विश्व हृदय दिवस है हृदय यानी दिल, जो न लेफ्ट होता है और न राइट। सेन्टर में होने की भी कोई संभावना नहीं है। अब जब पता ही नहीं कि होता कहां है तो इसको खोजने का भी कोई फायदा नहीं। जब दीवानगी दिल पर चढ़ती है तब दिल का पता लगता है, असल में धड़कनों का अंदाजा तभी लगता है जब कहीं किसी को देखकर दिल कुछ वक़्त के लिए ठहर जाता है। तब इसे संभालने की ज़रूरत पड़ती है।
इसको संभालना भी जरूरी है क्योंकि बहुत आवारा होता है। न जाने कब कहां खो जाये। होता भी है और पता भी नहीं कहां? तब क्या किया जाये? इसको खोने से बचाने का एक ही उपाय है, इसको अपनी मर्जी से किसी को दिया जाए।
हां मुफ्त में ही दे दो। अगर कोई मिल गया तो उसके साथ घूमने फिरने में खूब चलना पड़ेगा जो सेहत के लिये अच्छा है। अगर कोई मुफ्त में लेने वाला भी न मिले तो कोई गम नहीं, मयखाने का रास्ता बिल्कुल सीधा जाता है।
किसी को दिल दोगे तो टूटने का भी खतरा होगा। मियां यही तो इसकी मजबूती का राज है। और सोचो अगर आपके पास दिल ही न हो तब क्या हो। बेचारे शायर और कवि क्या करेंगे?
होंठों को गुलाब, बालों को गेसु और प्रेमिका की बोली कोयल से मीठी कैसे लगेगी? आंखों मे झील-समंदर कैसे देखोगे आखिर ये सब देखने सुनने के लिये दिल तो चाहिये।
दिल की बीमारियों का इलाज तो डाक्टर कर सकता है लेकिन दिल का इलाज कौन करे? असल में दिल का इलाज किसी डाक्टर के पास है ही नहीं।
इसका इलाज तो काले या उजले दिल वालों के पास ही है। सो आज से प्रण लीजिये बार बार दिल लगाने का। बार बार तुड़वाने का और फिर देखिए दिल मजबूत होता है या नहीं। आखिर इस टूटे दिल का इलाज यही है कि खूब प्यार किया जाये जिससे नफरत बचे ही न।