Skip to content
Mon, Jul 7, 2025

लोकल डिब्बा

जहां बातें होंगी हिंदी इस्टाइल में

  • नेशनल
  • नुक्ताचीनी
  • राजनीति
  • विशेष
  • जानकार
  • कविताई

Category: कविताई

बहुत मुश्किल है अब कुछ भी यक़ीनी तौर पर कहना

बहुत मुश्किल है अब कुछ भी यक़ीनी तौर पर कहना

लोकल डिब्बा टीमJanuary 7, 2021November 24, 2022

फ़लक से तोड़कर क़िस्सा ज़मीनी तौर पर कहनाबहुत मुश्किल है अब कुछ भी यक़ीनी तौर पर कहना. किसे चाहें किसे…

रात दरवाज़े पर दस्तक दे रही है

रात दरवाज़े पर दस्तक दे रही है

लोकल डिब्बा टीमOctober 12, 2020November 16, 2022

रात अब दरवाज़े पर खड़ी है रह-रह के सायरन की सदा आ रही है.

हर सरहद को तोड़ ही देगी आज़ादी…

लोकल डिब्बा टीमAugust 15, 2020November 16, 2022

हर सरहद को तोड़ ही देगी आज़ादी दुनिया भर को घर कर देगी आज़ादी. दिल में रह-रह मौज उठेगी आज़ादी…

सब राहों के अन्वेषी बचे-खुचे जंगलों के साथ ही कट गये

सब राहों के अन्वेषी बचे-खुचे जंगलों के साथ ही कट गये

लोकल डिब्बा टीमJune 27, 2020November 16, 2022

अब नहीं हैं प्रणययार्थी, न उनकी गणिकाऐं, वो गदिराए बदन भी नहीं हैं जिनपर लिख सको कामसूत्र जैसा ग्रंथ तुम…

ख़ुदकुशी…भवेश दिलशाद (शाद) की नज़्म

ख़ुदकुशी…भवेश दिलशाद (शाद) की नज़्म

लोकल डिब्बा टीमJune 26, 2020November 16, 2022

इसी इक मोड़ पर अक्सर गिरा जाता है ऊंचाई से अपनी ज़ात और ख़ाका मिटाया जाता है सब कुछ हो…

हम फिर वापस आएंगे!

हम फिर वापस आएंगे!

लोकल डिब्बा टीमMay 31, 2020November 16, 2022

फिर से हम जिन्दा लाशें,अपने मरे हुए सपनों से, नाउम्मीदी ओर जिल्लत की जिंदगी सेफिर से हम आपके रुके हुए…

शहरों से ठोकर मिला, हम चल बैठे गांव

शहरों से ठोकर मिला, हम चल बैठे गांव

लोकल डिब्बा टीमMay 11, 2020

माना अपने गांव में, रहता बहुत कलेस। कुल पीड़ा स्वीकार है, ना जाइब परदेस।

बुर्क़े हटा के आ गयीं, घूंघट उठा के आ गयीं, ये औरतें कमाल..

बुर्क़े हटा के आ गयीं, घूंघट उठा के आ गयीं, ये औरतें कमाल..

लोकल डिब्बा टीमMarch 9, 2020November 16, 2022

डर से निजात पा चुकीं, जीने को मरने आ चुकीं, धरने पे मुल्क ला चुकीं, ज़िद इनकी है बहाल, सलाम..

मिलती मुद्दत में है और पल में हँसी जाती है

मिलती मुद्दत में है और पल में हँसी जाती है

लोकल डिब्बा टीमOctober 3, 2019November 24, 2022

आप की याद भी बस आप के ही जैसी है, आ गई यूँही अभी यूँही अभी जाती है।

नज़्म ‘औरत’: माथे पर लिखी मेरी रुसवाई नहीं जाती

नज़्म ‘औरत’: माथे पर लिखी मेरी रुसवाई नहीं जाती

लोकल डिब्बा टीमMarch 8, 2019November 24, 2022

माथे पे लिखी मेरी रुसवाई नहीं जाती… जब भूख लगी तब मैं, या प्यास लगी जब तब मैं हाथ लगी…

हमारा Youtube चैनल

https://youtu.be/2fwIj9d9nIA

नया ताजा

  • आर जी कर अस्पताल से सुप्रीम कोर्ट तक, अब तक क्या-क्या हुआ?
  • Uttarakhand Lok Sabha Seats: उत्तराखंड की लोकसभा सीटों पर कौन लड़ रहा है चुनाव?
  • Delhi Lok Sabha Seats: दिल्ली की 7 सीटों पर कौन लड़ रहा है चुनाव?
  • तुम ठाकुर, मैं पंडित, ये लाला, वो चमार फिर महाब्राह्मण कौन?
  • पनामा नहर: 26 मीटर ऊपर उठा दिए जाते हैं पानी के जहाज
  • शाम ढलने के बाद महिलाओं की गिरफ्तारी क्यों नहीं होती?
  • 26 जनवरी को ही क्यों मनाया जाता है गणतंत्र दिवस?
  • फांसी की सजा सुबह ही क्यों दी जाती है?
  • आखिर मौत की सजा देने के बाद क्यों निब तोड़ते हैं जज?
  • Mascot: खेलों में शुभंकर का क्या काम होता है?

पुराना चिट्ठा यहां मिलेगा

July 2025
S M T W T F S
 12345
6789101112
13141516171819
20212223242526
2728293031  
« Aug    
Copyright © localdibba.com | Exclusive News by Ascendoor | Powered by WordPress.