विकलांग को दिव्यांग कहने का समाज में कितना असर हुआ?

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दिव्यांग शब्द सुनते ही हर किसी के मन में दया का भाव पैदा होता है। बड़ी तत्परता से लोग सहानुभूति दिखाने को आतुर हो जाते हैं लेकिन वही लोग कई बार मौका आने पर पीछे भी हट जाते है। जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने रेडियो संबोधन कार्यक्रम ‘मन की बात’ में कहा था कि शारीरिक रूप से अशक्त लोगों के लिए विकलांग शब्द की जगह दिव्यांग शब्द का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। उसके बाद विकलांग की जगह दिव्यांग शब्द का प्रयोग होने लगा।

 

प्रधानमंत्री जी के ऐसा कहने के बाद लगा था कि अब स्थिति में सुधार होगा लेकिन दिव्यांगजनों के सशक्तीकरण के लिए चलाए जा रहे कार्यक्रमों और उसके मदों में कोई इजाफा नहीं किया गया। 2011 की जनगणना के मुताबिक, भारत में 2.68 करोड़ दिव्यांगजन हैं। अन्य जानकारियों के अनुसार, यह आंकड़ा कुल जनसंख्या का पांच प्रतिशत हो सकता है। वैश्विकस्तर पर यह आंकड़ा इसके उलट है। ब्रिटेन और अमेरिका जैसे देशों में तो यह आंकड़ा उनकी कुल आबादी का नौ से बारह प्रतिशत तक है।

 

दिव्यांगजनों के लिए पहली बार आजादी के बाद 1995 में एक कानून लाया गया, जिसे निशक्तजन अधिनियम 1995 के नाम से जाना गया। इसके बाद दिव्यांगजनों की स्थिति में थोड़ी सुधार हुई। उस समय सार्वजनिक सेवाओं और कार्यक्रमों में 3 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान था लेकिन केन्द्र की मोदी सरकार ने दिव्यांगजनों को दी जाने वाली आरक्षण की श्रेणी को तीन से बढ़ा कर चार कर दिया। इसके साथ ही विकलांगता की श्रेणी को 7 से बढ़ाकर 21 कर दिया।

 

गौरतलब है कि सभी सार्वजनिक सेवाओं में वर्षों से दिव्यांगजनों के कई हजार पद खाली है, जिन्हें भरने की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। दिव्यांगजनों के सशक्तीकरण के लिए बड़े जोर-शोर से ‘सुगम्य भारत अभियान’ चलाया गया। इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य दिव्यांगजनों के लिए सक्षम और बाधा रहित वातावरण उपलब्ध कराना था लेकिन इस दिशा में अपेक्षित प्रगति नहीं होना चिंता का विषय है। इतने समय बीत जाने के बावजूद अधिकांश सार्वजनिक एवं निजी कार्यलय दिव्यांगजनों के अनुकूल नहीं बन पाया है। यह इस बात का सूचक है कि विकलांग को दिव्यांग बना दिया गया लेकिन उनके प्रति रवैया अभी भी भेदभावपूर्ण है।

 

दिव्यांगजनों के सशक्तिकरण के लिए एनएसडीसी के सहयोग से एक राष्ट्रीय कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया। इस कार्य योजना का मुख्य उद्देश्य 2022 तक 25 लाख लोगों को प्रशिक्षित करना है। दिव्यांगजनों के लिए चलाई जाने वाली अधिकांश योजनाओं की स्थिति अत्यंत चिंता का विषय है। इस योजना के क्रियान्वित करने वाली संस्थाओं के लिए यह लूट का जरिया है। देश-दुनिया में ऐसे कई लोग हुए हैं, जिन्होंने अपनी शारीरिक कमियों को उन्होंने अपनी ताकत बनाया। उन्होंने जीवन में असाधारण सफलता को प्राप्त किए, यह इस बात का प्रतीक है कि जब भी दिव्यांगजनों को मौका मिला है। उन्होंने उसे भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।


यह लेख लोकल डिब्बा के साथी अविनाश मिश्रा ने लिखा है।

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अविनाश मिश्रा

अविनाश मिश्रा स्वतंत्र पत्रकार हैं।
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