महात्मा गांधी का जीवन-दर्शन है हिंद स्वराज

हिन्द स्वराज को गाँधी के विचारों का ब्लू प्रिंट माना जाता है |अगर आप गाँधी के विचारों और सिद्धांतों से परिचित होना चाहते है तो हिन्द स्वराज सबसे महत्वपूर्ण स्रोत है| यह संवाद शैली में लिखी गयी एक ऐतिहासिक कृति है जिसमें एक समाचार पत्र के संपादक और पाठकों के बीच संवाद को दिखाया गया है | इसमें गाँधी संपादक और पाठक उन उग्र भारतीय युवाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं,जो ब्रिटिश शासन से क्रुद्ध हैं और गाँधी के अहिंसात्मक कार्यक्रम को ब्रिटिश साम्राज्यवाद से लड़ने का एक बेहतर हथियार नहीं मानते हैं |

गाँधी अपनी इस किताब में उन युवाओं की सभी शंकाओं को दूर कर अहिंसा और सत्याग्रह का अर्थ समझाना चाहते है |इसके अतिरिक्त गाँधी भारतीयों को सच्चे स्वराज,आधुनिकता और उद्योगीकरण की वास्तविक परिभाषा बताना चाहते थे |
गाँधी अपनी बात को कांग्रेस से शुरु करते हुए कहते है कि कांग्रेस को अपने द्वारा प्रस्तावित ‘स्वराज’ पर पुनर्विचार करना होगा| गाँधी का स्वराज संसदीय प्रणाली पर आधारित ना होकर ‘ग्रामस्वराज’ और‘सर्वोदय’ पर आधारित है जिसमे हाशिये पर बैठे अंतिम व्यक्ति तक पहुँच बन पाये| गाँधी का जोर राजनीतिक स्वराज से अधिक व्यक्तिगत स्वराज को प्राप्त करने पर है जिसमे लोग अपना आत्म परिवर्तन करके सत्य और अहिंसा के आधार पर कार्य करें |

इसके बाद गाँधी आधुनिक सभ्यता और आधुनिकता सम्बन्धी अवधारणा की आलोचना करते हैं| गाँधी कहते है कि आधुनिकता और सभ्यता सम्बन्धी अवधारणा पश्चिम से आयातित है | वह इसे ‘अदृश्य रोग’ की संज्ञा देते है,जो यूरोप में औधोगिक क्रांति के बाद उभरी है | गाँधी का मानना है कि इस मशीनी सभ्यता में शारीरिक सुख,सुविधा और सम्पन्नता पर जोर होता है पर इसमें आत्मिक और आध्यात्मिक सुख नहीं मिल पाती है| गाँधी ‘श्वेत व्यक्ति के भार के सिद्धांत’ को भी इसी मशीनी सभ्यता का देन मानते हैं,जो कि पूरे विश्व में नस्लीयता फैलाती है|

गाँधी का मानना है कि मानव को मशीन का गुलाम नहीं बनना चाहिए| वह कहते हैं कि भारत के लिए यह मशीनी सभ्यता और आधुनिकता, ब्रिटिश उपनिवेशवाद से भी अधिक खतरनाक है |वह इस सन्दर्भ में आधुनिकता के विभिन्न प्रतीकों रेलगाड़ी,डॉक्टर,अस्पताल,वकील और कोर्ट कचहरियों की भी आलोचना करते हैं| उनका मानना है कि ऐसा नहीं है कि रेलवे ने ही भारत को एक राष्ट्र के सूत्र में बाँधा है |वह बोलते है कि भारत पहले से ही एक राष्ट्र था और चारों दिशाओं में स्थापित चारों धाम भारत के एक राष्ट्र होने का प्रतीक है |

गाँधी भारत में मैकाले द्वारा प्रतिपादित पाश्चात्य अंग्रेजी शिक्षा का विरोध करते है और कहते है कि हम स्वराज की बात भी पराई भाषा में करते हैं| वह उच्च शिक्षा के स्थान पर शारीरिक और व्यावसायिक शिक्षा को तरजीह देने की बात करते हैं |
अंत में गाँधी ‘सच्ची सभ्यता’ को परिभाषित करते हुए कहते है कि सभ्यता नैतिक तत्वों पर आधारित होनी चाहिए ना कि भौतिक तत्वों पर, जो प्रेम और अहिंसा उपजाए ना कि शोषण और हिंसा |

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