रूस क्षेत्रफल के लिहाज से सबसे बड़ा देश है. इस सबसे बड़े देश ने अपने छोटे से पड़ोसी देश यूक्रेन पर हमला कर दिया है. रूस इतना बड़ा है कि वह एशिया और यूरोप दोनों महाद्वीपों में आता है. रूस की इसी ताकत की वजह से कभी भी उसकी अमेरिका और यूरोप के देशों से ज़्यादा जमी नहीं है. इस बार भी लड़ाई की वजह कुछ हद तक इन सबके बीच की आपसी तनातनी ही है. आइए रूस-यूक्रेन के झगड़े को थोड़ा अच्छे समझते हैं.
1991 में USSR का विघटन
शुरू करते हैं 1991 से. दिसंबर 1991 तक रूस और यूक्रेन सब एक ही परिवार के हिस्सा थे. इस बहुत बड़े परिवार का नाम था यूएसएसआर यानी यूनियन ऑफ सोवियत सोसलिस्ट रिपब्लिक. यानी सोवियत यूनियन.
1991 में ये परिवार टूटा और 15 अलग-अलग आजाद देश बन गए. इसको ऐसे समझिए कि एक बाप के 15 बेटे अलग हो गए. इसमें सबसे बड़ा और ताकतवर बेटा है रूस. और यूक्रेन को समझ लीजिए हमारे देश के मध्य प्रदेश के बराबर. अब सबसे ताकतवर होने की वजह से रूस में उजड्डई भी शुरू से रही है. रूस अपने पड़ोसियों खासकर यूक्रेन को दबाता आया है.
यूरोपीय देशों से घिरा है यूक्रेन
अब यूक्रेन और रूस यूएसएसआर से टूटकर बने हैं, तो ज़ाहिर है कि रूसी लोग ही हर तरफ फैले हैं. यूक्रेन का जो पूर्वी इलाका है, वो रूस के ज़्यादा करीब है. इस करीबी की वजह से यहां के लोग रूस की तरफ मिल जाना चाहते हैं. इन्हीं को अलगाववादी कहा जाता है.
आरोप लगता है कि रूस इन अलगाववादियों को बढ़ावा देता रहा है. और अब तो उसने एक कदम आगे बढ़कर पूर्वी यूक्रेन के लुहान्स्क और डोनेस्क के इलाकों को स्वतंत्र क्षेत्र के रूप में पहचान दे दी है इसका मतलब है कि रूस ने अब ये मान लिया है हां ये दोनों यूक्रेन से अलग हैं. इन्हीं दोनों इलाको को डोनबास के नाम से भी जाना जाता है.
लोकल डिब्बा के फेसबुक पेज को लाइक करें.
फ़ायदे का सौदा है यूक्रेन पर कब्जा?
रूस की इसी तरह की बदमाशियों से बचने के लिए यूक्रेन काफी दिन से परेशान है. यूक्रेन जानता है कि वो अकेले कभी भी रूस का मुकाबला नहीं कर सकता. इसके अलावा यूक्रेन में गैस और कई खनिजों के भी भंडार हैं. यूरोप के कई देशों में गैस की सप्लाई यहीं से होती है. यूरोपीय देशो के साथ-साथ रूस की भी इनपर नजर रहती है. दूसरी तरफ यूक्रेन के ज्यादातर इलाकों की सीमाएं यूरोप से लगी हुई हैं. तो रूस को लगता है कि यूक्रेन यूरोपीय देशोें की कठपुतली न बन जाए. अब यूक्रेन खुद को बचाना चाहता है और रूस किसी भी हाल में यूक्रेन को अपने कब्जे में रखना चाहता है.
रूस और यूक्रेन विवाद: रूस ने क्यों छेड़ दिया युद्ध?
अभी क्या है कि रूस जैसे चाहता है, वैसे यूक्रेन के साथ व्यवहार करता है. जैसे 2014 में उसने क्रीमिया पर हमला किया और उसे अपने कब्जे में ले लिया. क्रीमिया इससे पहले यूक्रेन का हिस्सा था. अमेरिका और यूरोपीय देशों ने उस समय भी रूस का बहुत विरोध किया, लेकिन रूस बिल्कुल नहीं झुका. इसी वजह से रूस को जी-8 देशों से निकाल भी दिया गया, लेकिन रूस तो रूस ही है.
NATO में शामिल होना चाहता है यूक्रेन
पहले क्रीमिया पर कब्जा, फिर पूर्वी यूक्रेन में अलगाववादियों को बढ़ावा. रूस की इसी तरह की गुंडई से परेशान यूक्रेन अब NATO का हिस्सा बनना चाहता है. नैटो का फुल फॉर्म है. नॉर्थ अटलांकि ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन. ये एक ऐसा ग्रुप है जिसने कसम खाई है कि अगर ग्रुप के किसी भी देश पर ग्रुप के बाहर का कोई देश हमला करेगा तो सब मिलकर उसके खिलाफ लड़ाई लड़ेंगे.
इसमें फ्रांस, कनाडा, जर्मनी, इटली, स्पेन, तुर्की, अमेरिका, यूके जैसे तमाम ताकतवर देश शामिल हैं. अब अगर यूक्रेन NATO में शामिल हो गया, तो रूस के बदमाशी करने पर ये सभी ताकतवर देश रूस के खिलाफ जंग में उतर आएंगे. रूस इसी चीज से बचना चाहता है. इसीलिए वो अमेरिका और बाकी देशों पर भी दबाव डालने की कोशिश कर रहा है. कि किसी भी हाल में यूक्रेन NATO का हिस्सा न बने.
भारत को क्या दिक्कत है
भारत की रिश्तेदारी अमेरिका से भी है, यूक्रेन से भी है और रूस तो पुराना दोस्त है ही. भारत के बहुत सारे लोग यूक्रेन में रहते हैं. पढ़ाई और नौकरी करते हैं. भारत के सामने समस्या ये है कि वो खुलकर किसी के साथ नहीं आ पा रहा. युद्ध में भारत जाना नहीं चाहेगा. रूस का विरोध करे, तो उससे दुश्मनी मोल ले. यूक्रेन का विरोध करने का कोई तुक बनता नहीं, क्योंकि यहां विक्टिम यूक्रेन ही है.
ऐसे में भारत फंस गया है, लेकिन अभी तक भारत ने चालाकी से बैलेंस बना रखा है और किसी के भी एकतरफा पक्ष में नहीं गया है.