भारत एक कृषि प्रधान देश है. देश के ज्यादातर लोग किसानी पर आश्रित हैं. फिर भी सबसे ज्यादा परेशान किसान ही हैं. किसानों को मौसम परेशान करता है. छुट्टा जानवर फसल बर्बाद करते हैं. कंपनियां दवा और खाद से लूटती हैं. साहूकार कर्ज के नाम पर लूटते हैं. मंडियों में घटतौली वाले लूटते हैं. इस सबसे अगर कुछ बच रहा हो तो सरकारी अध्यादेश लूटने पर आ जाते हैं.
किसान अकसर आंदोलन करते हैं. इन आंदोलनों की गति दिशाहीन होती है. चंद लोग किसानों के नाम पर समझौता कर लेते हैं. आखिर में किसानों को बैरंग लौटना पड़ता है. किसानों का खुद का कोई नेता नहीं है. किसानों के नाम पर इकट्ठा हुए धनपशुओं के संगठन अपनी सारी शक्ति सरकारी योजनाओं के दोहन में लगाते हैं. अकसर इन्हीं ठेकेदारों को सरकारी कृषि योजनाओं का फायदा मिलता है और यही मंच पर सम्मानित होते हैं.
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अन्ना हजारे जैसा ना हो किसान नेता
इस सबके बीच किसानों को अपने नेता की जरूरत है. ऐसा नेता जो खुद किसान हो. वो किसान के नाम पर जमीर बेचकर टिकट ले लेने वाला कोई खद्दरधारी ना हो. वो नेता ऐसा हो कि जिससे नेता डरें भी और उसे खरीद भी ना सके. हां, वह नेता अन्ना हजारे भी ना हो कि गुरु गुड़ ही रह जाए और चेला शक्कर हो जाए. वह नेता हो तो किसानी की समझ के साथ-साथ सरकारी योजनाओं की बाल की खाल निकाल सके.
हर सरहद को तोड़ ही देगी आज़ादी…
क्या जरूरत है किसान नेता की?
सबसे ज्यादा जरूरत इसलिए है कि किसानों को ठगे जाने से बचाया जा सके. बीते सालों में किसान अनगिनत बार आंदोलन के लिए निकले हैं और बीच में ही ठगे गए हैं. आश्वासनों ने उन्हें चूना लगाकर घर भेजा है. हर पार्टी ने नेतृत्वविहीन किसानों को मूर्ख बनाकर सिर्फ वोट लिया है. ऐसे में किसानों को उनके अपने और वजनदार सोच वाले नेता की सख्त जरूरत है।