अगर आप भी 80-90 के बीच पैदा हुए हैं तो आपका बचपन भी टीवी पर मालगुडी डेज़ देखते हुए बीता होगा। मालगुडी डेज की कहानियां एकदम काल्पनिक होती थीं लेकिन देखते वक़्त आप उस कहानियों में ऐसा खो जाते थे कि लगता था मानो सब सच ही हो। मुझे एक कोट वाली कहानी याद है जिसमें कोट की जेब में जब भी हाथ डालो कुछ सिक्के निकलते थे। कई बार तो मैंने भी अपने कोट की जेब में हाथ दाल कर सिक्के निकालने की कोशिश की लेकिन हर बार हाथ खाली रहा लेकिन उम्मीद अगली बार के लिए बांध जाती थी कि स्वामी की तरह मेरे कोट की जेब से भी पैसे निकलेंगे। अब आइए आपको Swami and Friends की पूरी कहानी बताते है।
पहले एपिसोड में स्वामी सुबह उठकर नहा धोकर स्कूल जाता है। वो एक क्रिस्चियन स्कूल Albert Mission School में पढता है। उस दिन स्कूल में उसके टीचर उसको कृष्ण की बुराइयां और लॉर्ड जीसस की अच्छाइयां स्कूल के बच्चों को बताते है। Swami को उनकी ये बात पसंद नहीं आती है और वो उनसे बहस करने लग जाता है। इस पर नाराज होकर अध्यापक Swami के कान मरोड़ देते हैं। इस बात के बारे में Swami के पिता जो कि एक वकील हैं, उनको पता चल जाता है और वो स्कूल के प्रिंसिपल को एक पत्र लिखते हैं, जिसमें उनके अध्यापक को सही शिक्षा देने की सलाह देते हैं। प्रिंसिपल स्वामी के पिता की चिट्ठी पढ़कर स्कूल के प्रिंसिपल उन्हें स्कूल के मसले स्कूल में सुलझाने की सलाह देते हैं।
दूसरा एपिसोड इस नाटक Vendor of Sweets की कहानी बाप और बेटे के रिश्ते पर आधारित होती है। इस कहानी में जगन एक मिठाई वाला होता है। वो अपने बेटे से हर वक़्त कॉलेज में बारे में पूछता है लेकिन वो हर बात को नकार देता है। एक दिन जगन का बेटा उसको कॉलेज छोड़ देने के बारे में बताता है तो जगन बड़ा परेशान होता है कि यह अब क्या करेगा। वह अपने परम मित्र से उसके बेटे की जासूसी करवाता है। जासूसी करते हुए उनका परम मित्र उनको माली के बारे बताता है कि माली लेखक बनना चाहता है। जगन यह बात सुनकर काफी खुश होते हैं और उनको अपने लेखन में मन लगाने को कहते हैं।
ऐसी कई कहानिया हैं, जो दिल को छू लेती है। बात यहीं खत्म करते हैं और चलते-चलते याद करते हैं, स्वामी को देखकर आपको अपने बचपन का वह हर किस्सा याद आ जाएगा, जिसे आप भूल गए थे कि किस तरह स्कूल में पिटाई होना, दोस्तों के साथ घूमना, लड़ाई करना, खुले मैदानो में खेलना, पिताजी की डांट, दादी का प्यार, माँ का दुलार, नई खुराफातें, बारिश के पानी में नांव चलाना, लोगो के बहकावे में आना, स्कूल से भाग जाना, पढ़ाई से जी चुराना, परीक्षा की टेंशन, नतीजो से घबराना, गर्मियों की छुट्टियों के मजे लेना, स्कूल की छुट्टी होने पर मजे करना, टीचर की छड़ी से मार खाना, दोस्तों के साथ प्लान बनाना, स्कूल जाने में बीमारी का बहाना करना आदि। इसके अलावा कई बातें आपको मालगुडी डेज की इस कहानी में देखने को मिलगी जो भविष्य के बच्चे कभी नहीं सोच सकते। मोबाइल और इंटरनेट की क्रान्ति ने बच्चों को घर तक सीमित कर दिया लेकिन हमने वो हर युग को अपनी नजर से देखा है।
स्वामी अब भी बच्चा है, उतना ही मासूम, उतना ही शरारती। मालगुडी एक ऐसे गांव के रूप में बना हुआ है जिस पर समय की खरोंचें नहीं पड़ी हैं। वह कालजयी बन चुका है।