शायद बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय जीवित होते और वंदे मातरम पर मची रार से रूबरू होते तो वे या तो माथा पीट लेते या वंदे मातरम लिखते ही नहीं. कमलनाथ ने जबसे किसी भी सरकारी कार्यक्रम में वंदे मातरम गाने की अनिवार्यता को समाप्त किया है तबसे प्रदेश के राजनीतिक गलियारों में खासी उठापटक मची हुई है.
वंदे मातरम की रचना करते समय बंकिम चंद्र चटोपध्याय ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि एक दिन उनकी इस रचना को देशभक्ति के सर्टिफिकेट के तौर पर उपयोग किया जाएगा. उन्होंने जीवित रहते हुए यह भी नहीं सोचा होगा उनके एक गीत को समाज एक दूसरे को मरने मारने पर उतारू हो जाएगा.
मौजूदा दौर में एक अलग तरह के राष्ट्रवाद का उदय हुआ है. नए राष्ट्रवाद को देखकर लगता है कि सामने वाले की देशभक्ति राष्ट्रगीत व राष्ट्रगान के आधार पर तय की जाएगी. किसी मजबूरीवश सामने वाला राष्ट्रगीत को अपने सुकमल होंठो से नहीं गा पाया तो तो शायद उसको देशद्रोही मान लिया जाए. क्या पता अब बुखार मापने की तरह देशभक्ति मापने के थर्मामीटर भी बाजारों में बिकना शुरू हो जाए.
थर्मामीटर बिकते ही शायद लोग उसे लेकर मैदान में उतर जाए. उस थर्मामीटर से ये पता लगाना भी शुरू कर दे कि कौन कितने मन से वंदे मातरम गा रहा है. थर्मामीटर जैसे ही दिखाए कि अमुक व्यक्ति ने राष्ट्रगीत या राष्ट्रगान गाने में कोताही बरती है, तो तसल्ली से उन महोदय की तबीयत हरी की जाए.
इस तरीके से आने वाले समय में भारत का एक एक व्यक्ति शायद देशभक्त बन जाए. इतना सब होने के बाद राष्ट्रगीत व राष्ट्रगान के रचयिता की भी आत्मा भी शायद तृप्त हो जाएगी. उन पुण्य आत्माओं को भी शायद खुशी मिल जाए कि उनके रचनाओं से देशभक्ति का पैमाना मापा जा रहा है. भारत को जरूर इस तरह की मशीनों का निर्माण करना चाहिए, अगर खुद से ये काम न हो पाए तो हर तरह के वस्तुओं के निर्माता चीन से सहयोग लेना चाहिए. बाकि भारत अब पूर्ण हिंदू राष्ट्र की तरह पूर्ण देशभक्त राष्ट्र बनने से कोई नहीं रोक सकता.
(यह लेख सचिन धर ने लिखा है)
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