2 जून 2017 को रागिनी की शादी संतकबीर नगर के, बौरव्यास गांव में रहने वाले रामेश्वर पाठक के साथ होती है. बहुत अरमानों के साथ रागिनी के माता-पिता अपनी राजदुलारी बिटिया को विदा करते हैं. यथासंभव उनसे जो भी बन पड़ता है, वर पक्ष को दहेज देते हैं.
विदाई के वक़्त उनकी नम आंखो में बिटिया के घर बसने की ख़ुशी भी होती है और बिटिया के जाने का ग़म भी. वे सोचते हैं कि बिटिया के ससुराल में सब उसका इंतज़ार पलकें बिछा कर रहे होंगे. ससुराल वाले इंतज़ार तो कर रहे थे लेकिन रागिनी का नहीं उसके साथ आए हुए दहेज़ का. रागिनी अपने साथ कम समान नहीं ले गई थी. मां-बाप, बिटिया की विदाई कभी खाली हाथ नहीं करना चाहते, चाहे उनकी आर्थिक स्थिति कैसी भी हो। रागिनी की शादी भी बहुत धूम धड़ाके के साथ हुई थी। किसे पता था कि यह उत्सव का माहौल कब मातम में बदल जाएगा? अफ़सोस जिस बेटी की डोली घर वालों ने धूमधाम से उठाई थी, उसी की अर्थी 49 दिनों बाद घर वापस लौट आई। रागिनी अपने ससुराल में मार दी गई। 21 जुलाई को रागिनी अपने ससुराल में मृत पाई गई।
बमुश्किल रागिनी के हाथों की मेंहदी फीकी पड़ी होगी, पैरों के महावर का रंग उतरा होगा जब, उसे मार दिया गया।
रागिनी के घर वालों का कहना है कि ससुराल वालों ने रागिनी को, गला दबाकर मार डाला। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी ये बात पुख़्ता हो गई कि रागिनी की मौत स्वाभाविक नहीं बल्कि हत्या है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पुष्टि की गई है कि रागिनी को पीट-पीट कर मारा गया है।
इस केस में पुलिस ने 7 लोगों के ख़िलाफ़ नामज़द एफ़आईआर दर्ज़ किया है, जिनमें से 5 आरोपियों को गिरफ़्तार कर लिया गया है।
इसे पुलिस की लापरवाही कहें या मुख्य आरोपियों की चालाकी, वे अभी पुलिस की पकड़ से बहुत दूर हैं। घटना के 14 दिन बीत जाने के बाद भी मुख्य आरोपी पकड़े नहीं जा सके हैं। रागिनी के पति और देवर ही, रागिनी की हत्या के मुख्य आरोपी हैं।
इस तथाकथित मर्दवादी हिन्दू समाज में, आज भी जब पति-पत्नी अग्नि को साक्षी मानकर फेरे लेते हैं तो पति, पत्नी की रक्षा का संकल्प भी लेता है। ये कौन सा संकल्प था जिसमें पति ने दहेज़ हत्या को अंजाम देने की कसम उठाई थी?
रागिनी के घर घरवालों का कहना है कि रागिनी की विदाई के बाद से ही, दहेज़ में बाइक न मिलने के कारण ससुराल वाले नाराज़ थे। एक मामूली सी बाइक रागिनी की ज़िंदगी पर भारी पड़ेगी, इस बात का अंदाज़ा रागिनी के घर वालों को कभी नहीं था, अगर होता तो शायद रागिनी ज़िंदा बच जाती।
दहेज़ हत्या की वजह से मार दी जाने वाली रागिनी अकेली नहीं है। देश में हर साल हज़ारों लड़कियां सिर्फ़ इसलिए मार दी जाती हैं क्योंकि उनके मां-बाप वर पक्ष की मांग के अनुरूप दहेज़ नहीं दे पाते हैं।
दहेज़ हमारे समाज की कड़वी सच्चाई है जिसे हम न उगल पाते हैं, न निगल पाते हैं। इसके विरोध में लम्बे-चौड़े भाषण देने वाले लोग बेटे की शादी में केवल कुछ हज़ार कम पड़ जाने से, लड़की के घर से बारात वापस ले जाने पर उतारू हो जाते हैं। समाज का यही दोगला चरित्र, दहेज़ प्रथा को मिटने नहीं देता है। बेटी की शादी में दहेज़ देने वाला बाप, चाहता है कि बेटे की शादी में इतना दहेज़ मिले कि घाटा पूरा हो जाए।
हिन्दू धर्म में विवाह को एक बेहद पवित्र संस्था समझा जाता है। धर्म शास्त्र कहते हैं कि विवाह दो आत्माओं का मिलन है।
ऐसे वक़्त में जब धार्मिक मान्यताएं अर्थ खो रही हैं तब शादियों में धार्मिक संस्कारों पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए। अब शादी संस्कार नहीं विशुद्ध व्यापार है। दूल्हा बिकता है। जो जितने मंहगे दाम में ख़रीदेगा, दूल्हा उसी का होगा। ग्राहक अगर दूल्हे को कम दाम में ख़रीदता है तो बिटिया की ज़िंदगी का ख़तरे में होना तय है।
समझ में नहीं आता कि लोग जानबूझकर ऐसे लोगों से क्यों रिश्ता जोड़ना चाहते हैं, जिन्हें रिश्तेदार बनाने के लिए रिश्ते का दाम देना पड़े?
