सीएजी का भी राजनैतिक लाभ लिया जाता है

जब संवैधानिक संस्थाओ की बात चले तो हमेशा सीएजी (COMPTROLLER AND AUDITOR GENRERAL) का ज़िक्र ही कम होता है। हम लोग भी इतनी महत्वपूर्ण संस्था पर ध्यान नहीं देते हैं। सीएजी की स्थापना 1948 में की गई थी और शुरू से ही इसे बिलकुल स्वतंत्र रखा गया ताकि आर्थिक अनियमितताओं को रोका जा सके और निगरानी की जा सके। पहले सीएजी वी नरहरी राव ने इस पद पर रहकर काफी महत्वपूर्ण कदम उठाए। कितने ही सीएजी आए सबने अपने पद की मर्यादा राखी और सरकार को रिपोर्ट सौंपते रहे।

 

एक बात जो शक पैदा करती है वह यह की जो पद इतना महत्वपूर्ण हो और स्वतंत्र हो उसकी नियुक्ति में यदि कोई राजनैतिक पायदान का व्यक्ति होगा तो उसके राजनैतिक दुरूपयोग की आशंका लगातार बनी रहेगी। हमने सन 1965 के बाद के सभी सीएजी को खासकर जाना तो कई महत्वपूर्ण तथ्य निकले। सबसे पहले तो वर्तमान सीएजी का ज़िक्र करते हैं राजीव महर्षि: यह राजस्थान कैडर के आईएएस अधिकारी हैं। सीएजी बनने से पहले राजस्थान सरकार के बहुत ही महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित रहें हैं। इनकी पत्नी भी राजस्थान सरकार की उच्च अधिकारी हैं श्रीमती मीरा महर्षि। इन दोनों पति-पत्नी पर कई तरह के भ्रष्टाचार के आरोप रहें हैं। एक समय में वर्तमान गृह मंत्री राजनाथ सिंह श्री महिर्षि की सीएजी की नियुक्ति को लेकर नाराज़ थे मगर उनकी चली नहीं। श्रीमती महर्षि पर जयपुर विकास प्राधिकरण की कई करोड़ों की जमीन कब्जाने का भी आरोप है। यह बात आरटीआई कार्यकर्त्ता राजस्थान के गोवर्धन सिंह की याचिका में हैं। उन्होंने इनपर भ्रष्टाचार के बहुत ही संगीन आरोप लगा रखें है जो विचाराधीन हैं। अब ऐसे में यह सीएजी से कितनी इमानदारी की उम्मीद की जा सकती है।

 

अब दूसरे सीएजी जो इनसे पहले थे, शशिकांत शर्मा जी, उन्होंने तो हद ही पार कर दी, सेना के पास दस दिन का ही गोला बारूद बचा है यह कहकर राजनैतिक भूचाल तो खड़ा किया ही साथ ही दुश्मन देशों को हमारे अंदरूनी हालात पर नज़र डलवा दी। खुद रक्षा मंत्रालय में कई तरह की अनियमितताओं का सामना कर रहे सीएजी शशिकांत शर्मा के राजनैतिक उपयोग पर आखिर क्यों न बात की जाए। ऐसे नाज़ुक मौके पर जब देश की सुरक्षा कसौटी पर है तब इस तरह के बयान  राजनैतिक ही तो कहलाएँगे।

 

