेकिन इलाज जो कराए वो जी भी न पाए. किसानों की आय दोगुनी करने की योजना, योजना ही रह जाने की उम्मीद है.

न्यूनतम समर्थन मूल्य का वादा, वादा ही रह जाने की उम्मीद है. किसान माल वहां बेचेगा जहां उसे तुरंत कैश मिले. किसान के पास बैकअप नहीं होता है. गन्ना किसानों का जो हाल है, वही अनाज बेचने वालों का भी होगा अगर सरकार किसानों से अनाज खरीदे तो.

बिन प्रभु कृपा मिले घर नाहीं

निर्मला सीतारमण ने एक वादा और किया है कि ग्रामीण क्षेत्र में 1.95 करोड़ नए घर बनाए जाएंगे. इन घरों में रसोई गैस, बिजली और शौचालय की व्यवस्था होगी. बजट पेश करते वक्त वित्त मंत्री ने कहा कि पहले घर बनाने में 314 दिन लगते थे, अब 114 दिन लगते हैं.

ये दावे किताबी हैं, आंकड़े फरेबी हैं. जमीन पर जाकर देखें, तो उन्हें मकान मिल जाता है, जो प्रधान के करीबी हैं. जिन्हें जरूरत है, उन तक योजना का लाभ ही नहीं पहुंच पाता. जिन्हें लाभ मिलता है, उनसे पूछिए, प्रधान के घर कितनी बार चक्कर मारे हैं. कितनी बार ब्लॉक की परिक्रमा की है.

दलाल अटकाते हैं काम

नए घर बनने की कहानी बेहद अलग है. बेशक केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से ग्रामीण विकास के लिए सारी रकम आवंटित कर दी जाती हो, लेकिन इस राह में दलालों से मुक्ति पाने की कोई राह नहीं है. जिला स्तर से शुरू होता भ्रष्टाचार ग्रामीण स्तर तक जाता है.

जिला मजिस्ट्रेट से लेकर ब्लॉक प्रमुख, सचिव, प्रधान और पंचायत मित्र तक पैसे बंटते हैं. लाभार्थी तक रकम पहुंचते-पहुंचते एक बड़ा हिस्सा कहीं खप जाता है. किसी को भनक तक नहीं लगती. कुछ हजार में घर नहीं बनता, छप्पर छाया जा सकता है.

यह सरकार की नकामी नहीं, विभागीय दिक्कतों की वजह से होती है. कार्यपालिका का भ्रष्टाचार, विधायिका के भ्रष्टाचार से थोड़ा अव्वल ही है.

इंटरनेट एक्सेस
तमाम योजनाओं के बीच इस योजना का भी जिक्र किया जाना जरूरी है. भारत ने किसी और क्षेत्र में अपना प्रदर्श भले ही न किया हो, इस क्षेत्र में भारत का प्रदर्शन बेहतर रहा है. इस बजट में भी भारतनेट योजना के अंतर्गत देश के सभी ग्राम पंचायतों में हाई-स्पीड इंटरनेट ब्रॉडबैंड उपलब्ध कराया जाएगा.

सीतारमण ने अपने बजट स्पीच में कहा कि ग्रामीण डिजिटल साक्षरता अभियान के तहत अभी तक करीब 2 करोड़ ग्रामीण डिजिटल रूप से साक्षर हैं. जल्द ही इस आकडे़ को 6 करोड़ तक पहुचाने की कोशिश की जाएगी. इसमें माना जा सकता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में नेटवर्क ठीक हुआ है, यहां काम हो सकता है. हर घर में मोबाइल की पहुंच हो गई है, इतनी तो उम्मीद की जा सकती है कि भारत में कुछ हो या न हो, इंटरनेट बेहतर हो कर रहेगा. जय हो डिजिटल भारत की.

बहुत कुछ काम बाकी है
गांवों के लिए कुछ करने के दावे हर बार किए जाते हैं, लेकिन धरातल पर आते-आते कृपा अटक जाती है. अंतिम व्यक्ति तक योजनाओं का लाभ पहुंचाने का दावा तो किया जाता है, लेकिन लाभ कहीं बीच में अटक जाता है. सिस्टम में पारदर्शिता लाने के हजार दावे हमेशा किए जाते हैं, लेकिन कितनी पारदर्शिता आ पाती है, यह देखने वाली बात होगी.

गांधी से मोदी तक, लोग गांव-गांव रटते रहे हैं, लेकिन वजह क्या है कि गांव के हालात अभी तक नहीं बदले हैं. जवाब किसी को नहीं पता.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *