एक और वीभत्स बलात्कार. अबकी उत्तर प्रदेश के हाथरस में. वही यूपी जहां कथित ‘राम राज्य’ आ चुका है. आखिर उस लड़की की मौत हो गई और हमारा रोष जाग उठा. दो हफ्तों से पुलिस यही साबित करने में लगी रही कि कुछ हुआ ही नहीं. दुर्भाग्य है कि उस लड़की की मौत के बाद इस बात पर बहस होगी कि बलात्कार हुआ या नहीं. ठीक यही दिल्ली में निर्भया के साथ हुआ था. तब से अब तक न जाने कितनी निर्भया मर चुकी हैं लेकिन न तो समाज को फर्क पड़ता है और नही बेशर्म शासन-प्रशासन को.
लोकल डिब्बा को फेसबुक पर लाइक करें।
मौका मिला है, रेप पर दिखाइए हमदर्दी!
अब सब कुछ दोहराया जाएगा. सरकार घड़ियाली आंसू बहाएगी. न जाने क्या लौटा देने के लिए मुआवजा देगी. पुलिस फर्जी जांच करेगी. कुछ बेशर्म पीड़िता की ही गलती बताएंगे. सोशल मीडिया सत्ता पक्ष देखकर सवाल उठाएगी. लोगों का गुस्सा इस बात से तय होगा कि सरकार हमारी है कि नहीं. अपनी हुई तो गलती पुलिस की. नहीं तो सीधे सीएम का इस्तीफा मांगा जाएगा.
ड्राइंगरूम से निकलती है रेप वादी सोच
लेकिन बात इतनी ही नहीं है. हमारी सोच शायद इतनी सड़ चुकी है कि हम इसका कोई समाधान ही नहीं खोज पा रहे हैं. आए दिन लड़कियों पर फब्तियां कसना, उनके कपड़ों और रहन-सहन पर तंज कसना भी इसी रेप कल्चर का एक अंग है लेकिन हम इसे हल्के में लेते हैं. यही रेप कल्चर, जो ड्राइंगरूम की खिखियाहट में पैदा होता है, यही सड़क और सूनसान रास्तों में अपने वीभत्स और हैवानियत भरे रूप में सामने आता है.
कहां बैठा है तुम्हारा भगवान/अल्लाह?
कोई न जाने कितना क्रूर होता है कि किसी का रेप कर देता है. न जाने क्यों किसी भगवान/अल्लाह (अगर कोई है) का दिल नहीं पसीजता और वह किसी की जान नहीं बचाता. इंसानों से तो खैर उम्मीद क्या ही करें. खासकर उस इंसान से जो खुद इन्हीं बलात्कारियों जैसी सोच रखता है और रेप की घटनाओं पर कैंडल जलाता है.
एक समाज के रूप में हम हर दिन फेल होते जा रहे हैं. यह सिर्फ आज की घटना से नहीं हुआ है. यह हर दिन हो रहा है. हर दिन किसी न किसी का रेप हो रहा है. घरेलू हिंसा हो रही है. और एक किनारे खड़ा शासन-प्रशासन दुशासनी हंसी हंस रहा है.