बड़े लंबे इंतजार और हां-ना, हां-ना के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप और नॉर्थ कोरिया के ‘सनकी सोल्जर’ कहे जाने वाले सर्वे-सर्वा किम जोंग उन की मुलाकात हो गई। अच्छी बात यह रही कि सबकुछ अच्छा रहा कि दोनों इस मुलाकात के बाद खुश नजर आए और यह बात उनके बयानों में भी दिखी। सिंगापुर एकदम यूपी जैसा लगने लगा, जहां सपा-बसपा की तरह दो पुराने दुश्मन साथ आए लेकिन इस इंटरनैशनल प्लेटफॉर्म पर इनका विरोधी बीजेपी कौन है, यह समझ नहीं आ रहा!
चौंकाने वाली बात तो यही रही कि समथिंग लाइक ‘बीजेपी’ की भूमिका में दिख रहा चीन भी इस मीटिंग से खुश नजर आया। चीन की ओर से कहा गया कि अगर नॉर्थ कोरिया पूर्ण परमाणु निरस्त्रीकरण का अपना वादा निभाएगा तो वे उसपर लगे प्रतिबंधों में से कुछ को वह हटा सकता है। किम जोंग ने ‘बुद्ध’ बनते हुए यह कह दिया है कि वह अपने देश के सारे न्यूक्लियर प्लांट्स को कैंसल करने के लिए काम करेगा।
हालांकि, यह बात कुछ पच नहीं रही है। कहा जाता है कि राजनीति में कोई किसी का पर्मानेंट दोस्त या पर्मानेंट दुश्मन नहीं होता है। भारत जैसे देश भी इस मीटिंग से कुछ ना कुछ सकारात्मक उम्मीद लगाए बैठे हैं लेकिन सवाल अब भी वही है कि इस ‘सपा-बसपा गठबंधन’ के सामने का बीजेपी कौन है? क्या ये दुश्मन सच में दोस्त बन गए हैं? क्या इस मुलाकात के पीछे का कारण चीन को दबाने की अमेरिकी रणनीति है?
हाल के दिनों में भारत-चीन की नजदीकी को बैलेंस करने के तौर पर देखा जाए तो यही नजर आता है कि अमेरिका को उसका नया सहयोग नॉर्थ कोरिया के रूप में मिला है? अगर ऐसा होता है मेरा मानना है कि अपने सामने ये दोनों ‘बीजेपी’ के रूप में भारत और चीन को मान रहे हैं। हालांकि, भारत और चीन का जोड़ भी उसी तरह है जैसा कि कांग्रेस और जेडीएस का।