साल 2011, महीना अप्रैल, तारीख थी 5.
इस दिन दिल्ली के जंतर-मंतर पर भ्रष्टाचार के विरुद्ध दुनिया में अब तक का सबसे बड़ा आन्दोलन शुरू हुआ था. न्यूज चैनलों, समाचार-पत्रों, पत्रिकाओं, यहां तक कि भारत में उभरती सूचना क्रांति के उस दौर में लोगों के मोबाइल तक में संदेशों के माध्यम से एक ही नाम गूंज रहा था. अन्ना हजारे.
इस आंदोलन ने देश में एक नया नारा, जो सबकी जुबान पर चढ़ गया था, वो था- मैं हूं अन्ना हजारे, मुझे चाहिए लोकपाल. आलम ये था कि गांवों की गलियों में उन लोगों की जुबान पर भी ये नारा था, जिनको लोकपाल क्या है, ये तक पता नहीं था.
दरअसल, भारतीय भीड़तंत्र की ये खूबसूरती रही है कि उसे किसी व्यक्ति में यदि अपनी छवि दिखने लगती है तो वो उसका नायक होता है. और अन्ना हजारे ने तो उस भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व किया जिससे लोग कई दशकों से पीड़ित हैं. सड़क से लेकर संसद तक भ्रष्टाचार को रोकने की बात उठती थी, लेकिन वो बातें हर बार परिणति से पहले ही वीरगति को प्राप्त हो जाती थी. सरकार के छोटे-छोटे विभागों से लेकर केंद्र के मंत्रालयों में एक के बाद एक घोटाले सामने आ रहे थे.
अन्ना हजारे के जनलोकपाल बिल की मांग के समर्थन में देश के बड़े-बड़े सितारे उतरे थे. खेल, राजनीति, सिनेमा के दिग्गज जंतर-मंतर पर पहुंचकर इस आंदोलन का समर्थन कर रहे थे. महज पांच दिन के अंदर ही सरकार ने जनलोकपाल बिल के लिए संयुक्त समिति बनाने का आदेश जारी कर दिया. सरकार ने सयुंक्त समिति की पहली बैठक अनशन के 11वें दिन ही बाद बुला ली. इसके बाद अन्ना हजारे ने अपना अनशन तोड़ दिया. भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलन की इस सफलता ने अन्ना हजारे को देश का हीरो बना दिया.
लेकिन धीरे-धीरे समिति और टीम अन्ना के बीच मतभेद बढ़ते गए. दरअसल, समिति में सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे सदस्यों ने अन्ना हजारे से साफ कह दिया था कि प्रधानमंत्री, न्यायपालिका और संसद के अंदर सांसदों के व्यवहार को लोकपाल के दायरे में नहीं लाया जा सकता. 21 जून को संयुक्त कमेटी की आखिरी बैठक के बाद लोकपाल बिल पर अन्ना और सरकार के बीच सहमति बने बगैर ही खत्म हो गया.
अन्ना हजारे ने प्रधानमंत्री को इस बारे में चिट्ठी भी लिखी. इसके बाद अन्ना ने 16 अगस्त 2011 को एक बार फिर अनशन शुरू कर दिया. लेकिन दिल्ली पुलिस ने अन्ना हजारे को पकड़कर तिहाड़ में डाल दिया. लेकिन अन्ना हजारे ने जेल में ही आमरण अनशन शुरू कर दिया. और एक बार फिर वही आंदोलन, दिल्ली की सड़कों पर युवाओं का हुजूम उमड़ रहा था. बाबा रामदेव, अरविंद केजरीवाल, कुमार विश्वास, प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव जैसे नाम उस आंदोलन को नई दिशा देने में जुटे थे. दिल्ली का छत्रसाल स्टेडियम अन्ना के समर्थकों से भर गया था और तिहाड़ जेल के बाहर लोगों ने डेरा डाल दिया था.
सरकार भौचक थी. कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए. आखिरकार अन्ना को जेल से रिहा किया गया. रिहा होते ही अन्ना ने फिर जंतर-मंतर पर आंदोलन शुरू कर दिया. देश के इतिहास में आज तक किसी भी आंदोलन की वजह से संसद का विशेष सत्र नहीं बुलाया गया था. लेकिन 27 अगस्त 2011 को संसद का विशेष सत्र बुलाया गया. संसद में अन्ना की प्रमुख तीन मांगों पर बहस कराई गई. रात आठ बजे तक संसद के दोनों सदनों ने ध्वनिमत से इन शर्तों के पक्ष में विचार करने के लिए उसे स्थाई समिति के पास भेजने का प्रस्ताव पारित कर दिया. इसके बाद अन्ना हजारे ने अपना अनशन तोड़ दिया.
देश के इतिहास में आज तक किसी भी आंदोलन की वजह से संसद का विशेष सत्र नहीं बुलाया गया था. लेकिन 27 अगस्त 2011 को संसद का विशेष सत्र बुलाया गया. संसद में अन्ना की प्रमुख तीन मांगों पर बहस कराई गई.
अन्ना के आंदोलन पर राजनीतिक पंडितों ने खूब बहसें की, खूब लिखा गया. बाबा रामदेव पर पुलिसिया कार्रवाई, अरविंद केजरीवाल का राजनीति में उदय, सरकार और फिर जनलोकपाल बिल, इन सारी चीजों पर बहुत मत बनें.
साल बीतता गया, नरेंद्र मोदी सरकार के आने के बाद भारतीय राजनीति का परिप्रेक्ष्य बदल गया. भारतीय भीड़तंत्र भ्रष्टाचार विरोधी दौर के बाद सूचना क्रांति के अगले दौर में पहुंच गया. मोदी सरकार ने लोकपाल नियुक्त ना करने के कई कारण गिनाए.
अब अन्ना हजारे एक बार फिर धूल झाड़कर खड़े हो गए हो गए है. उन्होंने काफी दिन पहले ही ऐलान कर दिया था कि वो दिल्ली में 23 मार्च यानी ‘शहीद दिवस’ से फिर आंदोलन शुरू करेंगे. वो दिन आज आ गया है. अन्ना हजारे के अनुसार ये आंदोलन जनलोकपाल, किसानों की समस्याओं’ और चुनाव में सुधारों के लिए एक सत्याग्रह होगा. अब देखना यही होगा कि क्या इस सत्याग्रह से अन्ना हजारे सरकार को अपना संदेश दे पाते हैं, क्या जनता की वैसी ही भागेदारी देखने को मिलेगी जैसी 2011में दिल्ली की सड़के उस आंदोलन की गवाह बनीं थीं.