सारे जहाँ से अच्छा ये गऊसितां हमारा,
लगता है दुश्मन हमको यहाँ हर मियाँ हमारा।
खाती हैं कूड़ा कचरा मरती हैं रोड पर वो,
हर समय ढूँढती हैं, बेटा कहाँ हमारा।
गोदी में खेलती थी जो नदियाँ, बिक गईं हैं,
बेचा ज़मीर हमने जाने कहाँ हमारा।
पर्वत है सबसे ऊँचा, है क़ब्ज़ा चाइना का,
सरहद पे रोज़ मरता, है नौजवां हमारा।
सदियों से पूजता था माँ की तरह वो जिसको,
गाय से अब है डरता वो ही किसाँ हमारा।
गांधी, ग़फ़्फ़ार, गौतम सबको मिटाया हमने,
एक दिन मिटेगा यूँ ही नामो निशाँ हमारा!
सालार क़ाफ़िले का जिसको समझ रहे थे,
हाय उसी ने लूटा, है कारवाँ हमारा।
ख़ामोशी गर जो गूँजी? ज़ालिम!
मरेगा तू भी गूँजेगा अर्श तक के दर्दे निहाँ हमारा।