गुनाहों का देवता जितनी बार पढ़ता हूं हर बार कुछ नया पाता हूं। चन्दर इस बार पहले से ज्यादा भ्रमित लगा, सुधा पहले से और ज्यादा मजबूत। चन्दर मानवीय स्वभाव का एक बेहद शानदार उदाहरण है, जो थोड़ी सी परेशानियों में अपना खुदा ही बदल लेता है। सुधा अपने स्वभाव में चाहे जितनी कोमल और सुकुमार हो लेकिन उसमें एक चारित्रिक दृढ़ता है। सुधा के चरित्र की दृढ़ता उसकी नहीं बल्कि चन्दर के प्यार की है। चन्दर प्यार की किसी दैवीय भावना से अनजान है।
चन्दर को अभी मालूम ही नहीं कि प्यार आखिर क्या है? पता तो सुधा को भी नहीं है कि वो किसी को प्यार करती है लेकिन उसकी सहेली गेसु को यकीन है कि चन्दर ही सुधा का देवता है।
सवाल के जवाब में भटकता हुआ चन्दर पम्मी के पास जाता है, जो उसे प्यार के सबसे खूबसूरत एहसास से वंचित कर देती है। प्यार के असल मायने तो पागल बर्टी बताता है।
किसी के लिये प्यार बस भावना भर नहीं है जो किसी को देखकर हो जाये।
बिनती, दूसरी सुधा बन गयी है। चन्दर उसके लिये बिगड़ा हुआ देवता है। ये देवता उसका खुद का बनाया हुआ नहीं है बल्कि वो किसी और के बनाये देवता पर अपना मस्तक झुका देती है। ये देवता अपनी हार से आहत होकर सबकुछ तहस नहस कर देना चाहता है।
चन्दर के स्पर्श से गुलाबी हुए सुधा के गाल की तरह इलाहाबाद की सुबहें भी गुलाबी हैं। गेसू के फूल अब भी खिला करते हैं, हां उन्हें तोडने कोई अख्तर नहीं आता। इलाहाबाद का सिविल लाइन्स अब भी ब्रीटेन को मात दे रहा है। गलियां अब भी उतनी ही सँकरी हैं। नाले आज भी बजबजाते हैं। शामें अब भी उतनी ही खूबसूरत होती हैं। गंगा और जमुना मिलकर संगम बनाती हैं और सरस्वती अब भी सुधा के बिन बोले प्यार की तरह अदृश्य है जिसमें डुबकी लगाकर कई चन्दर पवित्र होते हैं। युनिवर्सिटी के कई बिसरिया प्रेम में डूबी कवितायें लिख रहे हैं लेकिन किसी बिनती को समर्पित अब भी नहीं कर पाते। ठाकुर साहब फेल होकर दुबारा किसी क्लास में या क्लास के बाहर अब भी फब्तियां कसते हैं।
कोई चन्दर फिर से अपना चरित्र जी रहा है।