सत्ता, मनमानी, गुंडई, तानाशाही और अलोकतांत्रिक रवैया. इतने शब्द एक लाइन में लिखने तो नहीं चाहिए, लेकिन आजकल, खासकर पंचायत चुनाव में हो यही रहा है. पहले भी होता ही रहा है. जिन मुद्दों पर अपने आदर्श तय किए जाते हैं, सत्ता की गुंडई का विरोध किया जाता है, सत्ता में आने के बाद वही चीज़ें गौण हो जाती हैं. पहले विरोध करने वाले लोग और दल सत्ता में आते हैं, तो वे ठीक वही चीज़ें कर रहे होते हैं जिनका वे विरोध कर रहे होते हैं.
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ताजा मामला उत्तर प्रदेश के जिला पंचायत और क्षेत्र पंचायत चुनावों का है. पंंचायत चुनाव के नतीजे आए, तो सबसे ज्यादा समर्थित उम्मीदवार समाजवादी पार्टी के थे. जब अध्यक्ष बनने की बारी तो 75 में से 66 जिला पंचायतों के अध्यक्ष बीजेपी के या उसके समर्थित उम्मीदवार चुने गए. इसमें, सपा ने प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाए.
सत्ता पक्ष की तरफ खड़ा दिखा प्रशासन
कई जिलों में सपा के उम्मीदवार पर्चा नहीं दाखिल पर आए. सपा के उम्मीदवारों को रोकने के लिए, प्रशासन ने भी खूब हाथ-पैर मारे. तमाम तस्वीरें और वीडियो सामने आए, जिसमें पुलिस के लोग प्रत्याशियों को पकड़ते, रोकते, गिरफ्तार करते नजर आए. कई जगहों पर दल-बदल भी जमकर हुई. ब्लॉक प्रमुख के चुनाव में यह गुंडई थोड़ा और आगे बढ़ी. कुछ जगहों पर गोलियां चलीं, हथगोले दागे गए, प्रत्याशियों से पर्चे छीने गए, महिलाओं से बदसलूकी की गई.
आंखें मूंदे दिखा पुलिस बल
अगर यह सब दो पार्टी के कार्यकर्ताओं की झड़प होती, तब भी बात अलग थी. लेकिन पंचायत चुनाव के दौरान हुुई इन घटनाओं मेंं पुलिस का मौन समर्थन देखा गया. एक वीडियो में देखा गया कि पुलिस के सामने ही कमरे में असलहा खोंसे कोई खुलेआम घूम रहा है और पुलिस को इस बात से फर्क नहीं पड़ता. पुलिस के सामने ही बीजेपी और सपा के कार्यकर्ता एक-दूसरे को पीटते दिखे, लेकिन पुलिस के लिए ये सब नॉर्मल है.
क्या जाति से आगे नहीं बढ़ पाएगी उत्तर प्रदेश की राजनीति?
अब आते हैं बंगाल के विधानसभा चुनाव में. बंगाल के चुनावों में और उसके बाद भी वहां की स्थिति कमोबेश ऐसी ही. यूपी में विपक्षी सपा, बसपा और कांग्रेस हैं, लेकिन सत्ता में बीजेपी है. बंगाल की सत्ता में टीएमसी है और विपक्ष में बीजेपी है. बीजेपी बंगाल में इस तरह की गुंडई का विरोध करती है. ऐसी घटनाओं को लोकतंत्र की हत्या बताती है और यूपी में फिर वही हथकंडे अपनाती है.
पहले भी सत्ताधारियों ने किया दुरुपयोग
समाजवादी पार्टी आज भाजपा पर आरोप लगा रही है, लेकिन यह भी सच है कि 2016 के पंचायत चुनाव के बाद इसी तरह सत्ता का दुरुपयोग वह भी करती रही है. कांग्रेस पार्टी नरेंद्र मोदी और भाजपा पर आरोप लगाती है, लेकिन छत्तीसगढ़ और राजस्थान जैसे राज्यों में कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों के शासन में सत्ता दमनकारी काम करती है और प्रदर्शनकारी छात्रों और आम लोगों पर डंडे चलते हैं.
सत्ता का तंत्र ऐसा है कि कब पुलिस और प्रशासन सत्ताधारी पार्टी के कार्यकर्ता की तरह बर्ताव करने लगता है, पता ही नहीं चलता. इस सबके बीच राज्यों के डीजीपी, जिलों के कप्तान और अन्य वरिष्ठ अधिकारी अपनी निष्ठा को संविधान से ज्यादा सत्ताधारी पार्टी के नेता के करीब पाते हैं. पार्टी का कोई मौलिक विचार ही नज़र नहीं आता. विचार और उसूल सत्ता में होने या ना होने के हिसाब से तय होते हैं. सत्ता से बाहर होने पर हर पार्टी को लोकतंत्र की जरूरत होती है और सत्ता में आते ही वही पार्टी सरकारी तंत्र से लोकतंत्र का गला घोंटने पर आमादा हो जाती है.