World Soil Day: आखिर इतनी ज़रूरी क्यों है मिट्टी की सेहत?

आज विश्व मृदा दिवस (World Soil Day) है. मृदा मतलब मिट्टी, ज़मीन, माटी और धरती. वही मिट्टी जिसपर इंसान, जानवर, पेड़-पौधे, कीड़े-मकोड़े, पशु-पक्षी और आंख से न दिखने वाले सूक्ष्म जीवों का जन्म होता है और ये सब आखिर में उसी में मिल जाते हैं. अगर किसी शक्ति ने इस दुनिया का निर्माण किया होगा, तो उसने कभी कल्पना नहीं की होगी कि यह मिट्टी इतनी उपजाऊ होगी. अगर किसी अदृश्य ताकत की वजह से बिग-बैंग नामक घटना हुई होगी, तो उस ताकत ने भी कभी यह नहीं सोचा होगा कि “पृथ्वी” नाम से इस नीले ग्रह की मिट्टी अपने आप में अतुलनीय होगी. खै़र, हमारी मिट्टी इतनी उपजाऊ निकली इस पर ‘जीवन’ संभव हुआ. 

आप जानकर हैरान होंगे कि धरती पर जितने भी प्रकार के जीव-जंतु या जीवित संरचनाएं मौजूद हैं, उनमें से 25 प्रतिशत यानी एक चौथाई सिर्फ़ मिट्टी के अंदर पाए जाते हैं. इंसान रूपी वैज्ञानिक ने धरती पर मौजूद कुल पेड़-पौधों में से अब तक लगभग 80 प्रतिशत के बारे में पता लगा लिया है. लेकिन मिट्टी के अंदर पाए जाने वाली जीवित संरचनाओं में से सिर्फ़ एक प्रतिशत के बारे में ही जानकारी जुटाई जा सकी है.

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अब आते हैं कि मृदा दिवस (World Soil Day) क्यों होता है?

दरअसल, दुनिया के कुछ सयाने और जिम्मेदार लोगों ने हर प्राकृतिक संरचना को बचाए रखने का बेड़ा उठा रखा है. इसी क्रम में मिट्टी, जंगल, पानी, हवा और ऐसी कई चीजों को बचाने की कोशिश की जाती है. सोचिए, मिट्टी को क्या खतरा? इसे शायद काफी पढ़े-लिखे लोग न समझ सकें लेकिन जमीन से फसल उगाने वाले किसान, मिट्टी के सामान बनाने वाले लोग, पशु-पक्षी, जमीन के अंदर रहने वाले कीड़े-मकोड़े और इस तरह की बहुत संरचनाए बखूबी समझती हैं. ऐसा इसलिए है कि उनका जीवन मिट्टी और उसकी सेहत पर निर्भर करता है. 

सदियों से बिगड़ती जा रही मिट्टी की सेहत

इसी मिट्टी की सेहत खराब हो रही है. सालों से नहीं, दशकों से नहीं बल्कि शताब्दियों से. दिन-ब-दिन मिट्टी की सेहत ऐसी बिगड़ रही है कि बेहद उपजाऊ खेत भी बंजर हो रहे हैं. जमीन में रहने वाले जीवों, कीड़े-मकोड़ों और कुछ हद तक इंसानों और पेड़-पौधों पर भी इसका असर हो रहा है. यही सब न हो और मिट्टी अपने मूल स्वरूप में रहे, यही सुनिश्चित करने के लिए मृदा दिवस मनाया जाता है. लक्ष्य है कि लोग इस बारे में जानें, जागरूक हों और वे चीजें न करें जिनसे मिट्टी की सेहत खराब होती है. साथ ही, कोशिश की जाती है कि मिट्टी की सेहत सुधारने की दिशा में कुछ सकारात्मक काम भी किए जाएं. 

