रिपब्लिक टीवी चैनल के ऐंकर और मालिक अर्णब गोस्वामी. पिछले कुछ समय से महाराष्ट्र सरकार उनके और वह महाराष्ट्र सरकार के निशाने पर हैं. आखिरकार, एक आत्महत्या के केस में अर्णब गोस्वामी गिरफ्तार किए गए हैं. मामला एकदम फिल्म जैसा है. जिसमें आप सत्ता में बैठे किसी पावरफुल आदमी के खिलाफ कुछ बोलते हैं और वह आपको “कानूनन” गिरफ्तार करवा देता है.
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अतिवादी रिपोर्टिंग करते रहे अर्णब गोस्वामी
सुशांत सिंह की आत्महत्या, ड्रग्स केस और पालघर में साधुओं की मॉब लिंचिंग जैसे मामलों से अर्णब गोस्वामी महाराष्ट्र सरकार पर हमलावर रहे हैं. वह इतने हमलावर रहे हैं कि सुशांत सिंह और ड्रग्स केस के समय उन्हें देश का कोई और मामला दिखा ही नहीं. इस दौरान उनके रिपोर्टर्स और खुद उन्होंने हेकलिंग की, सड़क पर उद्दंडता करते दिखे और पत्रकारिता को मजाक बनाकर रख दिया. सुशांत केस में रिपब्लिक के साथ-साथ बाकी कई चैनलों ने माफी मांगी. आखिर में सीबीआई ने यह माना कि किसी भी तरह की साजिश नहीं की गई और यह पूरा मामला आत्महत्या का है.
बीजेपी-शिवसेना ने कर लिया समझौता?
कहा जाने लगा कि केंद्र और शिवसेना के बीच सेटिंग हो गई और बड़े-बड़े नाम बच गए. इस सबके बीच अर्णब गोस्वामी ठीक वही बन गए, जिसके लिए वह सत्ता विरोध पत्रकारों का मजाक उड़ाते थे. अभी तक वह केंद्र और बीजेपी सरकारों के समर्थन में खुलेआम बैटिंग करते रहे हैं. यहां मामला उल्टा था, तो उन्होंने सत्ता विरोधी रवैया अपनाया.
सत्ता मिलते ही दमनकारी हो जाती हैं पार्टियां
हालांकि, सत्ता तो सत्ता होती है. भारत में हर पार्टी विपक्ष में अच्छी होती है. 2014 से पहले विपक्ष में बैठी बीजेपी के लिए एनडीटीवी अच्छा था लेकिन सत्ता में आते ही उसने एनडीटीवी का बॉयकॉट कर दिया. सत्ता की नियति यही है. उसे विरोध बर्दाश्त नहीं होता. ठीक यही अर्णब के साथ होता दिख रहा है. अर्णब के विरोध का स्तर पत्रकारिता तो बिलकुल नहीं है. लेकिन उद्धव ठाकरे की सरकार भी ठीक वही कर रही है.
सत्ता मतलब असहिष्णुता
सहिष्णुता किसी भी तरफ नहीं है. जिसके पास पावर है, वह अपनी ही मनमानी कर रहा है. केंद्र में बीजेपी की सरकार हो, यूपी में योगी की सरकार हो, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार हो या महाराष्ट्र में शिवसेना गठबंधन की सरकार हो. सबने अपने-अपने हिसाब से लोकतंत्र और सहिष्णुता की परिभाषा तय कर रखी है.