एक पत्रकार बनने से पहले आपको चाटुकार बनना उतना ही जरूरी है जितना बच्चों को पोलियो की दवा पिलाना। आपको चाटना आना चाहिए, हो सके तो पत्रकारिता की डिग्री के बाद लगे हाथ चाटुकारिता की डिग्री भी ले ही लीजिए। इसके लिए आस-पास के किसी वरिष्ठ चाटुकार से संपर्क करें। सही से चाटना नहीं आएगा तो बड़े पत्रकार कैसे बनेगें? और अगर छोटे पत्रकार हो तो बड़े पत्रकार जो वहां तक चाट कर पहुंचे हैं उनको कैसे खुश करोगे। ज्यादा चाट लोगे तो हो सकता है राज्यसभा चले जाओ लेकिन इसके बाद गलती से भी चाटना मत छोड़ देना।
चाटना पत्रकारिता का वो धर्म है जो पत्रकारिता में आने के बाद ही पत्रकार को पता चलता है। अगर आप चाटना भूल गए तो हो सकता है कि आपकी जॉब चली जाए और ऐसी हालत में आप तुरंत किसी वरिष्ठ चाटुकार से संपर्क करें नहीं तो आपका भविष्य ख़तरे में हैं ।
जहां चाटने को मिले वहीं चाट लेना, जगह और समय मत देखना क्या पता कब चाटुकारिता से ही आपको ऊंची कुर्सी मिल जाए, कुर्सी के साथ-साथ Y या Z+ सिक्यूरिटी भी मिल सकती है लेकिन शर्त ये है कि आपके चाटने से वो खुश हो। आज कल एक नया चाटना चल रहा है वो है सपोर्ट वाला: आई सपोर्ट दिस पत्रकार, अलाना फलाना पत्रकार आदि। ये चाटने का सोशल मीडिया वर्जन है इसकी डिग्री आपको भक्तों से मिलेगी, आपको ले लेनी चाहिए नहीं तो आप चाटने की रेस में पीछे रह जाएंगेय़। आज कल इस वर्जन बहुत डिमांड हैं मार्किट में।
आपको चाटने के लिए कई प्लेटफार्म मिलगें लेकिन आपको देखना है कि आपके चाटने लायक कौन सा प्लेटफार्म आपके लिए स्यूटेबल है। आज पत्रकार ही नही नेता भी चाटने और चटवाने का काम जोरो पर कर रहे हैं। आप भी चाटते रहें, फिर किसी मोड़ पर मिलते हैं चाटते हुए।