वीपी सिंह को चुनाव हराकर उनकी सरकार में मंत्री बननेवाला नेता

राजनीति में यूं तो क्या कुछ हो जाए कोई भरोसा नहीं है लेकिन कभी कोई नेता जिससे चुनाव हारा हो, उसे ही अपनी सरकार में मंत्री बना दे, ऐसा बहुत कम ही होता है। एक नेता को चुनाव हराना और दो साल बाद वही हारा हुआ नेता जब प्रधानमंत्री बने तो उसी की सरकार में मंत्री बन जाना, यह तभी संभव है, जब में असली समाजवादी जनेश्वर मिश्र जैसा गुण हो।

जनेश्वर मिश्र छात्र जीवन से लेकर अपनी मृत्यु तक समाजवादी ही रहे। समाजवाद के प्रति उनके समर्पण को देखते हुए बहुत पहले ही उन्हें ‘छोटे लोहिया’ की उपाधि दी गई थी। राम मनोहर लोहिया के शिष्य रहे जनेश्वर ने पहला चुनाव लोहिया के कहने पर ही लड़ा और हार गए। हालांकि, इस चुनाव के दौरान वह जेल में रहे और वोटिंग से सिर्फ सात दिन पहले रिहा हुए।

वीपी सिंह को लोकसभा चुनाव में हरा दिया

जनेश्वर राजनीति को लेकर इतने आत्मविश्वासी आदमी थे कि वीपी सिंह, विजय लक्ष्मी पंडित और बलिया के चंद्रशेखर के खिलाफ चुनाव लड़ा। सबसे कमाल की बात तो यह हुई कि वीपी सिंह को चुनाव में हराने के बावजूद उस समय की राजनीति में इतना स्पेस था कि दो साल बाद जब वीपी सिंह प्रधानमंत्री बने तो उन्हीं की सरकार में लोहिया केंद्रीय मंत्री बन गए। इसके अलावा वह कुल सात बार और छह प्रधानमंत्रियों की सरकार में मंत्री रहे। शुरुआत डॉ. लोहिया की समाजवादी सोशलिस्ट पार्टी से हुई और अंत में खुद को लोहिया का शिष्य बताने वाले मुलायम सिंह यादव की पार्टी समाजवादी पार्टी में रहे।

पहला चुनाव नेहरु की बहन विजय लक्ष्मी पंडित के खिलाफ लड़ा था लेकिन दो साल अंदर ही वह लोकसभा छोड़कर राजदूत बनीं को फूलपुर सीट पर उपचुनाव हुए। कांग्रेस ने अपने खास नेता केडी मालवीय को उतारा लेकिन मालवीय जनेश्वर मिश्र से पार न पा सके और चुनाव हार गए। अगली बार वीपी सिंह फूलपुर सीट से चुनाव लड़े और लोहिया तीसरे स्थान पर खिसक गए। हालांकि, राजनीति का एक बड़ा अध्याय अभी लिखा जाना बाकी था। 1977 के चुनाव में वीपी सिंह और जनेश्वर दोनों फूलपुर की बजाय इलाहाबाद सीट से लड़े और जनेश्वर ने वीपी सिंह की पटखनी दे दी।

अंतिम समय तक राजनीति में सक्रिय रहे

इस चुनाव के बाद जनेश्वर राजनीति में तो आगे बढ़े लेकिन चुनावों में उनकी हार होती रही। अति आत्मविश्वास इस कदर हावी रहा कि बलिया जाकर चंद्रशेखर के खिलाफ चुनाव लड़े और बुरी तरह हारे। कुछ और सीटें बदलीं लेकिन 1989 में फिर से इलाहाबाद लौटने के बाद ही जीत मिल पाई। कुल मिलाकर तीन बार लोकसभा से सांसद बने और चार बार राज्यसभा के। जनेश्वर के बारे में किस्से मशहूर हैं कि वह लोगों के बीच ही रहते थे। उनकी राजनीति का आलम यह था कि अपनी मौत से कुछ दिन पहले ही उन्होंने इलाहाबाद में एक प्रदर्शन की अगुवाई की।

पहले लोहिया और राजनारायण और बाद में मुलायम सिंह यादव के खास रहे जनेश्वर मिश्र के बारे में समाजवादी पार्टी के वर्तमान अध्यक्ष अखिलेश यादव स्वीकार करते हैं कि वह राजनीति में जनेश्वर की बदौलत हैं। हालांकि, अखिलेश को यह भी स्वीकार करना चाहिए कि जिस समाजवाद के प्रवर्तक जनेश्वर थे,उसे ना तो मुलायम ने माना और ना ही अखिलेश मानते हैं। जनेश्वर मिश्र को अखिलेश ने मात्र लखनऊ के एक पार्क तक सीमित रखा है, अपने विचारों में उनको शायद ही कोई जगह दी हो।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *