आप अखबार पढ़ते होंगे तो दो-चार दिन में एकबार ‘एक राष्ट्र-एक चुनाव’ की चर्चा भी पढ़ते होंगे। थोड़ा विचार करते होंगे तो आपको भी हर समय चुनाव होना या फिर देश के प्रधानमंत्री और राज्यों के मुख्यमंत्रियों का हमेशा चुनावी मोड में होना अखरता होगा। यही चिंता वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भी है। उन्हें भी लगातार चुनावी रैलियों में दौड़ते रहना और सिर्फ अपने दम पर बार-बार चुनाव जिताने की कोशिश करना उबाऊ लगने लगा है। इसके समाधान के लिए मोदी ने एक फॉर्म्युला निकाला है, इसी का नाम है, ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’
यह फॉर्म्युला सही है या गलत है, यह बहस का मुद्दा बना हुआ है। इसका फायदा होगा या नुकसान, यह संभव है या नहीं, इन तमाम विषयों पर अकसर राजनेता, विश्लेषक और रणनीतिकार माथापच्ची करते रहते हैं। इस बीच मोदी ने अपने प्लान पर धीरे-धीरे ऐक्शन शुरू कर दिया है। उन्होंने यह कोशिश की है कि सारे राज्यों में नहीं तो कुछ में ही सही लेकिन लोकसभा के साथ विधानसभा के चुनाव हों जरूर। भारत की वर्तमान राजनीति को देखें तो लोकप्रियता के मामले में नरेंद्र मोदी सबसे आगे हैं। एक बड़ा वर्ग उनकी पार्टी को नहीं लेकिन उनके नाम पर वोट जरूर देता है। नरेंद्र मोदी और बीजेपी के लिए यही पॉजिटिव और निगेटिव पॉइंट दोनों है इसीलिए मोदी और बीजेपी 2019 में मोदी को भुना लेना चाहते हैं।
जाहिर है कि अगर चुनाव नरेंद्र मोदी के चेहरे पर लड़ा जाए, बजाय किसी सीएम फेस या किसी क्षेत्रीय नेता के, तो फायदा बीजेपी को होगा। यूपी में बीजेपी इस फॉर्म्युले का फायदा देख चुकी है। अब बात है कि आगामी विधानसभा चुनावों में बीजेपी क्या करेगी। अगले छह-सात महीनों में चार-पांच राज्यों में संभावित हैं। इनमें बीजेपी शासित राजस्थान, मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ के साथ कांग्रेस शासित मिजोरम और सिक्किम डेमोक्रैटिक फ्रंट शासित सिक्किम शामिल हैं। राजस्थान और मध्य प्रदेश के चुनाव आगामी समय में बीजेपी के लिए गले की फांस साबित हो सकती हैं और कांग्रेस के लिए वापसी के दरवाजे भी। इस बात को कांग्रेस और बीजेपी दोनों बखूबी समझ रहे हैं। दोनों की ओर से जमकर जोर-आजमाइश हो रही है।
बीजेपी अंदरखाने नए-नए फॉर्म्युलों और नई रणनीति पर योजनाएं बना रही है तो कांग्रेस वह तरीका निकालने में लगी है कि वह गुजरात, पंजाब और कर्नाटक की तरह चोकर्स ना साबित हो और शुरुआती माहौल को जीत में तब्दील कर पाए। मध्य प्रदेश और राजस्थान में बीजेपी के खिलाफ ऐंटी इनकंबेंसी हो सकती है लेकिन अगर चुनाव लोकसभा के साथ हों तो बीजेपी फायदे में आ सकती है। ऐसे में छत्तीसगढ़, राजस्थान, और मध्य प्रदेश के चुनाव के साथ ही बिना पांच साल पूरा किए ही लोकसभा चुनावों की संभावनाओं के इनकार नहीं किया जा सकता है। 2019 की पहली छमाही में ओडिशा, तेलंगाना, मिजोरम और सिक्किम चार ऐसे राज्यों में चुनाव होने हैं, जहां बीजेपी की सरकार नहीं है, इस स्थिति में बीजेपी 2019 में चुनाव कराकर इन राज्यों में भी फायदा लेने की कोशिश कर सकती है।
दूसरी कंडीशन में एक आश्चर्यजनक बात यह है कि तेलंगाना के सीएम केसीआर राव और ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक एक राष्ट्र, एक चुनाव का समर्थन कर चुके हैं। अगर ये सभी चुनाव एक साथ होंगे तो जो भी जीता, उसका वजन और बढ़ेगा, वहीं जो हारा, वह जाहिर तौर पर कमजोर ही होगा। इन सब में नरेंद्र मोदी के ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ योजना की टेस्टिंग भी हो ही जाएगी।