अब इनसे पहले सीएजी शुंगलू अपनी रिपोर्ट से ज्यादा शुंगलू कमेटी से मशहूर हुए। जो दिल्ली सरकार ने बनाई थी। इनसे पहले के सीएजी विनोद रे तो सर्व विख्यात रहे या यह कहें की सीएजी का इतना जबर्दस्त राजनैतिक उपयोग कभी नहीं हुआ। वह एक के बाद एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करके वर्तमान सरकार के खिलाफ घपलों की फेहरिस्त जारी करते। हर कॉन्फ्रेंस में सरकार पर हजारों लाखों करोड़ों फिर अरबों रुपयों के घपलो का आरोप लगाते और वह अगले दिन के अखबारों में सुर्खिया बनती और टीवी पर घंटो बहसें होतीं। कोयला घोटाला, टूजी घोटाला, कॉमन वेल्थ घोटाला जिसपर सीएजी विनोद राय ने खूब रिपोर्ट निकाली और यह रिपोर्ट वर्तमान सरकार को बैकफुट में धकेलती चली गई। आखिर उनके लगे आरोप सरकार पर भारी पड़े और वह सत्ता से चली गई। विनोद रे प्रधनमंत्री पर सीधे आरोप लगा रहे थे, जोकि बाद में कोर्ट में साबित नहीं हुए। सीएजी जिसका काम था अनियमितता पर सरकार को रिपोर्ट करना, वह प्रेस कॉन्फ्रेंस करके मुख्य विपक्ष बना हुआ था। जब विनोद रे रिटायर हुए तो उन्हें बीसीसीआई का निर्देशक तक बना दिया गया। उनके राजनाथ सिंह से व्यक्तिगत रिश्ते जग ज़ाहिर हैं। विनोद राय पर इधर आरोप लगते उधर विपक्ष ऐसा लगता की पहले से ही तैयार बैठा है,  सड़क से सदन तक सरकार को घेर लेता। इसलिए सीएजी की ताकत का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है की वह सरकार को बदनाम करने की कितनी असीमित ताकत रखती है।

 

अब जरा इनसे भी पहले सीएजी टी एन चतुर्वेदी पर बात करते हैं। इन्होंने बोफोर्स और चारा घोटाला खोला था। इनपर तो बात भी नहीं होती है। सन 1989 में चतुर्वेदी जी बोफोर्स घोटाले की प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हैं और वर्तमान प्रधानमन्त्री पर आरोप लगते हैं। वह भी करोड़ों अरबों की संख्या हवा में उछालते हैं और सरकार बैकफुट पर आ जाती है। उनके इसी आरोप से सरकार चुनाव तक हार जाती है। यह एक ऐसा दाग है जो आजतक न साबित हुआ और ना ही धुला। चतुर्वेदी जी को उनके इस महान काम के योगदान के लिए अगली सरकार पद्म भूषण देती है फिर वह विधिवत भारतीय जनता पार्टी में शामिल होकर राज्यसभा संसद बनते है और आने आगे चलकर राज्यपाल भी बनते हैं। उनके किये का उन्हें इतना फायदा पहुचता है कि एक सीएजी सरकार के लिए क्या नहीं कर सकता साबित हो जाता है।

 

हमारा सिर्फ इतना मानना भर है कि सीएजी पर बात होनी चाहिए क्योंकि इनकी ही रिपोर्ट पर सीबीआई, ईडी, इनकम टैक्स वगैरह छापे मरती हैं। सारी अनियमितताओं की शिकायत सीएजी द्वारा ही खुलती रही है और अगर इतिहास उठाकर देखें तो सीएजी पर जितना हमला मुख्यमंत्री रहते नरेंद्र मोदी जी ने बोला है किसी ने नहीं बोला। यहाँ तक शशिकांत शर्मा की सीएजी की नियुक्ति को बीजेपी ने कोर्ट में चैलेन्ज तक कर डाला क्योंकि उसे पता था की सीएजी है क्या और यह राजनैतिक रूप से कितनी महत्वपूर्ण है।

 

अब हम सबको अपनी हर संवैधानिक संस्था को तर्क की कसौटी पर कसना होगा। यह भी देखना होगा कि उसका कौन सा कदम किसे राजनैतिक लाभ दे रहा और और किसे नुकसान पंहुचा रहा। इन पदों पर बैठा व्यक्ति बाद में कहाँ पहुचता है और वह कितना नैतिक रूप से सधा हुआ है। उस पर कोई पूर्व के भ्रष्टाचार के तो आरोप नहीं है क्योंकि ऐसे आरोप उसकी पद के प्रति इमानदारी को सशंकित करते हैं। सीएजी उनमें से एक है। इसके बेहतर कामों की तारीफ की जानी चाहिए और राजनैतिक कदमों की आलोचना भी किया जाना चाहिए। एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए यह जरूरी है कि उसकी संवैधानिक संस्थाए स्वतंत्र रहें, निरपेक्ष रहें और नागरिकों की भलाई के लिए जितने भी कदम उठाने पड़े उन्हें निडर होकर उठाने चाहिए। यही इस देश के मजबूत भविष्य की मांग है।


यह लेख हफीज किदवई जी ने लिखा है। इनसे फेसबुक पर जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें।