आर्टिकल 370 भी नहीं रहा, आखिर कब बंद होगी कश्मीरी पंडितों की हत्या?

जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म हो चुका है। रास्ते का रोड़ा माना जाने वाला अनुच्छेद 370 भी प्रभावी नहीं है। जम्मू-कश्मीर और लद्दाख अब केंद्र शासित है। ये सभी शर्तें वह हैं, जो किसी भी केंद्र सरकार के लिए सबसे फेवरेबल हैं। इसके बावजूद भी कश्मीर में कश्मीरी पंडितों और अन्य नागरिकों की हत्या हो रही है। ये हत्याएं लूटपाट, चोरी-डकैती जैसी ‘सामान्य’ वजहों के लिए नहीं हैं। बल्कि ये हत्याएं आतंकी संगठन खुलेआम कर रहे हैं। इसके बावजूद केंद्र सरकार जस की तस है। सेना और पुलिस पहले की तरह ही एनकाउंटर पर एनकाउंटर कर रही है लेकिन घाटी में शांति आज भी नहीं है।

आर्टिकल 370 हटाते वक्त और जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित करते वक्त मौजूदा मोदी सरकार का दावा था कि इससे आतंकवाद कम होगा। हर मंच पर गृहमंत्री अमित शाह और पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि इससे घाटी में शांति बहाल होगी। इस सबके बावजूद आज घाटी में कोई सुरक्षित नहीं है। सुरक्षाबलों और आतंकवाद की बाइनरी में फंसा आम कश्मीरी मारा जा रहा है। या तो वह आतंकियों के साथ होता है या फिर सुरक्षाबलों के साथ। हालात ऐसे हैं कि दोनों की हाल में उसकी मौत होनी है।

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कश्मीरी अजय पंडिता की हत्या डराती है

इस स्थिति में वही लोग सुरक्षित हैं, जो आतंकवाद से प्रभावित क्षेत्रों से दूर हैं। हाल में सरपंच अजय पंडिता की हत्या आतंकियों की दादागिरी और लोकल इंटेलिजेंस और प्रशासन की नाकामी है। अजय पंडिता बार-बार सुरक्षा की मांग करते रहे। उन्हें सुरक्षा नहीं मिली। आज अंजाम सामने है। सवाल स्थानीय प्रशासन से लेकर कश्मीर के रहनुमा बनने की कोशिश में लगे नरेंद्र मोदी से भी है। आप कश्मीरी पंडितों के नाम पर वोट तो मांगते हैं लेकिन उन्हें भी सुरक्षित नहीं कर पा रहे हैं।

आर्टिकल 370 भी नोटबंदी जैसा हो गया है। नोटबंदी के वक्त भी कहा गया था कि इससे आतंकियों की कमर टूट जाएगी। आतंकियों का तो पता नहीं लेकिन देश ने पुलवामा जैसे हमले में 40 जवान गंवा दिए। इसके अलावा कश्मीर में रोजाना सेना, पुलिस और बीएसएफ के जवानों के साथ-साथ आम लोग आतंकियों का शिकार हो रहे हैं। फिर तो यही साबित होता है कि आर्टिकल 370 से आतंकवाद का कोई लेना देना नहीं है।

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लाचार हैं कश्मीरी, किससे लगाएं गुहार

कश्मीरी पंडित फिर से गुहार लगा रहे हैं कि उन्हें बचाया जाए। घाटी से साफ संदेश आ रहा है कि समस्या आर्टिकल 370 नहीं, समस्या आपसी सामंजस्य और अतिवाद है। सीमा पार से आने वाले आतंक के सरगना घाटी में जहर घोल रहे हैं और 56 इंची सीने वाला प्रधानमंत्री और ‘चाणक्य’ बना फिरने वाला गृहमंत्री बिहार और बंगाल में चुनावी बिसात बिछाने में लगा हुआ है। अभी भी होश में आइए और कश्मीर में एक और 1990 होने से बचा लीजिए।