भारतीय संदर्भ में बात करें तो मिट्टी की सेहत खराब होने का सबसे बड़ा नुकसान किसानों को उठाना पड़ा है. अच्छे-खासे उपजाऊ खेत अब आईसीयू में हैं. बिना केमिकल फर्टिलाइज़र उनसे उत्पादन लेना काफी कठिन हो गया है. कई जगहों पर फैक्ट्रियों से निकले जहरीले पानी को जमीन के अंदर या खुले मैदान में छोड़ दिया जाता है. इससे न सिर्फ़ वहां की मिट्टी खराब होती है, बल्कि आसपास के इलाकों में भूजल और स्थलीय जल की गुणवत्ता भी बुरी तरह प्रभावित होती है. नतीजतन कई इलाकों में तालाब का पानी पीने से जानवरों की मौत होती है, जंगली जानवर बीमार पड़कर मर जाते हैं. बिना फिल्टर का पानी पीने से इंसान बीमार होते हैं और कैंसर जैसी बीमारियां भी वहां महामारी का रूप लेती हैं.

खेती पर जमीन की सेहत का क्या असर है?

जैसा कि पहले भी मैंने बताया कि जमीन की सेहत का असर किसानों पर ही है. दरअसल, जमीन में स्वाभाविक तौर पर ऐसे कार्बनिक/अकार्बनिक तत्व पाए जाते हैं, जो खेती के लिए फायदेमंद होते हैं. इसके अलावा, केंचुआ, चूहा, नेवला, सांप, मेंढक और ऐसे कई जीव खेत में या उसके आसपास की मिट्टी में किसी न किसी रूप में रहते हैं. केंचुए के बारे में कहा जाता है कि अगर वह आपके खेत में है, तो आपके खेत में खाद की ज़रूरत नहीं है. इस बात को मैंने तब माना जब खुद इसका असर देखा.

अब होता क्या है कि अधिक उत्पादन के लिए खेत में डाली जाने वाली केमिकल युक्त खादें केंचुआ समेत कई सूक्ष्म  जीवों को नष्ट कर देती हैं और मिट्टी की बायोडायवर्सिटी खत्म होने लगती है. जमीन से खरपतवार खत्म करने, दीमक खत्म करने और कई अन्य बीमारियों दो दूर करने के नाम पर जो कार्बनिक खादें डाली जाती हैं, उससे केंचुए नष्ट हो जाते हैं और मिट्टी में हवा का संचार रुकने लगता है. अब हालत यह हो जाती है कि बिना बार-बार जुताई, सिंचाई और खाद डाले आप उस जमीन से कुछ ढंग का उपजा नहीं सकते हैं. 

कैसे सुरक्षित रखें मिट्टी की सेहत?

कई वैज्ञानिकों और किसानों की बात समझने के बाद मैंने खुद इसका प्रयोग किया. अपने एक खेत में मैंने यूरिया, डाई जैसी खादों का इस्तेमाल नहीं किया. उसमें प्राकृतिक खादों का इस्तेमाल करने से एक ही साल में केंचुए वापस आ गए और मिट्टी का रंग बदल गया. यह एक बेसिक फॉर्म्युला है. इसमें आपको मिट्टी में वे चीजें नहीं डालनी हैं, जो उसका नुकसान कर सकती हैं, बल्कि वे चीजें डालनी हैं, जो मिट्टी की सेहत सुधारने का काम कर सकती हैं. 

इसलिए ज़रूरी है कि हम मिट्टी के लिए सिर्फ़ भावुक न हों बल्कि World Soil Day से ही उस दिशा में काम करने की शुरुआत करें. मिट्टी में प्लास्टिक वाला कूड़ा न फेंककर, हानिकारक केमिकल को पानी या जमीन पर न बहाकर, खादों का प्रयोग कम करके, प्लास्टिक का प्रयोग कम करके और दिनचर्या के हिसाब से कुछ बदलाव करके हम सचमुच मिट्टी की सेहत बदल सकते हैं. यकीन मानिए, मिट्टी की सेहत सुधरेगी, तो मिट्टी उसका फायदा आपको और इस दुनिया को ही देगी. क्योंकि, मिट्टी सिर्फ़ और सिर्फ़ दुनिया को देना ही जानती है. इस धरती पर पूरब से लेकर पश्चिम तक और उत्तर से लेकर दक्षिण तक, जो कुछ भी बना है, वह सब इसी धरती से निकला है और क्रम से इसी मिट्टी में मिल भी जाता है. 

इसके लिए आवश्यक है कि हम और आप इस धरती से अगर कुछ लेते हैं, तो उसके प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करें और कम से कम अपने ही हाथों से इस धरती को ज़हर तो न ही दें.