जब बारात की अगवानी में दूल्हे का बाप ये कहे कि इतने पैसे नहीं मिले तो बारात लौट जाएगी, तब लड़की का बाप लड़के वालों के सामने गिड़गिड़ाने क्यों लगता है?
जिसका रिश्ते में आने से पहले ही इतना घटिया चरित्र हो, उससे रिश्ता क्यों जोड़ना? ऐसे लोगों को चौखट से जूते मारकर लौटाना चाहिए। बेटी की ज़िंदगी से बड़ी उसकी शादी नहीं है। जो रिश्ते को सौदेबाज़ी समझता हो न वो कभी अच्छा पति बन सकता है, न ही बाप।
जिन्हें जेल में भेजना चाहिए उन्हें घर में अगर आप बैठाएंगे तो हर तरह के ख़तरे के लिए आपको तैयार रहना चाहिए। आपने बिटिया की ज़िंदगी अपने हाथों से बरबाद की है।
बिटिया है, उत्पाद नहीं जिसकी लाइफ़ सेट करने की जल्दी में आप अंधे होकर कहीं भी छोड़ आएंगे। बेटी हर मामले में बेटे से बेहतर है। बेटे की बेहूदगी आप ज़िंदगी भर झेलते हैं लेकिन बिटिया आपसे 30 बरस तक भी बर्दाश्त नहीं होती। बस चले तो भ्रूण में ही शादी तय कर दें आप।
रागिनी को उसके ससुराल वालों ने नहीं, समाज ने मारा है। जब दहेज़ प्रथा को सामाजिक प्रतिष्ठा से जोड़कर देखेंगे और बारात के ख़र्चे का महिमामंडन करेंगे तो अपराधी आप भी हैं। असल में आप दहेज़ नहीं भीख मांग रहे होते हैं।
लड़की का बाप इतना बड़ा दानी है कि वो कन्यादान भी करता है और धनदान भी। जब वस्तु समझ कर आप बेटी दान करेंगे तो उसके मरने पर अफ़सोस मत जताइए। अब वो आपकी बेटी नहीं रही, आप तो उसे दक्षिणा के साथ दान कर चुके हैं। कन्या दान के साथ आपके दायित्वों का भी दान हो गया है। फिर रोना-पिटना मत कीजिए।
बेटियों को पढ़ाइए-लिखाइए। उन्हें सक्षम बनने दीजिए। उनकी शादी के लिए दहेज़ मत जुटाइए, उन्हें अपने भविष्य का फ़ैसला ख़ुद करने दीजिए। आप से कहीं ज़्यादा समझदार वे साबित हो सकती हैं। दहेज़ देकर आप तो अपनी समझदारी दिखा ही चुके हैं।
लड़के वालों का डिमांड सुरसा के मु्ंह की तरह बढ़ता ही रहेगा। वे चाहेंगे कि आप अपनी किडनी तक बेचकर उनकी डिमांड पूरी करें। उनका कलेजा नहीं पसीजेगा।
आप तो समझदारी दिखाइए। इन हैवानों से रिश्ता जोड़ने के लिए आप लालायित क्यों हैं? अगर हैं तो बेटी तो मरेगी ही। आप कुम्भकर्ण की क्षुधा कब तक तृप्त कर पाएंगे।
आज रागिनी मारी गई है, कल कोई और लड़की इस प्रथा की भेंट चढ़ेगी। उसके भी घरवाले पागलों की तरह चीखेंगे, चिल्लाएंगे लेकिन कोई मदद के लिए आगे नहीं आएगा। आरोपी गिरफ़्तार हो जाएंगे, जेल भेज दिए जाएंगे। कुछ साल बाद छूट भी जाएंगे। फिर दांत निकाल कर घूमेंगे। कोई ग़रीब अपनी बेटी ब्याह देगा। बच्चे होंगे, घर बस जाएगा। कहीं और किसी रागिनी को मारने का इंतज़ाम हो रहा होगा। मिर्गी का दौरा, खाना बनाते वक़्त साड़ी में आग लग जाना, दुपट्टे को फांसी का फंदा बनाकर पंखे से झूल जाना जैसी तमाम बेबुनियाद बातें वकील अपने क्लाइंट के रिटेन स्टेटमेंट में लिख रहा होगा, चिता तैयार की जा रही होगी, रागिनी धू-धू करके जल रही होगी। ये सब हम देखेंगे, भावुकता में दो बूंद आंसू टपकाएंगे और भूल जाएंगे। कोई मरे इससे हमें क्या मतलब?
हम बस नाम के सामाजिक प्राणी हैं, हमारी सामाजिकता में घुन लग गया है। हमारी बौद्धिक चेतना मर गई है, अब कोई मरे हमें फ़र्क़ नहीं पड़ता, दुनिया है। ये सब होता रहता है। रागिनी कौन सी अपने घर की थी, जब अपने पर बीतेगी तब की तब देखेंगे। अभी घर पर तो लड़की वाले रिश्ता लेकर आए हैं, उनसे मोल भाव कर लें, बाक़ी सब बाद में देखेंगे। दस लाख से कम दिए तो शादी हरगिज़ नहीं होगी। बड़ा ख़ानदान है, लड़का बीटेक पास है, दहेज़ तो जी भर के चाहिए न ? इकलौता लड़का है, इतना पढ़ाए-लिखाए उसका ख़र्चा कौन देगा?
ग़लत कह रहे हैं क्या?