जब चौथे खंभे की हुई सेल्फीमय मौत

उस सेल्फी में एक खंभा था। वो कोई आम सेल्फी नहीं थी, सेल्फी लेने वाला और सेल्फी देने वाला दोनों एक-एक खंभे के रखवाले थे। ये दोनों खंभे एक-दूसरे पर नज़र रखने वाले थे लेकिन सेल्फी में दोनों की नजर सिर्फ कैमरे पर थी और पूरा फोकस स्माइल और मुँह बनाने पर था। उस सेल्फी में जब एक खंभे ने दूसरे खंभे के कंधे पर हाथ रखा, तब दोनों खंभे एक दूसरे के विरोधी नहीं लगे जो कि लगने चाहिए थे लेकिन भाई विरोध अपनी जगह है और सेल्फी अपनी जगह।

सेल्फी में सिर्फ मुँह बनाया जाता है, सेल्फी में विरोध का कोई ऑप्शन नहीं था। अगर विरोध करते तो सेल्फी खराब होने का डर था और वहाँ दुबारा सेल्फी लेने का कोई मौका नहीं था तो इसलिये खंभे ने बिना रिस्क पूरा ध्यान सेल्फी पर रखा विरोध पर नहीं।

दोनों खंभे इतने उतावले थे सेल्फी लेने के लिए की सारे प्रोटोकॉल तोड़ दिए और माहौल पूरा सेल्फीमय हो गया और उस माहौल में एक मौत हुई जो शायद ही किसी को दिखी क्योंकि कैमरे का फोकस इतना ज्यादा था कि किसी का मौत पर फोकस ही नहीं गया। वो मौत आपको सीधा तेरही पर दिखेगी क्योंकि “खंभा मरा तभी जानियो जब तेरही हो जाये”।

देखिए, तेरही में एक सेल्फी प्रोग्राम फिर होगा आप सभी अपनी सेल्फी स्टिक के साथ आएं। ये वो मौत होगी जिसमें सिर्फ जश्न होगा। मरा हुआ खंभा अर्थी पर नहीं सेल्फी स्टिक और फ्रंट कैमरे पर जायेगा और राम नाम सत्य है कि जगह ‘आ बेटा सेल्फी लेले’ बोला जायेगा।

चलिए ‘लास्ट सेल्फी विथ डेथ खंभा’ के हैशटैग के साथ सभी लोग सेल्फी को पोस्ट करते और हम भी क्यों दुखी हों, चलो हम भी एक सेल्फी लेते हैं।