राम चाहते हैं कि 21वीं सदी में उनके ‘भक्त’ उन्हेंं भूल ही जाएं!
राम लाचार हैं, ठीक उसी तरह जिस तरह से भारतीय संविधान. कुछ नहीं कर सकते. लेकिन उनकी अवधारणा ऐसी आदर्श…
जहां बातें होंगी हिंदी इस्टाइल में
राम लाचार हैं, ठीक उसी तरह जिस तरह से भारतीय संविधान. कुछ नहीं कर सकते. लेकिन उनकी अवधारणा ऐसी आदर्श…
तुम साइकिल चला लेते हो ? अरे बाबा मैं कहां चला पाता हूं, और तुम? मेरा भी तुम्हारे वाला हाल…
सारे जहाँ से अच्छा ये गऊसितां हमारा, लगता है दुश्मन हमको यहाँ हर मियाँ हमारा। खाती हैं कूड़ा कचरा मरती…
तुम जयपुर आए थे? हां आया तो था सोचा तुम से मिल कर जाऊंगा। अच्छा क्या पहन कर आए थे…