पहले बजट पढ़ा, अब बजट का इंटरव्यू पढ़िए

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नमस्कार, आपका स्वागत है लोकल डिब्बा पर। इस बार बात होगी उसकी जो हर साल आता है, जिसका इंतजार अमीर-गरीब सभी को होता है, जिसकी चर्चा दफ्तर से लेकर चाय की दुकान तक होती है। जी हां, आप एकदम सही समझे, हम किसी और की नहीं बल्कि मोस्ट वॉन्टेड‘बजट जी’ की बात कर रहे हैं। इनके आधार पर ही आपका भी बजट तय होता है। सरकार भी इनका बेताबी से इंतजार करती है और इनके आने से पहले एक हलुआ बनाती है, तो चलिए कुछ सवाल जावाब करते है ‘बजट जी’ से….

फलाने– नमस्कार बजट जी, आपका स्वागत है लोकल डिब्बा पर।
बजट- नमस्कार फलाने जी।

 

फलाने– सबसे पहले तो आप यह बताइए कि अपने आने का वक्त क्यों बदल दिया है?
बजट– बस सोचा चुनाव में भी कुछ योगदान हो जाए, मैं अपने आप को हर बार आखिरी में कटा हुआ पाता था लेकिन इस बार आप कटा हुआ महसूस करगें।

फलाने- आपके छोटे भाई हुआ करते थे रेल बजट, कहां हैं आज-कल वह?
बजट- वो तो अब मेरे साथ ही रहते हैं और सब जगह साथ ही जाते हैं। बस छोटा थोड़ा दुखी है, बोल रहा था कि पहले लोग उसे पूछते थे लेकिन अब तो बिलकुल भूल ही गए। खैर, अब कर ही क्या सकते हैं, जो हुआ सब सही है। अभी तो हम कम से कम मॉर्निग वॉक पर जा पा रहे हैं, विरोध करते तो उसमें भी दिक्कत थी।

 

फलाने- सर आप आते हर साल हो लेकिन वादे 5 साल, 10 साल के लिए क्यों करते हैं?
बजट– देखिए ये इसलिए है, जिससे 5 साल में आप उसे भूल जाएं और अगले साल फिर 5 साल के लिए तैयार हो जाएं। अगर वादा अगले साल का कर दिया तो आप सवाल पर सवाल करेंगे और हम अगली बार क्या मुंह लेकर आएगे क्योंकि जो वादे आते हैं मेरे साथ, वे तो 5 साल क्या 50 साल में पूरे नहीं हो सकते।

फलाने– आप हरदम लोकलुभावन क्यों होते हैं?
बजट– आप लोगों को वही पसंद है तो हमें होना पड़ता है। लोकलुभावन आपकी खुशी के लिए, नहीं तो मेरा क्या मैं तो फकीर आदमी हूं झोला उठा के आ जाऊंगा लेकिन आप सोचिए अगर मैं लोकलुभावन नहीं तो जो आपका क्या होगा जनाबेआली, जो पल भर की खुशी मेरे आने से मिलती है वो भी खत्म हो जाएगी।

 

फलाने– आपको नहीं लगता आप बायस्ड रहते हैं हर साल?
बजट– वो तो मैं रहूंगा, आप(मिडिया) भी तो रहते है, मैंने आपसे कभी पूछा। मैं तो कम से कम हर साल अलग-अलग लोगों के पक्ष में रहता हूं और आप तो पांच साल एक ही पक्ष में रहते हैं।

फलाने– आप अलग कैसे रहते हैं?
बजट– देखिए पहले साल मैं उनके पक्ष में रहता हूं, जिनकी वजह से सरकार आई है, दूसरे साल आधा उनके लिए और आधा उनके लिए जो वोट कम करते हैं लेकिन हैं मेरे यानी मध्यवर्ग से। फिर मैं कुछ सोचना शुरू करता हूं, गरीबों के बारे में, चौथे साल मैं किसान के हिस्से में आता हूं और अंत में सिर्फ उनके लिए आता हूं जिनका वोट मिलना है और लास्ट में मेरे साथ वित्त आयोग भाई भी आते हैं, जो वोट पक्का करते है।

 

फलाने– कई बार आपके आने के बाद भी सरकारे क्यों नहीं बच पाई हैं?
बजट– आप तो जानते ही होंगे की पहले मैं अंतरिम बजट के रूप में आया करता था, कई बंदिशें होती थी मुझ पर लेकिन इस बार मैं पूर्ण रुप से आया हूं तो इस बार पहले से कुछ अलग होने की उम्मीद है।

फलाने- सर सरकार ने तो कहीं नहीं कहा कि आप पूर्ण रूप से आए हैं।
बजट– फलाने जी सब बातें बोली नहीं जाती हैं। कुछ काम सीधे किए ही जाते हैं, वैसे भी ये 2019 है। इसमें कई काम बिना बोले किए जाएगें, लगता है आप 10% वाला भूल गए हैं।

 

फलाने– आपको नहीं लगता कि विपक्ष आपके पूर्णरूप में आने का विरोध करेगा?
बजट– देखिए फलाने जी विपक्ष का तो काम ही है विरोध करना, इस पर क्या ही बोला जाए और एक बात बता दूं मैं इनके विरोध के कारण अपनी खुशियाँ नहीं मार सकता। बस आप देखते रहिए क्या-क्या होता है।

चलिए बजट जी आपसे बात करके अच्छा लगा और कई बातों को समझने का मौका मिला जोकि आपके अलावा कोई नहीं समझा सकता था। अब देखना होगा आपके आने से इस चुनाव में क्या कमाल होता है। क्या आप सरकार बदल पाएगें या आप खुद बदल जाएगें।

About Post Author

अभय

अभय पॉलिटिकल साइंस के स्टूडेंट रहे हैं। वर्तमान में पॉलिटिकल लव से उनकी पहचान बन रही है। राजनीतिक और सामाजिक विषयों को ह्यूमर और इश्क के साथ पेश करना अभय की कला है।
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