जब संस्थाओं का मानवीयकरण होता है तो उसकी प्रशंसा और अनुशंसा दोनों इंसानों की तरह होने लगती है. फिर जिन प्रक्रियाओं से इंसान गुजरता है उन्हीं प्रक्रियाओं से संस्थाओं को भी गुजरना पड़ता है. 13 दिनों से अनवरत प्रदर्शन रत छात्रों ने हाल में ही एसएससी की विधिविधान तेरहवीं मनाई. तेरहवीं किसी की अंत्येष्टि के बाद किया जाने वाले संस्कार है. सीधे शब्दों में मृतक संस्कार. एक संस्थान के तौर पर छात्रों ने मान लिया है कि एसएससी मृतप्राय संस्था है. रविवार को प्रदर्शनकारी छात्रों ने एसएससी की केवल तेरहवीं ही नहीं मनाई बल्कि शोक सभा का भी आयोजन किया.
क्या चाहते हैं छात्र?
प्रदर्शनकारी छात्र पिछले तेरह दिनों से धरने पर बैठे हुए हैं लेकिन उनकी मांगे अब तक नहीं मानी गई हैं. लोकतंत्र में विरोध प्रदर्शन पर सुनवाई होनी शायद बंद हो चुकी है. इस आंदोलन को कमजोर करने के लिए छात्रों पर मुद्दे के राजनीतिकरण का भी आरोप लगाया जा चुका है. छात्रों की मांग है कि एसएससी की परिक्षाओं में बरती गई अनियमितता की जांच सीबीआई द्वारा निष्पक्ष तरीके से कराई जाए. जब तक एसएससी की परिक्षाओं की जांच न हो जाए तब तक आगामी परिक्षाओं को निरस्त किया जाए.
खल रही है प्रधानमंत्री की चुप्पी
हर मुद्दे पर जोर शोर से कांग्रेस और नेहरू के पूर्वजों को कोसने वाले प्रधानमंत्री मोदी इस मुद्दे पर चुप्पी साध कर बैठे हैं. उन तक छात्रों की जायज मांगे शायद पहुंची ही नहीं है. सीजीओ कॉम्प्लेक्स पर सरकार का कोई नुमांइदा नहीं पहुंचा है. पहुंचेगा भी नहीं क्योंकि सरकार के एजेंडे में विद्यार्थियों के भविष्य की अर्थी जो सजाई गई है.
बॉस तभी बोलते हैं जब उनका मूड होता है
सत्तर सालों में पहली बार ऐसा हुआ है कि कोई यह बताने वाला मिल गया है कि पिछले सत्तर सालों में क्या नहीं हुआ. भारतीय राजनीति में मोदी का कार्यकाल हमेशा याद रह जाने वाली घटना होगी. कुछ विधाता का वरदान लेकर आवतरित हुए हमारे प्रधानमंत्री. जो कुछ अच्छा हुआ है वह इन्हीं के कार्यकाल में हुआ है, जो बुरा हुआ है उसे कांग्रेस कर गई है. गजब लीला है प्रधानमंत्री जी की.
सिर्फ छात्र ही नहीं परेशान हैं
केंद्र सरकार सामरिक विफलता से जूझ रही है. कही, कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है सिवाय बयानबाजी के कि जहां केंद्र सरकार ने कुछ अच्छा काम किया हो. मुद्दों की बात सरकार ऐसे टालती है जैसे कि जनता से कोई सरोकार न हो. क्यों करती है ऐसा सरकार इसके पीछे भी कांग्रेस जिम्मेदार है. क्योंकि एक विपक्षी पार्टी के रूप में कांग्रेस सबसे कमजोर विपक्ष है. याद कीजिए यूपीए का कार्यकाल जब भाजपा विपक्ष में थी तब कैसे कांग्रेस सरकार की नाक में दम करके रखती थी. यह कहा जा सकता है कि भाजपा कांग्रेस से कहीं ज्यदा जिम्मेदार विपक्ष का रोल अदा करती है.
भ्रष्टाचार से नहीं करती इनकार भाजपा
भाजपा में भ्रष्टाचार खूब फल-फूल रहा है. भ्रष्टाचार की रकम दोगुनी हो गई है. अभी कुछ दिन पहले ठेकेदारों से मिला था. उनका कहना था कि भ्रष्टाचार रुका नहीं है कमीशन बढ़ गया है. पहले 23 परसेंट कर्मचारियों को खिलाने के बाद ठेका मिल जाता था अब रिश्वत 50 प्रतिशत तक बढ़ गया है. क्या कमाएं, क्या बनाएं और क्या खिलाएं.
भारत का भाग्य विधाता राम भरोसे
किसान हों या छात्र दोनों भारत का भाग्य रचते हैं. सरकार की नीतियों से दोनों बेहाल हैं. कर्ज अगर विजय माल्या, मेहुल चौकसी और नीरव मोदी का न हो तो सरकार बिलकुल भी माफ नहीं. बोझ बढ़ता जाता है काम कुछ नहीं हो पाता है. लोग त्रस्त रहते हैं. वैेसे यह रोना केवल मोदी सरकार में ही नहीं लोग रो रहे हैं. हर सरकार के राज में यही होता है. नौकरियां मार्केट से गायब हैं. न प्राइवेट सेक्टर में नौकरी है न सरकारी. सरकार मुनाफा दिखाने के लिए सरकारी नौकरियों में कटौती कर रही है. छात्र परेशान हैं. भ्रष्टाचार खत्म करने का दावा करने वाली भ्रष्टाचार को और बेलगाम कर दे रही है. मंचों से ईमानदारी का उद्घोष किया जा रहा है, जमीन पर लोग बेहाल हैं. मंदिर वही बनाए जाने तैयारियां चल रही हैं. वैसे पते की बात यह है कि राम भी राम भरोसे लटके हुए हैं. बाकी सब ठीक चल रहा है देश में.
जवान बेहाल, किसान बेहाल…..लेकिन टीवी में हर-हर मोदी-घर-घर मोदी.
कसम राम की खाएंगे…फिर से बीजेपी लाएंगे.