सिर पर हैं चुनाव, फ्लाइट मोड में क्यों है कांग्रेस हाई कमान?

हरियाणा और महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. भारतीय जनता पार्टी के साथ-साथ अन्य पार्टियां एक्टिव मोड में आ गई हैं. पार्टी का शीर्ष नेतृत्व विधानसभा चुनावों की तैयारियों में जुट गया है. बात चाहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हो, या पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा की. सभी एक सुर में प्रचार मोड में हैं.

पार्टी अध्यक्ष अमित शाह भी दोनों राज्यों में चुनाव की बिगुल फूंक चुके हैं. जब हरियाणा में जन आशीर्वाद यात्रा की शुरूआत हुई, पार्टी के दिग्गज नेता और रक्षामंत्री राजनाथ सिंह पहुंचे. समापन तक अमित शाह और जेपी नड्डा ने भी दौरा कर लिया.

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव चुनाव की तैयारियों के लिए खुद को अमित शाह ने भी झोंक दिया है. बीजेपी कश्मीर में अनुच्छेद 370 पर किए गए फैसले को अब भुना रही है. जाहिर है, बालाकोट एयरस्ट्राइक और कश्मीर का मुद्दा भी इन चुनावों में खूब उठेगा. जब नरेंद्र मोदी चुनाव प्रचार करना शुरू करेंगे तो उनकी भाषा टिपिकल बीजेपी नेता वाली होगी.

लेकिन इन सब के बीच कांग्रेस कहां है, समझना मुश्किल है.

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कांग्रेस में नेताओं का अकाल

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की इन चुनावों में क्या भूमिका होने वाली है, किसी को कानों-कान खबर नहीं है. सोनिया गांधी कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष हैं. पार्टी 6 महीने के भीतर पूर्ण कालिक अध्ययक्ष का चुनाव करने वाली थी, अब तक कांग्रेस अध्यक्ष का नाम सामने नहीं आया है. पार्टी के वरिष्ठ नेताओं में पी चिदंबरम तिहाड़ जेल में बंद हैं, आईएनएक्स मीडिया मामले में भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे हैं. कांग्रेस के एक अन्य वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल चिदंबरम को बचाने की कोशिश में जूझ रहे हैं.

गुलाम नबी आजाद कश्मीर बचाने की कोशिश में हैं. शशि थरूर जन-नेता नहीं हैं. अगर हैं भी, तो हरियाणा में अगर बोल दें तो कांग्रेस की दस सीटें और कम हो जाएं. हिंदी हार्टलैंड की खासियत है कि कश्मीर को खुद से अलग मान नहीं पाता. कश्मीर पर केंद्र के फैसले के साथ ज्यादातर हिंदी भाषी प्रदेश के लोग हैं, अगर वे नेता नहीं हैं तो. कश्मीर पर कांग्रेस का रुख बीजेपी के ठीक उलट है. कांग्रेस इस वक्त खुद को आदर्शवादी, मानवतावादी पार्टी के तौर पर पेश कर रही है, लेकिन कांग्रेस की यह छवि लोगों को बिलकुल भी रास नहीं आने वाली है.

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विधानसभा चुनाव, पर मुख्यमंत्री का चेहरा कौन?

हरियाणा में भले ही कांग्रेस बीजेपी की मुख्य विपक्षी पार्टी हो, लेकिन एक बाद साफ है कि पूरे देश में चुनाव मोदी बनाम विपक्ष पर लड़ा जा रहा है. राज्यों के मुख्यमंत्रियों के चेहरे द्वितीयक हो चुके हैं, प्रधानमंत्री मोदी प्राथमिक. इसलिए चुनाव कठिन हैं, वहीं विपक्ष में इतना बंटवारा है कि कोई एक नेता दिखना डायनासोर की तरह दुर्लभ हो गया है.

हरियाणा में हर कोई मुख्यमंत्री पद का ही दावेदार है. भूपेंद्र सिंह हुड्डा से लेकर कुमारी शैलजा तक. पार्टी में मनमुटाव की खबरें जगजाहिर हैं. वहीं बीजेपी का इरादा है, इस बार भी खट्टर सरकार.

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महाराष्ट्र में महाविलय

महाराष्ट्र कांग्रेस में बीजेपी ने समंदर का रूप ले लिया है. कांग्रेस, एनसीपी दोनों पार्टियों के नेता बीजेपी में शामिल हो रहे हैं. शरद पवार के लिए पार्टी संभालनी मुश्किल हो गई है. पार्टी में अजित पवार और सुप्रिया सुले को छोड़कर सारे बड़े नाम किनारा कर चुके हैं. अब बस स्थानीय कार्यकर्ता बचे हैं, जिनके लिए खुद को खड़ा ही रख पाना मुश्किल है.

कांग्रेस पार्टी की बात करें तो संजय निरुपम और मिलिंद देवड़ा की लड़ाई उर्मिला मंतोडकर के इस्तीफे के बाद खुलकर सामने आ गया. मुंबई कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष कृपाशँकर सिंह भी कांग्रेस छोड़ चुके हैं. पार्टी छोड़ने से पहले उनका तर्क था कि वे कांग्रेस के अनुच्छेद 370 पर अपनाए गए रुख से सहमत नहीं हैं. कांग्रेस के कई अन्य नेता या तो बीजेपी में शामिल हो गए हैं, या वे पार्टी से किनारा कर चुके हैं. ऐसे में कांग्रेस नेतृत्व के संकट से बुरी तरह से जूझ रही है.

बेलगाम हुई कांग्रेस-एनसीपी

कांग्रेस को संभालने वाला कोई नहीं है. महाराष्ट्र कांग्रेस के स्क्रीनिंग कमेटी के चेयरमैन की जिम्मेदारी संभाल रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया भी महाराष्ट्र कांग्रेस की गुटबाजी को लेकर बेबस नजर आ रहे हैं. बिखरे नेतृत्व में कांग्रेस और एनसीपी के हाथ कितनी सीटें आएंगी, कहना मुश्किल है.

इन सबसे इतर बीजेपी ने साफ कर दिया है कि मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ही सत्ता संभालने जा रहे हैं. शिवसेना चिल्ला सकती है लेकिन उसकी भूमिका सत्ता की सहयोगी पार्टी तक ही है. पार्टी के उत्तराधिकारी आदित्य ठाकरे भी इस बात को जाहिर कर चुके हैं, कि फिलहाल वे गठबंधन के साथ ही हैं. हालांकि, सीटों को लेकर शिवसेना बीजेपी का बवाल होना तय है लेकिन बीजेपी को कुछ खास डर नहीं है. बीजेपी अपने पार्टी नेतृत्व को लेकर स्पष्ट मत रखती है.

विपक्ष की नैया है ‘राम के भरोसे’

महाराष्ट्र और हरियाणा में विधानसभा चुनाव की तारीख़ों की घोषणा को कई दिन हो चुके हैं. दोनों ही राज्यों में 21 अक्टूबर को वोट डाले जाएंगे और 24 अक्टूबर को नतीजे आएंगे. मुद्दे तमाम हैं, लेकिन दोनों राज्यों में मुद्दे को उठाने वाला कोई नहीं.अब तो प्रियंका गांधी भी कई दिनों से फ्रंट रो में आकर पार्टी नहीं संभाल रही हैं, ऐसे में कांग्रेस की नैया कैसे पार होगी…कहना मुश्किल है.

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