तुम हिन्दू हो ,मै मुस्लिम हूं।
तुम्हारा रास्ता मंदिर तो मै मस्जिद को जाता हूं।
तुम टीका लगाते हो तो मै टोपी पहनता हूं,
तुम पूजा करते हो तो मैं नमाज अदा करता हूं।
तुम गीता पाठ करते हो तो मैं कुरान तिलावत करता हूं।
तुम भगवान को ईश्वर कहते हो तो मैं अल्लाह बुलाता हूं।
दोनों ही धर्म हमें प्रेम और भाईचारा सिखाते हैं।
फिर भी हम मजहब की दीवारों में क्यों बंटते जा रहे हैं भाई।
ये मेरे हिन्दुस्तान को कौन सा रोग लग रहा है भाई!
तुम अमरनाथ यात्रा को जाते तो मैं हज को जाता हूं।
तुम काशी जाते तो मैं काबा को जाता हूं।
तुम पहले पंजाबी थे, हम पहले गुजराती थे,
तुम पहले कश्मीरी थे, हम पहले बिहारी थे।
अब हम हिन्दू हैं, तुम मुस्लिम हो।
ये पहचान कहां से आई ,ये फर्क हम क्यों नहीं मिटा पा रहे हैं भाई।
ये मेरे हिन्दुस्तान को कौन सा रोग लग रहा है भाई!
इतिहास हमारा एक है भूगोल हमारा एक है।
कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तलक सब एक हैं।
एक जान तुम हो एक जान मैं।
खून का रंग लाल तेरा, खून का रंग लाल मेरा भी।
तो फिर हम सियासत की जहरीली हवाओं का शिकार क्यों होते हैं भाई।
एक दुसरे का गला क्यों रेत देते हैं भाई ।
ये मेरे हिन्दुस्तान को कौन सा रोग लग रहा है भाई!
तुम ईद में मेरे यहां आओ, मैं दीवाली में तेरे यहां।
तुम हमारे हो हम तुम्हारे हैं।
ये लकीर सियासी है, खून की प्यासी है।
आजान के मसले और दिवाली के पटाखों में नहीं उलझना है।
बेरोजगारी और विकास के मसले पर हमें लड़ना है।
इंसानियत के मजहब को हमें अपनाना है भाई।
ये मेरे हिन्दुस्तान को कौन सा रोग लग रहा है भाई!
यह कविता अनिसुर रहमान ने लिखी है।